नई दिल्ली। हिंदू धर्म में हर महीने दो एकादशी पड़ती है, जिसमें लोग व्रत रखकर मनोवांछित फल की कामना करते हैं। चैत्र मास की कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी ‘पापमोचिनी एकादशी’ कहलाती है। भविष्योत्तर पुराण में पापमोचिनी एकादशी के बारे में विस्तृत वर्णन मिलता है। हिन्दू शास्त्रों के अनुसार, संसार में ऐसा कोई भी प्राणी नहीं है, जिसने जाने-अनजाने में कोई पाप न किया हो। ऐसी मान्यता है कि पाप दंडों से बचने के लिए पापमोचिनी एकादशी का व्रत रखा जाता है। इस एकादशी का व्रत रखने से पापों से मुक्ति मिलने के साथ-साथ सभी मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं। पापों का नाश करने वाले त्योहार के कारण इसे पापमोचिनी एकादशी कहा जाता है। इस बार ये व्रत इस वर्ष सोमवार यानी 28 मार्च को पड़ रही है।
इस व्रत में भगवान विष्णु के चतुर्भुज रूप की पूजा करने की परंपरा है। एकादशी तिथि पर जागरण करने से कई गुणा फल प्राप्त होता है। इसलिए उपासक एकादशी में रात में भी निराहार रहते हैं और भजन-कीर्तन करते हुए जागरण करते हैं। इसके अलावा इस व्रत को रखने और विधिपूर्वक पूजा करने से लोगों के शारीरिक और मानसिक कष्ट भी दूर होते हैं। ये व्रत बुरे और गलत कार्यों से दूर रहने और दरिद्रता दूर करने में भी सहायक होता है। पापमोचिनी एकादशी का व्रत रखने से सभी दुख दूर होते हैं और जीवन में सुख-शांति व समृद्धि आती है।
पूजा-विधि
एकादशी से एक दिन पहले, सूर्यास्त के बाद भोजन ग्रहण न करें। सुबह जल्दी उठकर स्नान करके व्रत का संकल्प लें। इसके बाद भगवान विष्णु के सामने धूप-दीप आदि जलाकर विष्णुजी को चंदन का तिलक लगाएं और पुष्प, सात मोती, प्रसाद आदि अर्पित करें। इसके बाद व्रत की कथा पढ़ें और विष्णुजी की आरती करें। एकादशी को पूरे दिन भगवान विष्णु का ध्यान करें। इसके दूसरे दिन द्वादशी को सुबह पूजन करें और इसके बाद ब्राह्मण या गरीबों को भोजन कराएं और उन्हें दान-दक्षिणा दें। इसके बाद स्वयं भोजन ग्रहण करके विष्णु जी का ध्यान करते हुए व्रत का समापन करें।
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