मॉस्को। सोवियत संघ (अब रूस) के अंतिम राष्ट्रपति रहे मिखाइल गोर्बाचेव का निधन हो गया है। वो 91 साल के थे। अमेरिका से शीतयुद्ध को खत्म करने के लिए दुनियाभर में पहचान रखने वाले गोर्बाचेव लंबे समय से बीमार थे। रूस की समाचार एजेंसी स्पुतनिक के मुताबिक मॉस्को के सेंट्रल क्लिनिकल हॉस्पिटल में उनका निधन हुआ। यूनाइटेड यूनियन ऑफ सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक USSR के अंतिम बड़े नेताओं में शामिल मिखाइल गोर्बाचेव के दौर में सोवियत संघ में उदार नीति अपनाई। अमेरिका से दशकों पुरानी दुश्मनी खत्म करने की कोशिश की। वो लोकतंत्र के हिमायती थे। 1989 में जब कम्युनिस्ट सोवियत संघ में लोकतंत्र समर्थक और विरोध की आवाजें तेज हुईं, तो गोर्बाचेव ने प्रदर्शनकारियों पर सख्ती भी नहीं बरती।
एक गरीब परिवार में 1931 में गोर्बाचेव का जन्म हुआ था। उन्होंने कानून की पढ़ाई की थी। सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी में वो महासचिव, सुप्रीम सोवियत प्रेसिडियम के अध्यक्ष और सुप्रीम सोवियत के अध्यक्ष रहे। सोवियत संघ खत्म होने के बाद उन्होंने एक बार राष्ट्रपति पद का चुनाव भी लड़ा, लेकिन हार गए। वो मौजूदा राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन के बड़े आलोचकों में से थे। सूचना के व्यापक प्रसार की ग्लासनोस्त की नीति पर गोर्बाचेव चले। इससे पहले सोवियत संघ में इसपर सरकार ने अंकुश लगा रखा था। उन्होंने आर्थिक सुधार के लिए पेरेस्त्रोइका यानी पुनर्गठन का कार्यक्रम भी शुरू किया। उस वक्त लंबे शीतयुद्ध की वजह से सोवियत संघ की आर्थिक हालत काफी खराब थी। देश मुद्रास्फीति और जरूरी चीजों की आपूर्ति की कमी से जूझ रहा था। मिखाइल गोर्बाचेव ने देश में स्वतंत्र मीडिया और कला को भी आजादी देने का काम किया।
उनके वक्त ही सोवियत संघ में शामिल देश एक-एक कर आजाद होते रहे। इसलिए गोर्बाचेव को तमाम लोगों की नाराजगी का भी शिकार बनना पड़ा। इसके बाद भी वो अपने रास्ते से नहीं डिगे और देश को तमाम शिकंजे से मुक्त करने का काम जारी रखा। गोर्बाचेव ने सुधारों की शुरुआत के लिए हजारों राजनीतिक कैदियों को भी रिहा किया। अमेरिका के साथ उन्होंने परमाणु हथियार कम करने के लिए समझौता किया। सोवियत संघ के राष्ट्रपति पद से हटने के बाद 1990 में मिखाइल गोर्बाचेव को नोबल शांति पुरस्कार भी दिया गया। इसकी वजह अफगानिस्तान से सोवियत सेना की वापसी और अमेरिका से जारी शीतयुद्ध को खत्म करना रहा।