नई दिल्ली। दिल्ली सरकार में ट्रांसफर और पोस्टिंग संबंधी अध्यादेश की जगह लेने के लिए मोदी सरकार कल संसद में बिल पेश कर सकती है। पीएम नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में कैबिनेट ने पिछले दिनों इस बिल को मंजूरी दे दी थी। इस बिल के जरिए संविधान संशोधन किया जाएगा। इस वास्ते बिल को लोकसभा के साथ ही राज्यसभा से भी पास कराना होगा। लोकसभा में तो बीजेपी के पास अपने दम पर ही बहुमत है। एनडीए के बाकी सांसदों के साथ मिलकर आसानी से वहां बिल पास हो सकता है। वहीं, राज्यसभा में बीजेपी और एनडीए के पास बहुमत नहीं है। ऐसे में वहां का गणित दिलचस्प है।
दिल्ली में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी (आप) और बाकी विपक्षी दलों ने केंद्र सरकार की तरफ से ट्रांसफर और पोस्टिंग संबंधी बिल लाए जाने का विरोध किया है। कांग्रेस समेत विपक्ष के गठबंधन में सभी दलों ने बिल का विरोध करने की बात कही है। ये बात बीआरएस सुप्रीमो और तेलंगाना के सीएम के. चंद्रशेखर राव ने भी कही है। राज्यसभा में एनडीए के 114 सांसद हैं। ऐसे में बिल पास कराने के लिए और सांसदों की जरूरत है। आंध्र प्रदेश के सीएम और वाईएसआरसीपी के चीफ वाईएस जगनमोहन रेड्डी ने दिल्ली में ट्रांसफर और पोस्टिंग संबंधी बिल के समर्थन में वोट देने का फैसला किया है।
वहीं, माना जा रहा है कि ओडिशा में सत्तारूढ़ नवीन पटनायक की बीजेडी भी ट्रांसफर और पोस्टिंग संबंधी मोदी सरकार के बिल का समर्थन राज्यसभा में कर सकती है। साथ ही नामित सदस्य भी मोदी सरकार के पक्ष में वोट देंगे। ऐसे में अगर कोई बड़ा उलटफेर न हुआ, तो राज्यसभा में भी दिल्ली के अध्यादेश संबंधी बिल का पास होना अभी तय माना जा रहा है। इस बिल को पास कराकर मोदी सरकार ये भी साबित कर देगी कि उसके विपक्ष के नाम पर सभी दल एक साथ नहीं हैं। ऐसे में बिल पास होने से एकजुट होने में जुटे विपक्ष को भी झटका लगेगा। खास बात ये कि राज्यसभा और लोकसभा में वोटिंग के दौरान ये भी पता चलेगा कि उद्धव ठाकरे और शरद पवार के साथ कितने सांसद हैं। क्योंकि शिवसेना अब एकनाथ शिंदे के साथ है। वहीं, एनसीपी में शरद पवार के भतीजे अजित पवार बीते दिनों टूट करा चुके हैं। कुल मिलाकर ये बिल मोदी सरकार के लिए एक तीर से कई निशाने साधने जैसा भी होने जा रहा है।