बेंगलुरु। चांद की कक्षा में भारत का चंद्रयान-3 पहुंच गया। इससे विक्रम लैंडर भी अलग होकर चांद के चारों ओर 25×134 किलोमीटर की कक्षा में चक्कर काट रहा है। चांद पर आज शाम विक्रम लैंडर को उतारने की योजना इसरो ने बनाई है। आम लोगों को लगता है कि ये तो आसान काम होगा और पलक झपकते ही विक्रम लैंडर चांद की सतह पर उतर जाएगा। जी नहीं, चांद पर किसी भी यान को उतारने में क्या खतरा है, ये 2019 में चंद्रयान-2 के विक्रम लैंडर और शनिवार की रात रूस के लूना-25 का हाल देखकर पता चल जाता है। साल 2019 की देर रात चांद पर जब चंद्रयान-2 का विक्रम लैंडर उतारा जा रहा था, तब वो अचानक वहां की सतह पर जा गिरा और नष्ट हो गया। इसी तरह रूस का लूना-25 यान भी चांद पर उतारने की कोशिश से पहले ही उसकी सतह पर गिरकर नष्ट हो चुका है।
दरअसल, धरती पर यान उतारने और चांद पर यान उतारने में काफी अंतर है। चांद पर वायुमंडल नहीं है। धरती पर वायुमंडल होने के कारण किसी भी यान को उतारने के दौरान घर्षण से उसकी रफ्तार को कंट्रोल किया जा सकता है। चांद पर किसी यान की रफ्तार को कम करने का एकमात्र रास्ता उसमें लगे रॉकेट थ्रस्टर होते हैं। अगर ये थ्रस्टर ठीक से काम न करें, तो वायुमंडल के अभाव में यान की रफ्तार कम नहीं की जा सकेगी और वो धड़ाम से चांद की सतह पर जा गिरेगा। भारत के विक्रम लैंडर के साथ 2019 में और बीते दिनों रूस के लूना-25 यान के साथ यही हुआ था। अब बात विक्रम लैंडर की रफ्तार की भी कर लेते हैं।
विक्रम लैंडर चांद के चारों तरफ चक्कर लगा रहा है। ऐसे में जब उसे चांद पर उतारने की शुरुआत की जाएगी, तब विक्रम लैंडर की गति हर सेकंड 1400 मीटर से भी ज्यादा की होगी। इस गति को रॉकेट थ्रस्टर्स के जरिए लगातार घटाना होगा। चांद पर विक्रम लैंडर को उतारने के लिए उसकी रफ्तार 2 मीटर प्रति सेकंड लानी होगी। ये गति अधिकतम 3 मीटर प्रति सेकंड हो सकती है। इससे ज्यादा गति रही, तो विक्रम लैंडर चांद पर गिर जाएगा। यही सबसे कठिन वक्त रहेगा, जब इसरो के वैज्ञानिकों की सांस अटकी रहेगी। हालांकि, इसरो के प्रमुख एस. सोमनाथ का कहना है कि अगर लैंडर के दो इंजन और कुछ सेंसर खराब भी हो जाएं, तब भी ये चांद की सतह पर सकुशल उतर जाएगा, लेकिन फिर भी खतरा तो है ही। इसलिए हम सभी को ईश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए कि हमारा चंद्र अभियान आज चांद पर उतरकर दुनिया में झंडे फहरा दे।