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Bihar: आखिरकार चल ही दिया दांव…आरक्षण बढ़ाने पर नीतीश कैबिनेट ने लगाई मुहर, आज विधानसभा में भी पेश हुआ था प्रस्ताव

Bihar: वहीं, आरक्षण की सीमा बढ़ाए जाने के संदर्भ में बिहार सरकार आगामी 9 नवंबर को विधानसभा में विधेयक पेश करेगी। अगर विधयेक पारित हुआ, तो यह कानून का रूप धारण कर लेगा, जिससे अति पिछड़ों को आरक्षण मिलने की संभावना प्रबल होगी।

नई दिल्ली। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मंगलवार को कैबिनेट बैठक में आरक्षण की सीमा बढ़ाए जाने वाले प्रस्ताव पर मुहर लगा दी। बता दें कि मुख्यमंत्री ने आज इस संदर्भ में विधानसभा में प्रस्ताव पेश किया था, जिस पर सभी ने सहमति व्यक्त की थी। वहीं, आरक्षण की सीमा बढ़ाए जाने के संदर्भ में बिहार सरकार आगामी 9 नवंबर को विधानसभा में विधेयक पेश करेगी। अगर विधयेक पारित हुआ, तो यह कानून का रूप धारण कर लेगा, जिससे अति पिछड़ों को आरक्षण मिलने की संभावना प्रबल होगी। उधर, सियासी गलियारों में नीतीश सरकार के इस कदम को आगामी लोकसभा चुनाव 2024 को ध्यान में रखते हुए उनके बड़े सियासी दांव के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है।

बता दें कि सीएम नीतीश कुमार ने आज बिहार विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान आरक्षण की सीमा बढ़ाए जाने के संदर्भ में प्रस्ताव पेश किया था, जिस पर सभी ने सहमति व्यक्त की थी। सीएम ने अपने प्रस्ताव के अंतर्गत मांग की थी कि आरक्षण की सीमा को 50 फीसद से बढ़ाकर 75 फीसद किया जाए, जिसमें ओबीसी को 18%, EBC को 25%, SC को 20% और एसटी को 2% को आरक्षण दिए जाने का प्रावधान किया गया है। वहीं, विधानसभा में सीएम नीतीश द्वारा प्रस्ताव पेश किए जाने के बाद अब इस पर कैबिनेट की ओर से मुहर भी लगा दी गई है।

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ध्यान दें, बीते दिनों केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बिहार में एक जनसभा को संबोधित करने के क्रम में नीतीश कुमार पर जातिगत जनगणना की आड़ में मुस्लिमों और यादवों के प्रति उदार रवैया अपनाने का आरोप लगाया था। वहीं, गौर करने वाली बात है कि शाह के इन आरोपों के बाद आज नीतीश ने बिहार विधानसभा में जहां इस आरक्षण की सीमा को बढ़ाए जाने के संदर्भ में ना महज प्रस्ताव पेश किया, बल्कि कैबिनेट ने इस पर मुहर भी लगा दी।

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वहीं, आज बिहार विधानसभा में जातिजग जनगणना की रिपोर्ट भी पेश की गई, जिसके मुताबिक, रिपोर्ट में दिए गए शैक्षणिक आंकड़े बिहार के शैक्षणिक परिदृश्य की चिंताजनक तस्वीर उजागर करते हैं। केवल 22.67% आबादी ने 5वीं कक्षा तक स्कूली शिक्षा पूरी की है, जबकि मात्र 7% के पास स्नातक की डिग्री है। मात्र 14.33% 6ठी से 8वीं कक्षा तक पहुँचे हैं, 14.71% 9वीं और 10वीं कक्षा तक पहुँचे हैं, और 9.19% ने 11वीं से 12वीं कक्षा तक उच्च शिक्षा प्राप्त की है। रिपोर्ट विभिन्न जाति समूहों के भीतर गरीबी दर का भी विश्लेषण करती है। भूमिहार समुदाय में, 25.32% परिवारों को गरीब के रूप में वर्गीकृत किया गया है। ब्राह्मण गरीबी में रहने वाले अपने 25.3% परिवारों से निकटता से जुड़े हुए हैं। राजपूतों में गरीबी दर 24.89% है, जबकि कायस्थ और पठान (खान) समुदायों में क्रमशः 13.83% और 22.20% है। दूसरी ओर, सैय्यदों की दर अपेक्षाकृत कम है और उनके 17.61% परिवार गरीबी में हैं।

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रिपोर्ट में विभिन्न सामाजिक स्तरों पर अलग-अलग आय वर्ग के साथ आर्थिक असमानताओं को उजागर किया गया है। उदाहरण के लिए, सामान्य वर्ग में, लगभग 25% आबादी 6,000 रुपये तक की मासिक आय अर्जित करती है, जबकि 23% की आय 6,000 से 10,000 रुपये के बीच होती है। स्पेक्ट्रम के दूसरे छोर पर, 9% मासिक 50,000 रुपये से अधिक कमाते हैं। पिछड़ी जातियों में, गरीबी दर काफी अधिक है, 33% की आय 6,000 रुपये प्रति माह तक है, और 29% की आय 6,000 से 10,000 रुपये के बीच है। अत्यंत पिछड़ी जातियों में 33% 6,000 रुपये तक कमाते हैं, जबकि 32% 6,000 से 10,000 रुपये के दायरे में आते हैं। वहीं, सीएम नीतीश कुमार द्वारा आरक्षण पर लिए गए इस फैसले को सियासी गलियारों में आगामी लोकसभा चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है। सियासी विश्लेषकों की मानें, तो सीएम नीतीश ने लोकसभा चुनाव में बीजेपी के विजयी रथ को रोकने के मकसद से यह दांव चला है। बहरहाल, अब यह दांव आगामी दिनों में क्या रुख अख्तियार करता है। इस पर सभी की निगाहें टिकी रहेंगी।