नई दिल्ली। हर साल आषाढ़ के महीने में पड़ने वाली देवशयनी एकादशी से चातुर्मास शुरू हो जाता है, जो पूरे चार महीने तक चलता है। कार्तिक मास की देवउत्थठान एकादशी पर चातुर्मास सपन्न होता है। कहते हैं कि देववशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु चार महीने शयन अवस्था में चले जाते हैं, और देवउत्थठान एकादशी के दिन निंद्रा अवस्था से बाहर आते हैं। ऐसे में लोगों के मन में एक सवाल जरूर आता है कि इस दौरान विशेषरूप से किन देवी-देवता का पूजन किया जाना चाहिए।
मान्यता है कि चातुर्मास में श्री हरि भगवान समेत सभी देवता 4 महीने के लिए राजा बलि के यहां पाताल लोक में योगनिद्रा में चले जाते हैं। इसलिए इस दौरान भगवान शिव के हाथों में सारी सृष्टि का संचालन रहता है। यही वजह से है कि इस महीने में शिव जी का पूजा का अधिक महत्व रहता है। धार्मिक शास्त्रों की मानें तो आषाढ़ महीने में भगवान विष्णु, सूर्यदेव, मंगलदेव, दुर्गा और हनुमानजी की पूजा करने से दोगुना फल प्राप्त हो सकता है।
खासतौर पर आषाढ़ के महीने में भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा की जाती है। मान्यता है कि ऐसा करने से अधिक पुण्य प्राप्त होता है। आषाढ़ में श्रीहरि विष्णु के वामन रूप की पूजा, श्रावण महीने में शिव और पार्वती की पूजा, भाद्रपद में श्री गणेश और श्रीकृष्ण की पूजा करने से अत्यधिक लाभ प्राप्त होता है। आषाढ़ के महीने के अंतिम पांच दिनों में भगवान वामन की पूजा का विशेष महत्व माना जाता है।
भगवान विष्णु के अलावा इस दौरान जलदेव की विशेष उपासना करने से व्यक्ति को धन की प्राप्ति भी होती है। मंगल और सूर्य देव की उपासना से ऊर्जा का स्तर भी बना रहता है। कहते हैं कि इस महीने में भगवान विष्णु और देवों के देव महादेव की कृपा पाने के लिए जातक को विशेष व्रत, उपवास और पूजा करनी चाहिए। मान्यताएं हैं कि कार्तिक माह के 15 दिन देवउठनी एकादशी तक दोबारा भगान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा का विधान होता है।