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Who Is Kiran Reddy : जानिए कौन हैं कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हुए दक्षिण की सियासत के दिग्गज किरण रेड्डी, ओवैसी को भाई को भेजा था जेल

Who Is Kiran Reddy : साल 2014 की बात है जब किरण कुमार रेड्डी के सीएम कार्यकाल में आंध्र प्रदेश में ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) भी अपनी पकड़ बना चुकी थी। तब विधानसभा में AIMIM के 7 विधायक, 2 विधानपार्षद और हैदराबाद ग्रेटर म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन में 43 प्रतिनिधि थे। 2014 चुनाव के लिए AIMIM मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण की कोशिश में जुटी थी। इसी कोशिश में मीम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी के भाई अकबरुद्दीन ओवैसी ने नफरती बयान दे डाला। आपको वो बयान तो याद ही होगा जिसमें ओवैसी के भाई ने कहा था, ‘अगर पुलिस को 15 मिनट के लिए दूर रखा जाए तो 25 करोड़ मुसलमान 100 करोड़ हिंदुओं के लिए काफी हैं। ये भड़काऊ भाषण  22 दिसंबर 2012 को आदिलाबाद जिले के निर्मल में दिया गया था। इसके बाद अकबरुद्दीन ने कहा, किरण कुमार रेड्डी मुसलमानों के दुश्मन हैं।’ बस इसी को लेकर हेत स्पीच के मामले में अकबरुदीन को जेल की हवा खानी पड़ी। किरण कुमार रेड्डी तब खूब चर्चाओं में आए थे। लेकिन 2018 के बाद से किरण कुमार रेड्डी राजनीतिक रूप से इतने सक्रिय नहीं रहे। 

अविभाजित आंध्रप्रदेश के आखिरी मुख्यमंत्री के तौर पर पहचाने जाने वाले, दक्षिण की सियासत में अपने दमदार फैसलों के चलते एक अलग मुकाम हासिल करने वाले, और ओवैसी के भाई को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाने वाले दिग्गज पूर्व कांग्रेसी मुख्यमंत्री किरण कुमार रेड्डी आज बीजेपी में शामिल हो गए है। भाजपा के बड़े नेताओं की मौजूदगी में उन्होंने शुक्रवार दोपहर को भगवा साफा पहनकर, मुस्कुराते हुए चेहरे के साथ जब हाथ हिलाया तो कांग्रेस को जाहिर तौर पर बड़ा झटका महसूस हुआ होगा। हो भी क्यों न, उनका बीजेपी में शामिल होना एक बड़े वोट बैंक का बीजेपी में शिफ्ट होना माना जा रहा है।
कैसा रहा राजनीतिक सफर ?
लेकिन किरण कुमार रेड्डी का राजनीतिक सफर महज कांग्रेस से भाजपा तक आने तक ही नहीं है…. इनकी कहानी भी बड़ी दिलचस्प है, कैसे एक छोटा बच्चा अपने पिता को राजनेताओं से मिलते हुए देखकर बड़ा होता है, ख्वाब देखा कि मुझे भी ऐसे ही बड़े नेताओं के साथ पिताजी की तरह बैठना है… कैसे अपने सपने को पूरा करने के लिए पिता के बाद सक्रिय राजनीति का हिस्सा बनता है … और फिर अपने पिता की ही सीट से लगातार 3 बार, 1989, 1999, 2004 में विधायक बन अपने मजबूत इरादों और पिता के सही उत्तराधिकारी के रूप में अपने आप को स्थापित करता है। कहानी आज दक्षिण भारत के उस नेता की जो अपने आप में एक जिसके ऊपर विरासत में सियासत मिलने, लापरवाही और आंध्र की सरकार को कभी ठीक से नहीं चला पाने के आरोप लगे..
