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Opposition Split: सिद्धारामैया सरकार के शपथग्रहण के मौके पर ही एकजुट नहीं विपक्ष, लोकसभा चुनाव के लिए कैसे मिलाएंगे हाथ!

लग रहा था कि कर्नाटक में कांग्रेस की जीत अब अगले लोकसभा चुनाव में विपक्ष के गठबंधन का सबब बनेगा, लेकिन जिस तरह कांग्रेस ने तमाम विपक्षी दलों को सिद्धारामैया के शपथग्रहण से दूर रखा, उससे सवाल उठ रहे हैं कि जब ऐसे मौके पर ही विपक्ष एकजुट नहीं है, तो लोकसभा चुनाव के लिए हाथ कैसे मिलाएंगे!

बेंगलुरु। कर्नाटक में आज से कांग्रेस की सिद्धारामैया सरकार सत्ता संभालने जा रही है। सत्तारूढ़ बीजेपी को कांग्रेस ने बड़े अंतर से हराकर कर्नाटक में एक बार फिर सत्ता हासिल की है। कांग्रेस की कर्नाटक में इस जीत को बड़ा बताकर तमाम अन्य विपक्षी दलों ने बीजेपी और पीएम नरेंद्र मोदी को निशाना भी बनाया था और 2024 में उनकी सत्ता से विदाई की भविष्यवाणी करने लगे थे। ऐसे में लग रहा था कि कर्नाटक में कांग्रेस की जीत अब अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में विपक्ष के गठबंधन का सबब बनेगा, लेकिन जिस तरह कांग्रेस ने तमाम विपक्षी दलों को सिद्धारामैया के शपथग्रहण से दूर रखा, उससे सवाल उठ रहे हैं कि जब ऐसे मौके पर ही विपक्ष एकजुट नहीं है, तो लोकसभा चुनाव के लिए हाथ कैसे मिलाएंगे!

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कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने तमाम विपक्षी नेताओं को न्योता तक नहीं भेजा।

विपक्ष के अहम चेहरों में बीजेडी प्रमुख और ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक, तेलंगाना के सीएम और बीआरएस प्रमुख के. चंद्रशेखर राव, आंध्र प्रदेश के सीएम और वाईएसआरसीपी के प्रमुख जगनमोहन रेड्डी, केरल के सीएम पिनरई विजयन और दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल भी माने जाते हैं, लेकिन इन सभी को कांग्रेस की तरफ से सिद्धारामैया के शपथग्रहण में नहीं बुलाया गया है। जिन नेताओं को बुलाया भी गया, उनमें से भी टीएमसी सुप्रीमो और बंगाल की सीएम ममता बनर्जी और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने पहले से कार्यक्रम तय होने की बात कहकर सिद्धारामैया के शपथग्रहण में जाने से मना कर दिया है।

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तेलंगाना के सीएम और बीआरएस सुप्रीमो के. चंद्रशेखर राव।

तेलंगाना के सीएम और बीआरएस चीफ के. चंद्रशेखर राव ने तो शुक्रवार को कांग्रेस पर ही निशाना तक साधा है। चंद्रशेखर राव ने मीडिया के सवालों पर कहा कि हाल में आपने कर्नाटक चुनाव देखा। वहां बीजेपी हार गई और कांग्रेस जीत गई। कोई जीता, कोई हारा। क्या इससे कुछ बदलेगा? चंद्रशेखर राव ने कहा कि कुछ बदलने वाला नहीं है। पिछले 75 साल से कहानी दोहराती रहती है, लेकिन उनमें कोई बदलाव नहीं है। साफ है कि विपक्षी एकता की राह में कांग्रेस और बीआरएस के बीच फिलहाल दोस्ती की कोई संभावना नहीं बन रही है। ऐसा ही ऊपर लिखे तमाम दलों के साथ भी नजर आ रहा है।