newsroompost
  • youtube
  • facebook
  • twitter

Delhi: राशन केंद्र का ठेकेदार अपना, वसूली एक्सट्रा, केजरीवाल की राजनीति ने गरीबों की कमर तोड़ी

Delhi: नेशनल फूड सिक्योरिटी एक्ट में एकदम साफ है कि इसके तहत चल रही योजना को किसी राज्य विशेष की योजना में शामिल नही किया जा सकता। इसलिए केंद्र की ओर से दिल्ली को ऐसी किसी अनुमति का सवाल नहीं उठता। सवाल यह भी है कि दिल्ली में सही व्यक्ति तक राष्ट्रीय खाद्यान्न योजना का राशन पहुंच रहा है या नहीं, इस बात की भी कोई गारंटी नहीं है। केंद्र इस योजना के तहत दिल्ली को हर साल 4.48 लाख मीट्रिक टन राशन देता है। दिल्ली के 72.78 लाख लोगों को केंद्र की योजना का लाभ मिलता है। मगर दिल्ली सरकार के असहयोग के चलते संकट की स्थिति खड़ी हो गई है।

नई दिल्ली। अरविंद केजरीवाल सरकार ने गरीबों की झोली में गिरने वाले राशन पर भी घटिया राजनीति की दीवार खड़ी कर दी है। केजरीवाल सरकार ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत आवंटित खाद्यान्न को अपनी स्कीम बताकर बांटने का फॉर्मूला तैयार किया है। इस फॉर्मूले की खासियत यह है कि इसके तहत दिल्ली में रह रहे गरीबों से अतिरिक्त पैसों की वसूली की जाएगी। राजनीति और कमाई के इस घटिया सिंडिकेट में ठेकेदारों को भी शामिल किया गया है। इन ठेकेदारों को हर साल इस स्कीम के तहत राशन दिया जाएगा और हर साल ठेका तय किया जाएगा। इस घालमेल के चलते इस पूरी योजना पर ही ग्रहण लग सकता है।

Arvind Kejriwal

नेशनल फूड सिक्योरिटी एक्ट में एकदम साफ है कि इसके तहत चल रही योजना को किसी राज्य विशेष की योजना में शामिल नही किया जा सकता। इसलिए केंद्र की ओर से दिल्ली को ऐसी किसी अनुमति का सवाल नहीं उठता। सवाल यह भी है कि दिल्ली में सही व्यक्ति तक राष्ट्रीय खाद्यान्न योजना का राशन पहुंच रहा है या नहीं, इस बात की भी कोई गारंटी नहीं है। केंद्र इस योजना के तहत दिल्ली को हर साल 4.48 लाख मीट्रिक टन राशन देता है। दिल्ली के 72.78 लाख लोगों को केंद्र की योजना का लाभ मिलता है। मगर दिल्ली सरकार के असहयोग के चलते संकट की स्थिति खड़ी हो गई है।

Ration

वन नेशन वन राशन कार्ड को क्रियान्वित करने में दिल्ली सरकार की हीला हवाली और अनिच्छा ने भी समस्या में खासा इजाफा किया है। इसने दूसरे प्रदेशों से आने वाले करीब 10 लाख प्रवासियों को इस सुविधा से वंचित कर रखा है। वे राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत उपलब्ध सब्सिडी वाला अनाज नहीं हासिल कर सकते। दिल्ली सरकार ने राशन की दुकानों में सुधार के लिए जरूरी पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम में सुधार को भी नहीं अपनाया है। वे सुधार जो केंद्र की पहल पर दूसरे राज्यों में लागू हो चुके हैं, दिल्ली में अब तक लागू नहीं हुए हैं। दिल्ली सरकार ने अप्रैल 2018 में करीब 2000 से उपर की फेयर प्राइस शॉप में ePoS मशीनों के इस्तेमाल को सस्पेंड कर दिया। तीन साल तक गुजारिश करने के बाद अब इन्हें वापिस लाया गया है मगर अब भी इनका समुचित इस्तेमाल नहीं हो रहा है। आलम यह है कि पीडीएस लेनदेन में आधार के प्रमाणन का राष्ट्रीय औसत 80 फीसदी है जबकि दिल्ली में ये शून्य फीसदी है। इसने राशन के पारदर्शी बंटवारे की पूरी प्रक्रिया को ही निशाने पर ले लिया है।

PM Modi and Arvind Kejriwal

दिल्ली सरकार में जड़ों तक जम चुके भ्रष्टाचार और लालफीताशाही का ये आलम है कि सरकार हाईकोर्ट का आदेश मानने को भी तैयार नहीं है। दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली रोजी रोटी अधिकार अभियान की ओर से दायर याचिका की सुनवाई करते हुए 27 अप्रैल 2020 को पीडीएस सिस्टम को चाक चौबंद बनाने का आदेश दिया था। हाईकोर्ट ने कहा था कि दिल्ली सरकार ये सुनिश्चित करेगी कि सभी राशन की दुकानें काम कर रही हों और वहां केंद्र और दिल्ली सरकार की बनाई नीतियों के मुताबिक राशन वितरण किया जा रहा हो। इस दुकानों का हफ्ते में सातों दिन संचालन बेहद जरूर है। मगर दिल्ली में इसे भी कागजी बना दिया गया। जमीन पर लागू करने की कोई सार्थक पहल नहीं हुई।

Arvind Kejriwal

दिल्ली सरकार की अपनी रिपोर्ट बताती है कि वह राशन के वितरण के मोर्चे पर बुरी तरह फेल रही है। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना इसका जीता जागता उदाहरण है। उनकी अपनी रिपोर्ट के मुताबिक उन्होंने मई महीने में केवल 68 फीसदी राशन का वितरण किया है और 5 जून तक ये हिस्सेदारी शून्य फीसदी है। ये हाल तब है जब दिल्ली महामारी से जूझ रही है। केंद्र की जांच में दिल्ली सरकार की इन फेयर प्राइस शॉप में जारी घालमेल खुलकर सामने आ चुका है। पिछले साल अगस्त और सितंबर के महीने में केंद्र की ओर से किए गए अचानक निरीक्षण के तहत 71 फेयर प्राइस शॉप के नमूने लिए गए जिसमें 42 इंसान के उपभोग के लिए असुरक्षित पाए गए। दिल्ली सरकार को केंद्र की ओर से लगातार आगाह किया जा रहा है। इसी साल 26 मार्च को दी गई अपनी एक्शन टेकन रिपोर्ट में दिल्ली सरकार ने बताया कि उसने सभी अधिकारियों को एडवायरी भेज दी हैं। बस यही बताकर दिल्ली सरकार ने खानापूर्ति कर ली। न कोई एक्शन लिया गया, न ही ठोस पहल की गई। कुल मिलाकर अपनी छवि चमकाने में मशगूल दिल्ली सरकार गरीबों के पेट पर लात मारने की दिशा में रोज एक कदम आगे बढ़ा रही है।