13 सितंबर 1959 को का समय था जब तेलंगाना और आंध्र दोनों ही अलग अलग राज्य नहीं थे। उस समय हैदराबाद में बड़े सियासी व्यक्तित्व के तौर पर पहचाने जाने वाले अमरनाथ रेड्डी के घर के बालक पैदा हुआ, बालक का नाम रखा गया, नल्लारी किरण कुमार रेड्डी..  रेड्डी ने जब से होश संभाला तभी से ही अपने पिता के आसपास सियासी जमावड़ा लगा देखा.. रोज लोग आते.. आंध्रप्रदेश की चर्चाएं होती…इसका प्रभाव जाहिर तौर पर किरण रेड्डी पर पड़ने वाला था। कहानी को अगर थोड़ा पीछे रिवाइंड करके देखें तो, आजादी के बाद तेलुगु भाषियों के आंदोलन के कारण 1 नवंबर 1956 को भाषाई आधार पर पहले राज्य आंध्र प्रदेश का गठन हुआ..इसके बाद से ही तेलंगाना को अलग करने की मांग भी कुछ हिस्सों में सुनाई देने लगी थी। तेलंगाना का आंध्र प्रदेश में विलय तेलंगाना इलाके के लोगों को रास नहीं आया। क्योंकि आंध्र प्रदेश में मिलने के बाद तेलंगाना के लोगों के हितों का ध्यान नहीं रखा गया। ज्यादातर मंत्री, मुख्य मंत्री, राजनेता, अधिकांश आंध्रप्रदेश से थे और इसलिए शासन में पक्षपात था। तेलंगाना के लोगों का कहना था कि शिक्षा और रोजगार में भी तेलंगाना के लोगों के साथ भेदभाव हुआ। हैदराबाद राजधानी थी और इसलिए सिर्फ इसी शहर का विकास हुआ। इसके अलावा तेलंगाना प्रांत के किसी अन्य शहर का कोई खास विकास नहीं हुआ। साल 1962 से ही तेलंगाना के लोगों ने अलग राज्य की मांग शुरू कर दी। हालांकि, उनके इस संघर्ष को साल 2014 में जाकर मंजिल मिली. और आंध्र प्रदेश के विरोध के बावजूद 2 जून 2014 को तेलंगाना देश का 29वां राज्य बन गया।
इस नए राज्य की कमान तेलंगाना राष्ट्र समिति पार्टी के चंद्रशेखर राव ने संभाली, जिन्हें केसीआर के नाम से जाना जाता है। अब ये कहानी मैंने आपको इसलिए सुनाई कि आप जान सकें कि जब किरण कुमार रेड्डी सियासत में पूरी तरह एक्टिव हुए और उनके हाथ में आंध्र प्रदेश की कमान आई तब आखिर चल क्या रहा था। दरअसल, किरण कुमार रेड्डी ने 11 नवंबर, 2010 को राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में तब पदभार संभाला था, जब तेलंगाना अलग राज्य का आंदोलन अपने चरम पर था। उन्होंने 10 मार्च 2014 को मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया, जब कांग्रेस ने राज्य को विभाजित करने का फैसला किया। इसके बाद एक बड़ा दांव खेलते हुए पार्टी से नाराज चल रहे किरण कुमार रेड्डी ने दो दिन बाद अपनी पार्टी, जय समिक आंध्र पार्टी बनाई और विधानसभा चुनाव लड़ा। हालांकि, चुनावों में उनकी पार्टी के दयनीय प्रदर्शन के बाद वह 2018 तक राजनीति से हट गए, लेकिन बाद में वह कांग्रेस में फिर से शामिल हो गए। लेकिन कांग्रेस में अपने दूसरे कार्यकाल के दौरान वह निष्क्रिय रहे।
अब आइए समझते हैं कि ओवैसी के भाई अकबरुद्दीन ओवैसी को जेल की सलाखों के पीछे कैसे भेजा गया  … 
दरससल, ये साल 2014 की बात है जब किरण कुमार रेड्डी के सीएम कार्यकाल में आंध्र प्रदेश में ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) भी अपनी पकड़ बना चुकी थी। तब विधानसभा में AIMIM के 7 विधायक, 2 विधानपार्षद और हैदराबाद ग्रेटर म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन में 43 प्रतिनिधि थे। 2014 चुनाव के लिए AIMIM मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण की कोशिश में जुटी थी। इसी कोशिश में मीम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी के भाई अकबरुद्दीन ओवैसी ने नफरती बयान दे डाला। आपको वो बयान तो याद ही होगा जिसमें ओवैसी के भाई ने कहा था, ‘अगर पुलिस को 15 मिनट के लिए दूर रखा जाए तो 25 करोड़ मुसलमान 100 करोड़ हिंदुओं के लिए काफी हैं। ये भड़काऊ भाषण  22 दिसंबर 2012 को आदिलाबाद जिले के निर्मल में दिया गया था। इसके बाद अकबरुद्दीन ने कहा, किरण कुमार रेड्डी मुसलमानों के दुश्मन हैं।’ बस इसी को लेकर हेत स्पीच के मामले में अकबरुदीन को जेल की हवा खानी पड़ी। किरण कुमार रेड्डी तब खूब चर्चाओं में आए थे। लेकिन 2018 के बाद से किरण कुमार रेड्डी राजनीतिक रूप से इतने सक्रिय नहीं रहे।