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Third Front: नीतीश को अगला राष्ट्रपति बनाने के लिए चंद्रशेखर राव खेल रहे गेम, लेकिन इसमें बिहार के CM के लिए बड़ा रिस्क

क्या नीतीश इस तीसरे मोर्च का हिस्सा बनेंगे ? फिलहाल तो ऐसा नहीं लगता, लेकिन सियासत संभावनाओं की जगह होता है। ऐसे में पहले भी बीजेपी का दामन झटककर अलग हो चुके नीतीश एक बार फिर इस खेल का हिस्सा बन सकते हैं, लेकिन इसमें खतरा कम नहीं है।

पटना। पिछले कुछ दिन से भारतीय राजनीति में नई सुगबुगाहट शुरू हुई है। ये सुगबुगाहट बीजेपी विरोधी तीसरे मोर्चे को लेकर है। इसमें अब ताजा एंट्री हुई है बिहार के सीएम नीतीश कुमार की। कल से चर्चा चल रही है कि नीतीश को बीजेपी विरोधी नया मोर्चा अगले राष्ट्रपति के चुनाव में खड़ा कर सकता है। चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की नीतीश से मुलाकात के बाद उन्हें अगला राष्ट्रपति चुनाव लड़ाने के बारे में चर्चाओं का दौर शुरू हुआ। लेकिन प्रशांत किशोर उर्फ पीके इस रणनीति का अहम हिस्सा होने के बाद भी असली खिलाड़ी नहीं हैं। इन चर्चाओं को बल देने वाले असली खिलाड़ी तेलंगाना के सीएम के. चंद्रशेखर राव हैं। राव ने बीते दिनों मुंबई जाकर शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे, प्रशांत किशोर और एनसीपी प्रमुख शरद पवार से मुलाकात की थी।

prashant kishor and nitish kumar

राव की इन मुलाकातों के अगले दिन ही प्रशांत किशोर पटना पहुंच गए और नीतीश से मिले थे। नीतीश ने इस मुलाकात के बारे में सिर्फ इतना कहा कि प्रशांत पुराने जानने वाले हैं और इस वजह से मिलने आए थे, लेकिन फिर उनके राष्ट्रपति बनने की चर्चा शुरू हो गई। आखिर तेलंगाना के सीएम राव इस दिशा में अचानक क्यों उतरे ? वजह ये है कि तेलंगाना में बीते कुछ स्थानीय चुनावों में राव की पार्टी को बीजेपी के हाथ पराजय का सामना करना पड़ा है। हालांकि, राव अब भी मजबूत हैं। अब उनका इरादा बीजेपी के खिलाफ खुला मोर्चा तो खोलना ही है, साथ ही नीतीश को साथ लेकर केंद्र की सियासत में अपने कदम मजबूत करना है। ऐसे में राव हर कोशिश कर रहे हैं। कांग्रेस की तीसरे मोर्चे की तरफ उदासीनता और ममता का कभी हां-कभी ना की रणनीति की वजह से भी वो तीसरे मोर्चे के बड़े नेता बनने की कोशिश में जुटे हैं।

Telangana Chief Minister K Chandrashekhar Rao

तो क्या नीतीश इस तीसरे मोर्च का हिस्सा बनेंगे ? फिलहाल तो ऐसा नहीं लगता, लेकिन सियासत संभावनाओं की जगह होता है। ऐसे में पहले भी बीजेपी का दामन झटककर अलग हो चुके नीतीश एक बार फिर इस खेल का हिस्सा बन सकते हैं, लेकिन इसमें खतरा कम नहीं है। एक तो बीजेपी को तमाम राज्यों में सरकार चलाने का फायदा है। वहीं, राज्यसभा में भी बीजेडी जैसे दल उसे समर्थन करते हैं। ऐसे में अगर नीतीश ने राष्ट्रपति चुनाव लड़ने का इरादा किया और मैदान में उतरकर हारे, तो उनकी सियासत का सफर वहीं खत्म हो जाएगा।