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World Earth Day 2022: विश्व पृथ्वी दिवस पर जानिए कहानी उस राजा की जिसने पृथ्वी को उपजाऊ बनाया

World Earth Day 2022: आज हम आपको उन्हीं राजा के बारे में बताने जा रहे हैं। सनातन धर्म में पृथ्वी को माता का दर्जा दिया गया है। क्योंकि ये पृथ्वी ही है जो बिल्कुल एक मां की तरह अपने भीतर उपजी तमाम सामग्रियों से बच्चे की तरह हमारा पालन पोषण करती है।

नई दिल्ली। आज ‘विश्व पृथ्वी दिवस’ यानि world earth day है, यूं तो इस दिन को लेकर कुछ रटी रटाई बातें हैं, जो बचपन से हमारे दिमागों में किताबों और भाषणों के जरिए बैठाई गईं हैं कि इस दिन को मनाने की शुरूआत 1970 में हुई थी, सबसे पहले अमेरिकी सीनेटर गेनॉर्ड नेल्सन ने पर्यावरण की शिक्षा के तौर पर इस दिन की शुरूआत की थी। 1970 से एक साल पहले 1969 में कैलिफोर्निया के सांता बारबरा में तेल रिसाव की वजह से हुई त्रासदी में कई लोग आहत हुए और उन्होंने पर्यावरण संरक्षण की दिशा में काम करने का फैसला लिया, इसके बाद नेल्सन के आह्वाहन पर 22 अप्रैल को लगभग दो करोड़ अमेरिकियों ने पृथ्वी दिवस के पहले आयोजन में हिस्सा लिया था। ये वो सारी रटंत विद्या है जो हम और आप बचपन से सुनते आ रहे हैं लेकिन दुनिया की हर महत्वपूर्ण घटना का सेंटर पश्चिमी देश नहीं होते, बल्कि हमारा देश भारत तो युगों-युगों से पर्यावरण और पृथ्वी के संरक्षण को अपनी जीवनशैली में शामिल किए हुए है। हमारे पौराणिक इतिहास में एक ऐसे महान राजा का ज़िक्र मिलता है, जिन्होंने न केवल पृथ्वी को रहने लायक और उपजाऊ बनाया बल्कि ऐसे सूत्र भी दिए गए जिन पर चलकर आज भी पृथ्वी से जुड़ी समस्याओं का हल निकाला जा सकता है। आज हम आपको उन्हीं राजा के बारे में बताने जा रहे हैं। सनातन धर्म में पृथ्वी को माता का दर्जा दिया गया है। क्योंकि ये पृथ्वी ही है जो बिल्कुल एक मां की तरह अपने भीतर उपजी तमाम सामग्रियों से बच्चे की तरह हमारा पालन पोषण करती है।

कई विशेष अवसरों पर धरती की पूजा भी की जाती है। यहां तक कि सुबह धरती पर पैर रखने से पहले एक खास मंत्र बोलकर उससे क्षमा भी मांगी जाती है। पौराणिक ग्रंथों में भी पृथ्वी से जुड़ी कई कथाएं बताई गई हैं। ऐसी ही एक कथा राजा पृथु की भी है। पृथ्वी को राजा पृथु की पुत्री भी कहा गया है। श्रीमद्भावगत ग्रंथ के अनुसार, राजा पृथु को भगवान विष्णु के 24 अवतारों में से एक माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब भगवान वराह ने पृथ्वी को समुद्र से निकाला तो ये धरती काफी समय तक उबड़-खाबड़ रही। इस पर खेती संबंधी कोई भी काम नहीं किया जा सकता था, तब त्रेतायुग की शुरूआत में पृथु का जन्म हुआ, उनके पिता का नाम ‘वेन’ था। उनके शासनकाल में सबकुछ अव्यवस्थित था। ऋषि मुनि उनके व्यवहार से दुखी रहा करते थे। तब ऋषि-मुनियों ने एक कुशा को अभिमंत्रित करके वेन का वध कर दिया और उनकी भुजा का मंथन किया, जिसमें से पहले एक काला पुरुष प्रकट हुआ, जिसे केवट कहा गया। इसके बाद पृथु का जन्म हुआ। पृथु स्वयं भगवान विष्णु के अवतार थे। ऋषि मुनियों ने उन्हें धरती का पहला राजा स्वीकार किया। उस समय वेन के कुशासन के कारण धरती में अनाज पैदा होना बंद हो गया था और किसी भी तरह को कोई वनस्पति भी नहीं उगती थी। तब राजा पृथु ने शासन व्यवस्था को कर्म प्रधान बनाया और लोगों को खेती के लिए प्रेरित किया।

उस समय नदी, तालाब आदि नहीं थे। राजा पृथु ने धरती को समतल करने के साथ ही नदी, तालाब जैसी जगहों के लिए स्थान निर्धारित किए और लोगों को खेती के लिए प्रेरित किया। राजा पृथु ने ही सामाजिक व्यवस्था की आधारशिला भी रखी। पृथु ने धरती को अपनी पुत्री के रूप में स्वीकार किया और इसका नाम ‘पृथ्वी’ रखा। इस तरह संसार में कृषि एवं सामाजिक व्यवस्था की शुरूआत हुई। राजा बनने के बाद पृथु ने धर्म के अनुसार, बिना किसी भेद-भाव के प्रजा की सेवा का वचन लिया। राजा प्रथु ने पृथ्वी के संतुलित उपभोग और जरूरत के मुताबिक ही पृथ्वी के प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल करने जैसे सूत्र भी दुनिया को दिए ताकि आने वाली पीढ़ियां पृथ्वी का दोहन न करें। लेकिन आज के दौर में हम सभी पृथ्वी के अंधाधुंध दोहन के गवाह बन रहे हैं, जिससे प्रकृति को बेहद नुकसान पहुंच रहा है।