नई दिल्ली। इजरायली कंपनी NSO के बनाए इलेक्ट्रॉनिक खुफियागीरी के सॉफ्टवेयर पेगासस के जरिए पत्रकारों, मंत्रियों, नेताओं और अन्य पर नजरदारी के बारे में आई खबरों का मोदी सरकार ने खंडन किया है। सरकार ने ऐसी खबरों को दुर्भावना से प्रेरित बताया है और कहा है कि ये उसको बदनाम करने का हथकंडा है। केंद्र सरकार के आईटी मंत्रालय की ओर से अमेरिका के Washington Post अखबार को दिए गए जवाब में कहा गया है कि भारत एक स्वस्थ लोकतंत्र है। यहां सभी नागरिकों की निजता के अधिकार का संरक्षण किया जाता है। मंत्रालय ने कहा है कि पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल 2019, आईटी गाइडलाइंस 2021 को सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने वालों के हितों की रक्षा करने के लिए ही लाया गया है।
मंत्रालय ने अखबार के ई-मेल पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि उसने सरकार को जो सवाल भेजा, उससे साफ है कि खबर को बिना किसी सबूत या हकीकत के पहले से तय आधार पर बनाया गया। ऐसे में लगता है कि खबर को छापने वाला मीडिया संस्थान खुद ही जांचकर्ता, अभियोजक और फैसला सुनाने वाली जूरी बन गया है। जबकि, हकीकत यह है कि पहले भी इस तरह की खबर आ चुकी है और तब पेगासस और भारत सरकार के बीच कथित रिश्तों के दावों के कोई सबूत नहीं दिए जा सके थे।
Government of India’s response to inquiries on the ‘Pegasus Project’ media report. pic.twitter.com/F4AxPZ8876
— ANI (@ANI) July 18, 2021
अपने जवाब में आईटी मंत्रालय ने अमेरिकी अखबार की खबर पर सवाल उठाते हुए यह भी कहा है कि सरकार ने संसद में पहले ही दिए गए जवाब में साफ कर दिया था कि उसने किसी भी सरकारी एजेंसी से अनधिकृत जासूसी नहीं कराई है। सरकार की ओर से ये भी कहा गया है कि कुछ लोगों की सरकारी नजरदारी के आरोपों का न कोई आधार है और न ही इसमें कोई सच्चाई है।
मोदी सरकार की ओर से भेजे गए जवाब में कहा गया है कि ऐसे में जो खबर छपी है, उसें भारत के लोकतंत्र और उसकी संवैधानिक संस्थाओं की छवि खराब करने की कोशिश ज्यादा दिख रही है। क्योंकि जब भी किसी पर खुफिया नजरदारी कराई जाती है तो संबंधित एजेंसी को इसके लिए उच्च स्तर पर मंजूरी लेनी होती है।