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सारागढ़ी की लड़ाई: जब 21 सिख सैनिकों ने 10 हजार अफगानों को चटा दी थी धूल

सुबह का वक्त था, तारीख 12 सितंबर 1897, अंग्रेजों से किले को खाली कराने के लिए 10 हजार अफगानों(Afghan) ने किले को चारों तरफ से घेर लिया। हमला होते ही  सिग्नल इंचार्ज ‘गुरुमुख सिंह’(Gurumukh Singh) ने लेफ्टिनेंट कर्नल जॉन हॉफ्टन को जानकारी दी।

नई दिल्ली। जंग के इतिहास के पन्नों में सारागढ़ी वीरता और अदम्य साहस का बेजोड़ उदाहरण है। 12 सितंबर 1897 को सारागढ़ी की लड़ाई में 21 सिखों ने वो कर दिखाया, जिसकी मिसाल आज भी दी जाती है। 10 हजार से ज्यादा अफगान सैनिकों को महज 21 सिखों ने धूल चटा दी थी। इस जंग ने कुर्बानी और वीरता की एक नई कहानी लिखी थी। सारगढ़ी की लड़ाई पर ही अक्षय कुमार अभिनीत केसरी फिल्म भी बनी थी। जिसने सफलता की नई कहानी लिखी थी।

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पाकिस्तान के उत्तर पश्चिम सीमांत इलाके के कोहाट ज़िले में सारागढ़ी का क़िला करीब 6000 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित है। 1880 के दशक में अंग्रेज़ों ने वहां पर तीन चौकियां बनाईं लेकिन अफगानों ने इसका विरोध किया। इसके चलते अंग्रेजों को अफगानों से लोहा लेना पड़ता। हालत ऐसी हो गई कि बाद में अंग्रजों को यह जगह खाली करनी पड़ी। 1891 में अंग्रेज़ों ने दोबारा अभियान चलाया और उन्हें गुलिस्तां, लॉक्हार्ट और सारागढ़ी में तीन छोटे क़िले बनाने की इजाजत मिल गई। इसके बाद अफगानों का विरोध अंग्रेजों को झेलना ही पड़ता।

27 अगस्त से 11 सितंबर 1897 के बीच अफगानों ने सारागढ़ी के किले पर कब्जे के लिए कई हमले किए। लेकिन 36वीं सिख रेजिमेंट ने हर बार उनके मंसूबों पर पानी फेर दिया। अंत में 12 सितंबर 1897 को 10 हजार अफगानों ने सारागढ़ी के किले पर हमला कर दिया।

Saragadhi Kesari

सुबह का वक्त था, तारीख 12 सितंबर 1897, अंग्रेजों से किले को खाली कराने के लिए 10 हजार अफगानों ने किले को चारों तरफ से घेर लिया। हमला होते ही  सिग्नल इंचार्ज ‘गुरुमुख सिंह’ ने लेफ्टिनेंट कर्नल जॉन हॉफ्टन को जानकारी दी। किले तक तुरंत मदद पहुंचाना काफी मुश्किल था। सैनिकों को मोर्चे पर डटे रहने का आदेश मिला। लांसनायक लाभ सिंह और भगवान सिंह ने अपनी रायफल उठा ली और दुश्मनों पर टूट पड़े। दुश्मनों को गोली से भूनते हुए आगे बढ़ रहे भगवान सिंह शहीद हो गए।

सिख सेना के सिपाही गुरमुख सिंह ने अंग्रेज अधिकारी से कहा- ‘हम भले ही संख्या में कम हो रहे हैं, पर अब हमारे हाथों में 2-2 बंदूकें हो गई हैं।  हम आख़िरी सांस तक लड़ेंगे’, इतना कह कर वह भी जंग में कूद पड़े। उधर सिखों के हौसले से, दुश्मनों के खेमे में हडकंप मच गया। मुट्ठीभर सिखों के तेवर देख अफगानों को एहसास हुआ कि किले के अंदर भारी संख्या में सेना मौजूद है। इन्हीं तेवरों की वजह से अफगानों के हौसले पस्त हो रहे थे।

Saragadhi rare pic

अफगानों ने लाख चाहा कि, किले की दीवार तोड़ दी जाय लेकिन वो अपने मंसूबों में कामयाब नहीं हो सके। हवलदार इशर सिंह अपनी टोली के साथ ‘जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल’ का नारा लगाया और दुश्मनों पर टूट पड़े। अफगानों में भगदड़ मचनी शुरू हो गई। सिखों की भी संख्या अब कम होती जा रही थी, लेकिन हौसला अभी भी उतना ही पक्का था। दोनों तरफ से गुत्थमगुत्था हुई जांबाज सिखों ने 20 से अधिक दुश्मनों को मार गिराया। लड़ते-लड़ते सुबह से रात हो गई और आखिरकार सभी 21 सिपाही शहीद हो गए। लेकिन तब तक वह करीब 500 से 600 अफगानियों को मार चुके थे। इस लड़ाई ने दुश्मनों का थका दिया और उनकी रणनीति भी फेल हो चुकी थी। नतीजा ये हुआ कि वे ब्रिटिश आर्मी से अगले दो दिन में ही हार गए।

 

21 जाबांज सिखों की इस लड़ाई की धमक ब्रिटिश पार्लियामेंट में भी गूंजी। इन बहादुर सिखों को लेकर ब्रिटिश पार्लियामेंट ‘हाउस ऑफ़ कॉमंस’ इन सिपाहियों की बहादुरी की तारीफ की थी। सभी 21 शहीद जवानों को परमवीर चक्र के बराबर विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित किया गया। ब्रिटेन में आज भी सरागढ़ी की इस लड़ाई को शान से याद किया जाता है। वहीं भारतीय सेना की सिख रेजीमेंट 12 सितम्बर को हर साल ‘सरागढ़ी दिवस’ मनाती है।