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Congress: जब कांग्रेस ने अपने राज में तुर्कमान गेट पर दिखाया था बुलडोजर का कहर, पलक झपकते ही बेघर हो गए थे हजारों लोग

Congress : वो तारीख थी 16 अप्रैल…1976…भरी दोपहरी थी….दरख्तों पर परिंदे बसेरा डाले बैठे थे…तभी एकाएक बुलडोजर का काफिला गरीबों के आशियानों को जमींदोज करने के मकसद से तुर्कीमान गेट की संकरी गलियों पर दस्तक देता गया…आगे-आगे बुलडोजर तो पीछे –पीछे मजदूरों की टोली चली जा रही थी…कोई  अप्रिय घटना न घटे इसके लिए पुलिसकर्मियों समेत अन्य सुरक्षाबलों की भी टोली साथ में ही थी।

नई दिल्ली। जहांगीरपुरी में आज जो कुछ भी हुआ, उसने आज से तकरीबन चार दशक पहले के तुर्कमान गेट के खौफनाक मंजर को हम सभी के जेहन में तरोताजा कर दिया। तो आज से चार दशक पहले के खौफनाक दास्तां को जानने से पहले यह जान लीजिए कि आज जहांगीरपुरी में क्या कुछ हुआ। आज वहां उत्तरी दिल्ली नगर निगम शासन के निर्देशानुसार अवैध झग्गियों को ध्वस्त करने के लिए पहुंची थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के नतीजतन ध्वस्तिकरण की कार्रवाई बीच में ही रोकनी पड़ गई। दरअसल, जमीएत-उलेमा-ए-हिंद ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर ध्वस्तिकरण की कवायद को विराम देने को कहा, जिसके परिणामस्वरूप निगम को यह कार्रवाई रोकनी पड़ गई। विदित है कि निगम ने विगत दिनों हनुमान जयंती की शोभाय़ात्रा पर हुए पथराव के परिणामस्वरूप उपरोक्त कार्रवाई की है। तो चलिए यह तो रही हालिया घटनाक्रम। अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर जहांगीरपुरी में अवैध झुग्गियों के ध्वस्तिकरण का तुर्कीमान गेट से क्या सरोकार है। अब दोनों के बीच क्या सरोकार है, यह समझने से पहले आपको यह जानना होगा कि निगम की उपरोक्त कार्रवाई के उपरांत विपक्षी दलों ने केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।

Delhi Bulldozer News : 46 साल पहले जब  कांग्रेस सरकार के  बुल्डोजरों ने दिल्ली के तुर्कमान गेट पर बरपाया था कहर, जानिए पूरी कहानी

कोई मोदी सरकार पर जम्हूरियत का जनाजा निकालने की तोहमतें लगा रहा है, तो कोई जनसरोकारों के मुद्दों को सरकार द्वारा कुचलने का आरोप लगा रहा है और बीते कुछ दिनों से जिस तरह विपक्षी दलों द्वारा योगी सरकार पर बुलडोजर की कार्रवाई को लेकर उन पर निशाना साधा जा रहा है, इससे तो आप अवगत होंगे ही, लेकिन क्या आपको पता है कि केंद्र की मोदी सरकार पर निशाना साधने वाली कांग्रेस अपने पुरखाओं द्वारा किए गए तुर्कीमान गेट वाले कारनामे को भूल गई है। कांग्रेसी शायद यह भूल रहे हैं कि 1976 में इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री रहने के दौरान किस तरह इसी बुलडोजर का सहारा लेकर बेशुमार लोगों को बेघर, बेसहारा और लाचार छोड़ दिया गया था। तब कांग्रेस की ही सरकार थी, जब इंदिरा के फरमानों की तामील करते हुए डीडीए के अधिकारियों ने पल भर में ही लाखों गरीबों से उनका आशियाना छीनकर उन्हें दर-दर भटकने पर मजबूर कर दिया था। आपाताकाल के उस दौर में जिस तरह गरीबों के जख्मों पर नमक छिड़का गया था, उसे शायद ही कभी हर्फों में बयां किया जा सकता है। उस तारीख को शायद ही कभी भुलाया जा सकता है, जब न जाने कितने ही बाशिंदों को बेघर कर दिया गया था।

