बेंगलुरु। कर्नाटक में आज 224 विधानसभा सीटों के लिए चुनाव हो रहे हैं। इसके साथ ही कर्नाटक के दो समुदायों की तरफ सबकी नजर है। हर पार्टी इन दो समुदायों की तरफ हसरत भरी नजरों से देख रही है, क्योंकि इनका वोट जिसे मिलता है, वो ही कर्नाटक में सरकार बनाता है। इन दो समुदायों में से एक लिंगायत और दूसरा वोक्कालिगा है। इन दोनों समुदायों के ही सबसे ज्यादा वोटर कर्नाटक में हैं। कर्नाटक में लिंगायत की आबादी में 17 फीसदी की भागीदारी है। जबकि, वोक्कालिगा समुदाय आबादी का 14 फीसदी है। इनके अलावा हिंदू 84 फीसदी, मुस्लिम करीब 13 फीसदी, कुरुबा 8 फीसदी, अनुसूचित जाति 17 फीसदी और अनुसूचित जनजाति की 7 फीसदी आबादी है।
पहले बात लिंगायत की कर लेते हैं। ये समुदाय 12वीं सदी में अस्तित्व में आया था। भगवान शिव को मानता है, लेकिन हिंदुत्व से दूर है। कर्नाटक में लिंगायतों के करीब 500 मठ हैं और अपने समुदाय के वोटों का रुख मोड़ने में इन मठों के स्वामियों की बड़ी भूमिका रहती है। कर्नाटक विधानसभा की करीब 110 सीटों पर लिंगायत समुदाय के वोटर जीत और हार तय करते हैं। ऐसे में इस बार कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही लिंगायतों के वोट हासिल करने के लिए उनको लुभाने की कोशिश करते दिखे। कर्नाटक में लिंगायत समुदाय के बड़े नेताओं में बीएस येदियुरप्पा, जगदीश शेट्टार, मौजूदा सीएम बसवराज बोम्मई और केएस किरण कुमार का नाम लिया जाता है। इस समुदाय से कई सीएम कर्नाटक की सत्ता संभाल चुके हैं।
अब वोक्कालिगा समुदाय की बात करते हैं। इस समुदाय से अब तक कर्नाटक में 7 सीएम हो चुके हैं। इनके अलावा एचडी देवगौड़ा पीएम रहे हैं। वोक्कालिगा समुदाय कर्नाटक के 8 जिलों की 57 विधानसभा सीटों पर जीत और हार तय करते हैं। पिछली बार यानी 2018 में वोक्कालिगा बहुल सीटों में से जेडीएस ने 24, बीजेपी ने 15 और कांग्रेस ने 18 सीटों पर जीत हासिल की थी। वोक्कालिगा समुदाय से बड़े नेताओं में पूर्व पीएम एचडी देवगौड़ा, उनके बेटे एचडी कुमारस्वामी, के. चेंगलराय रेड्डी और के. हनुमंथैया हैं। जेडीएस को अमूमन वोक्कालिगा वोट देते रहे हैं, लेकिन इस बार बीजेपी सरकार ने मुसलमानों का जो 4 फीसदी आरक्षण खत्म किया, उसमें से 2 फीसदी वोक्कालिगा को देकर उसका आरक्षण 6 फीसदी कर दिया। इससे वोक्कालिगा वोट बीजेपी के पाले में भी खिसक सकते हैं।