
पटना। बिहार में इस साल नवंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं। इस वजह से बिहार में सियासी पारा ऊपर है। आरजेडी और जेडीयू-बीजेपी की तरफ से गुणा-गणित का खेल चल रहा है। रमजान का महीना है। ऐसे में दोनों ही पक्ष इफ्तार पार्टियों के जरिए अपना दम दिखाने में लगे हैं। आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव ने सोमवार को एक इफ्तार पार्टी दी। इस इफ्तार पार्टी में आरजेडी के सहयोगी दल कांग्रेस का कोई नेता नहीं दिखा। वहीं, आरजेडी के एक और सहयोगी और वीआईपी पार्टी प्रमुख मुकेश सहनी भी लालू यादव की इफ्तार पार्टी से नदारद थे। लालू की इफ्तार पार्टी में पशुपति पारस जरूर पहुंचे। पशुपति पारस एनडीए के साथ तो हैं, लेकिन अपने भतीजे चिराग पासवान को मंत्री बनाए जाने से भी नाराज हैं।
इससे एक दिन पहले रविवार को बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने भी इफ्तार पार्टी दी थी। खास बात ये कि नीतीश कुमार की इफ्तार पार्टी का मुस्लिम संगठनों ने वक्फ संशोधन बिल के मसले पर बॉयकॉट किया था। इसके बावजूद नीतीश कुमार की इफ्तार पार्टी में बड़ी तादाद में मुस्लिम नेता और लोग आए थे। बीजेपी समेत सहयोगी दलों के नेता भी मौजूद थे। इसके बाद चिराग पासवान ने जो इफ्तार पार्टी दी, उसमें नीतीश कुमार और बीजेपी के नेता गए थे। ऐसे में नीतीश कुमार ने इफ्तार पार्टी में सभी सहयोगी दलों के नेताओं को जुटाकर साबित किया है कि एनडीए एकजुट है। वहीं, लालू यादव की इफ्तार पार्टी से कांग्रेस के नेताओं और मुकेश सहनी की गैर मौजूदगी ये संकेत दे रही है कि महागठबंधन में सबकुछ ठीक नहीं है।
कुछ वक्त पहले ही सूत्रों के हवाले से ये खबर आई थी कि बिहार कांग्रेस के नेताओं ने पार्टी आलाकमान से कहा है कि विधानसभा के चुनाव खुद के दम पर लड़ना चाहिए। वहीं, कांग्रेस के कन्हैया कुमार भी बिहार की यात्रा कर रहे हैं। सबको पता है कि कन्हैया कुमार के मामले में लालू यादव की आरजेडी सहज महसूस नहीं करती। बहरहाल, आने वाले दिनों में बिहार की सियासत में दांव-पेच के कई और दौर देखने को मिल सकते हैं। फिलहाल तो नीतीश कुमार और लालू यादव की इफ्तार पार्टियों की ही चर्चा हो रही है।