लखनऊ। यूपी एक ऐसा राज्य है, जहां से दिल्ली यानी केंद्र की सरकार बनने का रास्ता जाता है। 2014 में मोदी लहर चली। जिसमें यूपी ने बड़ा योगदान दिया। फिर 2017 में सूबे में बीजेपी की सरकार भी बन गई। इसी सरकार के कामकाज और मोदी की पॉपुलैरिटी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी को यूपी से सबसे ज्यादा सीटें दिला दीं। अब यूपी में फिर विधानसभा चुनाव हैं। इन चुनावों से पहले बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने साल 2007 की तरह फिर ब्राह्मण कार्ड खेला है। साल 2007 में बीएसपी ने ब्राह्मण, दलित और मुस्लिम गठजोड़ से सत्ता हासिल की थी। बीएसपी को लग रहा है कि इस बार भी ब्राह्मण अगर उसके पाले में आ गए, तो मायावती एक बार फिर सीएम बन सकेंगी। दरअसल, यूपी के 25 जिलों में ब्राह्मण वोटरों को अच्छी खासी तादाद है। बीएसपी की नजर इसी पर है।
जरा ब्राह्मण वोट बैंक वाली सीटों पर नजर दौड़ा लेते हैं। पूर्वी यूपी में प्रतापगढ़, फैजाबाद, गोण्डा, बलरामपुर यानी देवीपाटन, बस्ती, सिद्धार्थनगर, गोरखपुर, महाराजगंज, देवरिया, कुशीनगर, वाराणसी, जौनपुर, सोनभद्र, मिर्जापुर और संत रविदास नगर जिलों में ब्राह्मण वोटरों की तादाद 14 से 15 फीसदी के बीच है। साल 2007 में बीएसपी ने ब्राह्मण कार्ड खेलकर पूर्वांचल में परचम लहराया था। बात करें मध्य यूपी की, तो लखनऊ जिले में 13, कानपुर में 17 और रमाबाई नगर यानी कानपुर देहात में ब्राह्मण वोटरों की तादाद करीब 13 फीसदी है।
पश्चिमी यूपी का हाल भी जान लेते हैं। यहां के गाजियाबाद, अलीगढ़, बुलंदशहर, औरैया और महामायानगर में 12 फीसदी से ज्यादा ब्राह्मण वोटर हैं। जबकि, मथुरा जिले में ब्राह्मण वोटरों की तादाद करीब 17 फीसदी है। साल 2014, 2017 और 2019 में ब्राह्मणों ने बीजेपी को पसंद किया था, लेकिन इस बार बीएसपी और सपा भी इस वोट बैंक को लुभाने की कवायद में जुटी हैं। ब्राह्मण अभी चुप हैं। 2007 में उन्होंने बीएसपी के प्रति अपना लगाव पहले ही दिखा दिया था। इस बार ये चुप्पी क्या रंग लेगी, इसे लेकर कयास जारी हैं।