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मुख्तार की मौत को सियासी मुद्दा बनाने से विपक्ष को नुकसान ही होगा

विपक्ष इस मुद्दे को भुनाने की पूरी कोशिश करेगा लेकिन जानकारों की मानें तो इस मुद्दे पर सियासत करने से विपक्ष को नुकसान ही होगा, इसके पीछे सबसे बड़ा कारण मुख्तार की माफिया और बाहुबली वाली छवि है।

नई दिल्ली। माफिया मुख्तार अंसारी के मरने के बाद सूबे की सियायत गरमा गई है। डॉक्टरों का कहना है कि मुख्तार की मौत कार्डियक अरेस्ट के चलते हुई है। रानी दुर्गावती मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. सुनील कौशल ने इस बात की पुष्टि की है। उनका कहना है कि उसे बेहोशी की हालत में यहां पर लाया गया था। वहीं विपक्ष ने अपना वोट बैंक मजबूत करने के लिए मुख्तार की मौत के बाद सियासत करना शुरू कर दिया है। उदारहण के तौर पर मुख्तार की मौत को लेकर स्‍वामी प्रसाद मौर्य ने एक्‍स पर ल‍िखा, यह स्वाभाविक मौत नहीं हत्या की साज‍िश प्रतीत होती है, पहले डॉक्टरों के पैनल ने अस्पताल से डिस्चार्ज किया और कुछ घंटों बाद ही मौत हो जाना, परिजनों द्वारा लगाए गए हत्या की साजिश की पुष्टि करती है। पूरे घटनाक्रम की जांच उच्च न्यायालय की देखरेख में होनाी चाहिए। वहीं बिहार में तेजस्वी यादव ने भी मुख्तार की मौत पर तीखे बोल बोले और कहा कि यह हत्या है। अपनी पार्टी का विलय कर कांग्रेस में शामिल हुए पप्पू यादव ने भी मुख्तार की मौत पर सवाल उठाए हैं।

बहरहाल, विपक्ष इस मुद्दे को भुनाने की पूरी कोशिश करेगा लेकिन जानकारों की मानें तो इस मुद्दे पर सियासत करने से विपक्ष को नुकसान ही होगा, इसके पीछे सबसे बड़ा कारण मुख्तार की माफिया और बाहुबली वाली छवि है। इसी छवि के चलते अखिलेश यादव भी अंसारी बंधुओं से दूरी बनाए रखते हैं। मुख्तार अंसारी पांच बार मऊ जिले की घोसी विधानसभा सीट से विधायक रहा, लेकिन मुख्तार की दंबगई के चलते उसकी तूती पूर्वांचल में मऊ, गाजीपुर, बलिया, बनारस और आजमगढ़ की करीब दो दर्जन विधानसभा सीटों पर बोलती थी। मुख्तार का खौफ इतना था कि उसके खिलाफ पूरे पूर्वांचल में कोई भी बोलने की हिम्मत नहीं करता था। 17 सालों से जेल में बंद रहने के बाद भी मुख्तार का रुवाब कायम था।

विपक्षी दल के नेता जिस तरह से मुख्तार अंसारी की मौत की न्यायिक जांच की मांग कर रहे उससे भाजपा के लिए वोटों का ध्रुवीकरण हो सकता है क्योंकि मुख्तार के चलते बहुसंख्यक समाज के बहुत से लोग पीड़ित थे। मुख्तार अंसारी भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या करवाने में भी शामिल था। मुख्तार पर दर्जनों अपराधिक मामले दर्ज थे।

योगी के मुख्यमंत्री बनते ही कसने लगा था शिकंजा

2017 में जब योगी आदित्यनाथ ने यूपी की कमान संभाली और मुख्यमंत्री बने तभी से मुख्तार अंसारी पर शिकंजा कसा जाने लगा था। मुख्तार भले ही जेल में बंद था लेकिन उसका राजनीतिक रसूख बरकरार था। मुख्तार को पंजाब से यूपी लाने के लिए तो यूपी सरकार को सुप्रीम कोर्ट तक जाकर लड़ाई लड़नी पड़ी थी। इसके बाद ही मुख्तार को पंजाब से यूपी की बांदा जेल लाया जा सका था। यह सारी कवायद मुख्तार के खिलाफ इसलिए की गई थी ताकि पूर्वांचल में अंसारी के सियासी असर को खत्म किया जा सके। मुख्तार पूर्वांचल के बाहुबली के तौर पर प्रसिद्ध था। जब योगी आदित्य नाथ गोरखपुर से सांसद थे तो मुख्तार पर उनके बीच हुई जबानी जंग भी जग जाहिर है। 2005 में जब मऊ में सांप्रदायिक दंगे हुए थे तब योगी सूबे में स्वयं को प्रखर हिंदूवादी चेहरे के तौर पर स्थापित करने में जुटे थे। दंगों के चलते दोनों के बीच जमकर जबानी जंग हुई थी।

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि मुख्तार अंसारी की मौत को मुद्दा बनाए जाने से चुनाव पर कोई खास फर्क नहीं पड़ने वाला। मुख्तार की बाहुबली वाली ईमेज भी इसका बड़ा कारण है। मुख्तार के भाई अफजाल अंसारी बसपा से सांसद हैं, पिछली बार लोकसभा चुनावों में बसपा और सपा साथ आ गई थीं, इसके चलते मुस्लिम वोटों के साथ यादव और दलित वोट अफजाल अंसारी के साथ चले गए थे। इस कारण वह गाजीपुर से सांसद बनने में कामयाब रहे थे, लेकिन इस बार ऐसा होने की उम्मीद नहीं दिखाई देती। बसपा पहले ही कह चुकी है वह अकेले ही चुनाव लड़ेगी। अत: इस मुद्दे से पूर्वांचल की राजनीति पर कोई खास फर्क नहीं पड़ने वाला।

जातिगत समीकरण भी महत्वपूर्ण

यदि अपवादों को छोड़ दें तो पूर्वांचल में जीत के लिए लगभग हर सीट पर जातिगत समीकरण बहुत मायने रखते हैं। यदि गाजीपुर सीट की बात करें तो इस सीट पर सबसे अधिक संख्या यादवों की है, इसके बाद दलित और मुस्लिम मतदाता आते हैं। केंद्रीय मंत्री रहते हुए तमाम विकास कार्य कराए जाने के बाद भी पिछली बार मनोज सिन्हा अफजाल के सामने चुनाव हार गए थे, ऐसा इसलिए हुआ था कि यहां पर कुशवाह वोट जो करीब ढाई लाख से ज्यादा हैं वह कांग्रेस प्रत्याशी अजीत कुशवाह के साथ चला गया था। इस सीट पर करीब दो लाख राजपूत और डेढ़ लाख वैश्य हैं। इस बार कुशवाह वोटर भाजपा के साथ हैं। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने पिछले साल 2024 के लिए मिशन यूपी की शुरुआत गाजीपुर से ही की थी। पूर्वांचल में भाजपा की मजबूत सोशल इंजीनियरिंग और प्रदेश में माफिया राज को मिट्टी में मिलाने का दावा करने वाले यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का चेहरा, पीए मोदी का चेहरा और केंद्र सरकार द्वारा जनहित में चलाई गई योजनाएं, कई ऐसे फैक्टर हैं जिनका फायदा इस बार भाजपा को मिलेगा। वहीं मुख्तार को सियासी मुद्दा बनाकर सियासत करने से विपक्ष को नुकसान ही होगा।

डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।