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अब नेपाल में हिंदी भाषा पर प्रतिबंध लगाने की तैयारी, अब सांसद कर रहे विरोध पूछा क्या चीन ने निर्देश दिए

फिलहाल आपको बता दें कि नेपाल सरकार के लिए हिंदी भाषा पर प्रतिबंध लगाना आसान नहीं होगा। नेपाली के बाद इस हिमालयी देश में सबसे ज्यादा मैथिली, भोजपुरी और हिंदी बोली जाती है।

नई दिल्ली। चीन के इशारों पर नाच रहे नेपाल ने पहले तो अपने देश के नए नक्शे में भारत के कब्जे वाली जमीन को अपने अधीन दिखाया और अब हिंदी को लेकर बड़ा कदम उठाया है। बता दें कि वहां की सरकार नेपाल की संसद में हिंदी भाषा को प्रतिबंधित करने पर विचार कर रही है। हालांकि हिंदी भाषा के मुद्दे पर जनता समाजवादी पार्टी की सांसद और मधेशी नेता सरिता गिरी ने सदन के अंदर जोरदार विरोध जताया।

China Nepal

क्या चीन से निर्देश दिए गए हैं?

दरअसल नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली देश में राष्ट्रवाद के सहारे अपने विरोधियों को खामोश करने में लगे हुए हैं। इसी के चलते वो भारत के खिलाफ कई कदम उठा चुके हैं। जिसमें नेपाल का नया नक्शा और अब नेपाल में हिंदी भाषा पर प्रतिबंध शामिल है। हिंदी भाषा के मुद्दे पर मधेशी नेता सरिता गिरी ने सदन के अंदर जोरदार विरोध जताया। उन्होंने कहा कि सरकार तराई और मधेशी क्षेत्र में कड़े विरोध को न्यौता दे रही है। उन्होंने ओली से पूछा कि क्या इसके लिए उन्हें चीन से निर्देश दिए गए हैं। उधर, जनता में कोरोना को लेकर ओली सरकार के खिलाफ पहले से ही नाराजगी है।

india nepal flag

हिंदी भाषा पर प्रतिबंध लगाना आसान नहीं

फिलहाल आपको बता दें कि नेपाल सरकार के लिए हिंदी भाषा पर प्रतिबंध लगाना आसान नहीं होगा। नेपाली के बाद इस हिमालयी देश में सबसे ज्यादा मैथिली, भोजपुरी और हिंदी बोली जाती है। नेपाल के तराई क्षेत्र में रहने वाली ज्यादातर आबादी भारतीय भाषाओं का ही प्रयोग करती है। ऐसी स्थिति में अगर नेपाल में हिंदी को बैन करने के लिए कानून लाया जाता है तो तराई क्षेत्र में इसका विरोध देखने को मिल सकता है। वैसे भी इन इलाकों के लोग सरकार से खुश नहीं हैं।

ओली कूटनीति में नेपाल के मोदी

दरअसल केपी ओली की पार्टी की अंदरूनी हालत ठीक नहीं चल रही है। पार्टी टूट की कगार पर है। पार्टी अध्यक्ष पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ ने ओली का इस्तीफा मांगा है और चेतावनी दी है कि ऐसा नहीं किया तो पार्टी तोड़ देंगे। दो पूर्व पीएम और कई सांसद भी ओली के खिलाफ हैं, पर ओली ने इस्तीफे से इनकार कर दिया है। नेपाल के वरिष्ठ पत्रकार केएम बीरेंद्र कहते हैं, ओली कूटनीति में नेपाल के मोदी हैं। भारत विरोधी रुख में उन्हें न सिर्फ फायदा, बल्कि विरोधियों को परास्त करने का हथियार भी मिला है।’

nepal pm oli

प्रचंड के पीएम बनते ही पार्टी में संघर्ष शुरू हो गया था। विपक्ष का डर दिखाकर ओली ने उन्हें गठबंधन और फिर विलय के लिए मजबूर किया। दूसरा, ओली और बामदेव गौतम को ढाई-ढाई साल के लिए पीएम बनना था। पर ओली ने लिपुलेख के मुद्दे को उभारा और प्रचंड को संगठन की बागडोर सौंपकर अगले ढाई साल भी अपने नाम कर लिए।