तुर्कीमान गेट का भयावह मंजर

वो तारीख थी 16 अप्रैल…1976…भरी दोपहरी थी….दरख्तों पर परिंदे बसेरा डाले बैठे थे…तभी एकाएक बुलडोजर का काफिला गरीबों के आशियानों को जमींदोज करने के मकसद से तुर्कमान गेट की संकरी गलियों पर दस्तक देता गया…आगे-आगे बुलडोजर तो पीछे –पीछे मजदूरों की टोली चली जा रही थी…कोई  अप्रिय घटना न घटे इसके लिए पुलिसकर्मियों समेत अन्य सुरक्षाबलों की भी टोली साथ में ही थी। थोड़ी देर में मजदूरों के ट्रांजिट से दीवारों को तोड़ना शुरू कर दिया था। बताया जाता है कि उस वक्त किसी ने भी विरोध नहीं किया था। बता दें कि उस वक्त कश्मीरी लाल के नेतृत्व में ध्वस्तिकरण की कवायद शुरू की गई थी। लेकिन बाद में लोगों को शक होने लगा कि दाल में जरूर कुछ काला है,लेकिन यहां तो पूरी दाल ही काली थी। जिसके बाद स्थानीय बाशिंदे कश्मीरी लाल की अगुवाई में चलाई जा रही ध्वस्तिकरण की प्रक्रिया का विरोध करने लगे। हालांकि, कश्मीरी लाल ने उन्हें अपनी तरफ से समझाने का प्रयास किया कि ऐसा कुछ भी नहीं है। आप लोगों को घबराने की जरूरत नहीं है। हम सिर्फ फूटपाथ ही तोड़ने के लिए आए हैं।

आपके मकानों को किसी भी प्रकार की क्षति नहीं पहुंचाई जाएगी। आप बिल्कुल महफूज रहिए। मगर अफसोस कश्मीर लाल करते भी क्या करते। आलाकमान के फरमानों के तामील की जिम्मेदारी के बोझ तले दबे कश्मीरी लाल ने  सभी बुलडोजर संचालकों को गरीबों के बेशुमार झग्गियों को ध्वस्त करने का निर्देश दे दिया और फिर क्या था। पलक झपकते ही न जाने कितने ही बाशिंदों के आशियाने हमेशा-हमेशा के लिए ध्वस्त हो गए। आपातकाल की बेमानी देखिए कि किसी भी अखबार ने उस खबर को प्रकाशित करना जरूरी नहीं समझा था। अपनी-अपनी टूटी-फूटी झुग्गियों के आगे बैठे लोग अपने अरमानों को बिरखते हुए देख रहे थे। हालांकि, इन सभी लोगों को मंगोलपूरी में 25 गज के आवास आवंटित किए गए थे। लेकिन उन आवासों की दुर्दशा दखिए कि न ही वहां रहने की समुचित व्यवस्था थी और न ही शौचालय की सुलभ उपलब्धता।शौचालायों में न पानी की व्यवस्था थी और न ही दरवाजे और न ही छत। शौचालय  के बाहर 50-50 लोगों  की कतारें देखने को मिला करती थी। कई लोग तो उस वक्त सरकार की तरफ से आवंटित किए गए आवासों को बेचकर दूसरी जगह भी चले गए थे। उस वक्त अगर किसी ने तत्कालीन हुकूमत के खिलाफ मोर्चा खोलने के बारे विचार भी किया तो उसके विचारों को पल्लवित होने से पहले ही कुचल दिया गया था। इस विध्वंसक घटनाओं को तत्कालीन लेखकों ने अपने-अपने तजुर्बातों के लिहाज अपनी कलम से समेटा है। तो ये था तत्कालीन कांग्रेस सरकार का जनहितों के मुद्दों को लेकर काल कवलित चेहरा।