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केंद्र द्वारा VAT की दरों पर कटौती करने के बाद अब तक इतने राज्यों ने किया इस फैसले का अनुसरण

VAT: केंद्र सरकार ने अपने फैसले में पेट्रोल की कीमत में 5 फीसद और डीजल की कीमत में 15 फीसद कटौती करने का फैसला किया था। इस बात को खारिज नहीं किया जा सकता है कि केंद्र सरकार के इस फैसले से कहीं न कहीं पेट्रोल-डीजल की कीमत में नरमी तो जरूर आएगी।

नई दिल्ली। कुछ महीनों बाद पांच राज्यों में चुनाव होने जा रहे हैं। ऐसे केंद्र सरकार को एक-एक कदम फूंक फूंक कर रखने की दरकार है, क्योंकि लंबे अर्से कांग्रेस समेत कई दल सत्ता सुख भोगने के लिए झटपटा रहे हैं। ऐसी स्थिति में केंद्र सरकार को सतर्क रहने की आवश्यकता है, अन्यथा उसकी चूक उस पर भारी पड़ सकती है। यह कहने कोई गुरेज नहीं होना चाहिए यह समय केंद्र समेत बीजेपी शाषित राज्यों के लिए अत्याधिक संवेदनशील है। वहीं, विगत कुछ दिनों से जिस तरह से आसमान छूते पेट्रोल-डीजल की कीमतों को लेकर विपक्षी दल केंद्र सरकार पर हमलावर थी। ऐसे में इस बात की पूरी संभावना थी कि आगामी चुनावों में बीजेपी की इसका नुकसान हो सकता है। लिहजा बीजेपी ने स्थिति की गंभीरता को भांपते हुए दिवाली से एक रात पहले देश की जनता को दीवाली का तोहफा दे देकर बड़ा दांव चल दिया था, जिस दांव में कांग्रेस शाषित राज्यों के लिए आगे खाई पीछे समुंद्र जैसी स्थिति बन गई थी। बात दें कि केंद्र सरकार ने पेट्रोल-डीजल की कीमतों को निर्धारित करने वाले वेट की दरों में कटौती करने का फैसला किया था।

केंद्र सरकार ने अपने फैसले में पेट्रोल की कीमत में 5 फीसद और डीजल की कीमत में 15 फीसद कटौती करने का फैसला किया था। इस बात को खारिज नहीं किया जा सकता है कि केंद्र सरकार के इस फैसले से कहीं न कहीं पेट्रोल-डीजल की कीमत में नरमी तो जरूर आएगी, लेकिन इस बीच यहां भी बड़ा सवाल था कि क्या केंद्र सरकार के इस फैसले पर कांग्रेस शाषित राज्य सरकारें अपनी मुहर लगाएंगी, क्योंकि एक बात तो साफ है कि केंद्र सरकार के इस फैसले पर बिना मुहर आम जनता को इसका फायदा नहीं मिलेगा। ऐसे यह सवाल पूछना लाजिमी था कि क्या केंद्र सरकार के इस फैसले की आगे राज्य सरकारों की ना-नुकड़ तो नहीं आम जनता के हित में बाधा बनेगी। खैर, जैसा सोचा था, वैसा हुआ नहीं। आखिरकार अब तक 25 राज्य केंद्र सरकार के उक्त फैसले पर अपनी मुहर लगा कर आम जनता को सस्ती कीमतों पर पेट्रोल व डीजल उपलब्ध करवाने की बात पर हामी भर चुके हैं।

कांग्रेस शासित राज्यों सरकारों द्वारा केंद्र सरकार के इस फैसले से तो यह साफ जाहिर होता है कि उन्हें शायद इस बात का अंदाजा पहले ही  चुका था कि अगर वे हर बार की तरह इस बार भी केंद्र के फैसले का विरोध करते हैं, तो उन्हें आम जनता के रोष का सामना करना पड़ सकता है, लिहाजा उन्होंने स्थिति की गंभीरता को भांपते हुए इस फैसले पर मुहर लगाना ही गवारा समझा।  वो भी ऐसी परिस्थिति में  जब कुछ माह बाद चुनाव होने जा रहे हैं। ऐसे में देखना होगा कि इस फैसले का कितना अस पड़ता है, लेकिन इस बीच कांग्रेस ने  केंद्र से वेट की दरों पर अतरिक्त कटौती की भी मांग की।