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चीन से खफा हैं भारत के ये दो पड़ोसी देश, वजह जानकर आप भी चौंक जाएंगे

म्यांमार के विद्रोही संगठनों को उकसाने और पनपने देने के पीछे चीन की रणनीति अस्ल में, बेल्ट और रोड प्रोजेक्टों को लेकर मानी जा रही है। चीन म्यांमार के साथ इकोनॉमिक कॉरिडोर को मज़बूत करना चाहता है।

नई दिल्ली। भारत के साथ चल रहे सीमा विवाद के बीच चीन के दो और पड़ोसी देशों ने चीन की गुंडागर्दी को लेकर नाराजगी जाहिर की है। चीन के पड़ोसी देश म्यांमार और भूटान का भारत से पुराने रिश्ते रहे हैं, वहीं चीन यहां भी अपनी विस्तारवादी नीति दिखाने से नहीं चू​क रहा है और छोटे व कमज़ोर देशों के सामने दबंगई दिखाने में लगा है।

shi jinping

हाल ही में म्यांमार ने रूसी मीडिया के सामने आधिकारिक तौर पर चीन का नाम लिये बगैर कहा कि ‘एक विदेशी ताकत’ उसकी ज़मीन पर विद्रोह और आतंक भड़काने के लिए साज़िश कर रही है। अंतर्राष्ट्रीय मामलों के जानकार इस ताकत का अर्थ चीन ही मान रहे हैं।

भूटान का हाल

वहीं भूटान की बात करें तो ग्लोबल एनवायरनमेंट फैसिलिटी की हालिया मीटिंग में चीन ने पूर्वी भूटान के ट्रैशियांग ज़िले में एक वन्यजीव अभयारण्य बनाए जाने का विरोध करते हुए कहा कि यह ज़मीन चीन और भूटान के बीच विवादित सीमा पर है।

हालांकि भूटान ने चीन के इस बयान को खारिज करते हुए कहा कि चीन के साथ जिन जगहों को लेकर बात चल रही है, यह अभयारण्य उनमें से किसी स्थान पर नहीं बन रहा और यह भूटान का पूरी तरह अंदरूनी और राष्ट्रीय मामला है। चीन के विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा कि चीन और भूटान के बीच सीमाएं कभी परिभाषित नहीं रहीं लेकिन नया विवाद कोई नहीं है। एचटी द्वारा जारी चीन के इस बयान में यह भी कहा गया है कि भूटान और चीन के बीच सीमा विवाद के बीच किसी तीसरे को नहीं आना चाहिए… यह साफ तौर पर भारत को चेतावनी है।

Bhutan China

म्यांमार की सीमाओं पर चीन की मदद से आतंक

इसके अलावा जिस तरह पाकिस्तान को भारत की ज़मीन पर आतंकवाद फैलाने का दोषी माना जाता है, उसी तरह चीन को म्यांमार का। खबरों की मानें तो म्यांमार की सीमाओं पर चीन 23000 की बड़ी आर्मी को हथियार, ट्रेनिंग और वित्तीय सहायता दे रहा है। विश्लेषकों का मानना है कि म्यांमार की सीमाओं पर चीन की मदद से जो आतंक फलता फूलता है, वह भारत के उत्तर पूर्वी राज्यों में ULFA और NSCN(K) उग्रवादी संगठनों का मददगार साबित होता है।

myanmar

म्यांमार के विद्रोही संगठनों को उकसाने और पनपने देने के पीछे चीन की रणनीति अस्ल में, बेल्ट और रोड प्रोजेक्टों को लेकर मानी जा रही है। चीन म्यांमार के साथ इकोनॉमिक कॉरिडोर को मज़बूत करना चाहता है। इससे चीन को बंगाल की खाड़ी क्षेत्र में एक तरह का वर्चस्व मिल सकता है, जो भारत पर दबदबा बनाने में कारगर साबित होगा। दूसरी तरफ, आतंकियों को मदद कर चीन म्यांमार सरकार पर दबाव बनाने के साथ ही, म्यांमार की ज़मीन से दूसरे देशों को दूर रखना चाह रहा है।

ताज़ा आरोपों से पहले भी म्यांमार ने चीन पर उसके अंदरूनी मामलात में दखलंदाज़ी करने के आरोप लगाए हैं.। 2016-2017 में रोहिंग्या मुसलमानों के संकट के समय म्यांमार की छवि दुनिया भर में खराब हुई थी। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो तब म्यांमार को चीन पर काफी निर्भर होना पड़ा था। हालांकि इससे पहले भी 1990 के दशक तक भी चीन का दबाव म्यांमार पर काफी बढ़ चुका था। एक तरफ, चीन न केवल म्यांमार में आंतक भड़काने में लगा है, दूसरी तरफ चीन खुद को शरीफ साबित करने के लिए म्यांमार और विद्रोही संगठनों के बीच मध्यस्थता कराने का नाटक भी करता है।