अगरतला। देश के 73वें गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख डॉ. मोहन भागवत ने पश्चिमी त्रिपुरा के खेयारपुर स्थित सेवाधाम में राष्ट्रीय ध्वज फहराया। कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करते हुए आरएसएस प्रमुख ने सुबह 8 बजे ध्वजारोहण किया और राष्ट्रगान का गायन इसके बाद हुआ। राष्ट्रध्वज फहराने के बाद मोहन भागवत ने लोगों को संबोधित किया। उन्होंने इस मौके पर देश के प्राचीन गणराज्यों की बात कही और लोगों से कहा कि उस दौरान लोगों का जीवन और उनके विचार सच्चे मायनों में लोकतंत्र को दर्शाते रहे। उन्होंने कहा कि प्राचीन गणराज्यों में लोग जिस तरह अपने देश के प्रति लगाव रखते थे, उसी तरह का लगाव भारत की मौजूदा लोकतांत्रिक परंपरा में भी होनी चाहिए।
भारत के प्राचीन लोकतंत्र में वैशाली और लिच्छवी गणराज्यों का इतिहास है। इन गणराज्यों में जनता के चुने हुए प्रतिनिधि ही शासन व्यवस्था संभालते थे। मोहन भागवत ने इस मौके पर जोर देते हुए कहा कि हमारे झंडे में सबसे ऊपर जो केसरिया रंग है, वो त्याग, बलिदान और हिम्मत का प्रतीक है। हमारे देश के राजाओं और आजादी के लिए बलिदान देने वालों ने इस रंग को अपने जीवन में आत्मसात किया। उन्होंने कहा कि भारत शांति चाहने वाला देश है। वो भाईचारा और शांति की बात पूरे दुनिया से कहता है।
भागवत ने कहा कि झंडे का हरा रंग प्रकृति को दर्शाता है। साथ ही ये देवी लक्ष्मी का भी परिचायक है। जो सुख और समृद्धि देती हैं। भागवत ने हरे रंग का विश्लेषण करते हुए कहा कि हमारा देश प्राचीन काल से ही धार्मिक परंपराओं और मान्यता को जगह देता रहा है। राष्ट्रध्वज में बीच का नीला चक्र हमारे सामाजिक और सांस्कृतिक धरोहरों की याद दिलाता है। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र को सही मायने में स्थापित करने के लिए भारत के मौजूदा तंत्र को सभी देशवासियों को आत्मसात कर उसका पालन करना चाहिए। ताकि हम दुनिया में और आगे बढ़ सकें और सभी देशों को लोकतंत्र की असली राह दिखाने में कामयाब हों।