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Afghanistan: बिलियन डॉलर में कमाई कर रहा तालिबान, यहां से हो रही नोटों की सप्लाई

Afghanistan: यूनाइटेड नेशन ऑफिस ऑन ड्रग्स एंड क्राइम के अनुमान के मुताबिक साल 2020 में अफगानिस्तान की 2,24,000 हेक्टेअर जमीन अफीम की खेती में इस्तेमाल की जा रही थी। तालिबान ने कमाई के और भी  चैनल खोल रखे हैं। अफीम उगाने वाले किसानों से 10 फीसदी का कल्टीवेशन यानि अफीम उगाने का टैक्स लिया जाता है।

नई दिल्ली। तालिबान की अफगानिस्तान में जीत के पीछे ब्लैक इकोनॉमी का चक्रव्यूह है। तालिबान ने अपनी कमाई के रास्ते तय कर रखे हैं। आतंक के नशे में चूर तालिबान की कमाई का असली स्रोत नशा है। अफीम की स्मगलिंग लंबे वक्त से तालिबान के हथियारों की आवक का सबसे बड़ा जरिया बनी हुई है। अनुमान के मुताबिक तालिबान नशे के इस रूट के जरिए पिछले कुछ सालों से सालाना 1.5 बिलियन डॉलर की कमाई कर रहा है। साल 2016 में फोर्ब्स पत्रिका की रिपोर्ट में तालिबान को दुनिया का पांचवा सबसे अमीर आतंकी संगठन बताया गया था जिसकी कमाई का 60 फीसदी हिस्सा ड्रग्स के कारोबार से आता है। ये वही ड्रग्स है जो शरीया मे हराम है। मगर शरीया के आधार पर शासन करने का दावा करने वाले तालिबान ने इस बात को सुनिश्चित किया है कि अफीम उसकी फंडिंग का सबसे बड़ा सोर्स बनी रहे और इसके वास्ते अफगानिस्तान को दुनिया में अफीम की खेती का सबसे बड़ा ठिकाना बने रहने में पूरा सहयोग किया गया है। यूनाइटेड नेशन ऑफिस ऑन ड्रग्स एंड क्राइम के अनुमान के मुताबिक साल 2020 में अफगानिस्तान की 2,24,000 हेक्टेअर जमीन अफीम की खेती में इस्तेमाल की जा रही थी। तालिबान ने कमाई के और भी  चैनल खोल रखे हैं। अफीम उगाने वाले किसानों से 10 फीसदी का कल्टीवेशन यानि अफीम उगाने का टैक्स लिया जाता है।

Taliban Militant

इसके बाद उन लैबोरेटरीज से टैक्स वसूला जाता है जहां अफीम को हिरोइन में कंवर्ट किया जाता है। अफगानिस्तान में इस तरह की लैबोरेट्रीज की भरमार है। ये सब तालिबान की छत्रछाया में हो रहा है। एक अनुमान के मुताबिक 400 से 500 लैबोरेटरीज अफीम को हेरोइन में बदलने के काम में लगी हुई हैं। अमेरिकन आर्मी की रिपोर्ट कहती है कि तालिबान की कमाई का करीब 60 फीसदी हिस्सा अफीम को हिरोइन में बदलने वाली ऐसी ही लैबों से आता है।

तालिबान इसके साथ ही उन स्मगलिंग समूहों पर भी टैक्स थोपता है जो इस अवैध अफीम और हिरोइन की स्मगलिंग करते हैं। ड्रग्स के इस अवैध धंधे में तालिबान का हिस्सा 100 से 400 मिलियन डॉलर के बीच बताया जाता है। तालिबान ने अवैध कमाई के दूसरे रास्ते भी तलाशे हैं। इनमें टेलीकम्युनिकेशन, मोबाइल फोन ऑपरेटर और इलेक्ट्रिसिटी का इस्तेमाल करने वालों पर टैक्स और जीते हुए इलाकों में की गई लूट शामिल है।

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अफगानिस्तान खनिज पदार्थों के मामले में भी बेहद समृद्ध है। यहां जमकर अवैध खनन होता है जिसके लिए टैक्स की उगाही की जाती है। इस अवैध माइनिंग से 50 मिलियन डॉलर सालाना का राजस्व हासिल होता है। तालिबान को पाकिस्तान के रास्ते भी फंड की आपूर्ति की जाती है ताकि पाकिस्तान में बैठे आतंक के आकाओं के हाथ में उनका मोहरा सलामत रहे। इसके साथ ही रूस और ईरान से भी तालिबान को फंडिग की खबरें हैं। कुछ फंडिंग धर्म के आधार पर भी की जाती है। इसमें सउदी अरब, कतर, यूएई और पाकिस्तान में बैठे कट्टरपंथी विचारधारा के नुमाइंदे अहम योगदान करते हैं।

संयुक्त राष्ट्र की एनालिटिकल सपोर्ट एंड सैंक्शंस मॉनिटरिंग रिपोर्ट तालीबान की अवैध खनन के जरिए हो रही कमाई की कलई खोलती है। इस रिपोर्ट के मुताबिक तालिबान दक्षिणी हेलमेंद में चलने वाली अवैध खनन की 25 से 30 माइंस के जरिए हर साल 10 मिलियन डॉलर की कमाई कर रहा है। उधर नाटो की रिपोर्ट के मुताबिक तालिबान को अवैध माइनिंग के जरिए हर साल 460 मिलियन डॉलर और निर्यात के जरिए 240 मिलियन डालर की कमाई हो रही है। तालिबान की इस कमाई में प्रोटेक्शन मनी का अहम हिस्सा है। ये रकम प्राइवेट सिटीजन से लेकर उद्योग धंधों और संगठनों से उनकी सलामती की एवज में वसूल की जाती है।

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साल 2019-20 की नाटो की रिपोर्ट में तालिबान की कमाई का कच्चा चिट्ठा पेश किया गया है। इसके मुताबिक तालिबान को खनन से 400 मिलियन डॉलर की कमाई होती है। ड्रग्स से 416 मिलियन डॉलर उसकी झोली में आते हैं। जबकि विदेशी सहायता से 240 मिलियन डॉलर उसे मिलते हैं। जबरन वसूली से 160 मिलियन डॉलर सालाना उसके हाथों मे आते हैं। इसी तरह रियल एस्टेट से 80 मिलियन डॉलर की उसकी कमाई होती है। इसी काली कमाई का उपयोग तालिबान आतंक की मंडी सजाने में करता आया है।