मोदी सरकार 1.0 के गठन के बाद से लोगों को ऐसा लगने लगा था कि पांच साल का कार्यकाल पूरा होते-होते नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता में गिरावट आएगी। लेकिन 2014 से 2019 के कार्यकाल के बीच लिए गए फैसले की वजह से 2019 के आम चुनाव में और बड़ी जीत के साथ राजग गठबंधन ने सत्ता के दरवाजे पर दस्तक दी तो लोग हैरान थे। भाजपा को अकेले अपने दम पर 2019 में सबसे बड़ी जीत हासिल हुई। फिर सरकार के गठन के बाद जिस तरह से ताबड़तोड़ फैसले लिए गए उसने एक साल के मोदी सरकार 2.0 के कार्यकाल में नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता का ग्राफ और ऊंचा कर दिया। देश ही नहीं दुनिया के लगभग सभी मुल्क नरेंद्र मोदी के राजनीतिक नेतृत्व क्षमता का लोहा मानने लगे हैं।
जम्मू-कश्मीर से 35A और धारा 370 का हटाना हो या फिर आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में एनआईए जैसी एजेंसी के हाथ को मजबूत करने का फैसला, तीन तलाक पर कानून बनाना हो या फिर नागरिकता संशोधन कानून को संसद के दोनों सदनों से पास कराकर कानून का रूप दिलवाना। इसके साथ ही राम मंदिर निर्माण के लिए सुप्रीम अदालत के फैसले के बाद ट्रस्ट का गठन करना हो। किसानों की आय दोगुनी करने की बात हो या फिर युवाओं को रोजगार देने की बात, देश को आत्मनिर्भर बनाने का मामला हो या फिर 5 ट्रिलियन इकोनॉमी को पाने का लक्ष्य सरकार की तरफ से हर क्षेत्र में काम तेजी से किया गया। एक तरफ जहां कोरोना संकट के बीच पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था जमींदोज हो रही है वहीं भारत ने अभी भी अपने हालात को काबू में रखा है। इस संकट की घड़ी में भी सरकार की तरफ से दिया जानेवाला 20 लाख करोड़ का आर्थिक पैकेज जिसकी घोषणा की गई है। वह भी कई मायने में आत्मनिर्भर भारत के सपने को मजबूत करने के लिए काफी है। सरकार के इन सभी फैसलों के साथ देश की जनता हर कदम पर खड़ी नजर आई है।
जनसंख्या नियंत्रण कानून हो सकता है अगला कदम, मिल गया है इशारा!
ऐसे में अनुच्छेद 370, राम मंदिर और नागरिकता संशोधन विधेयक (सीएबी) जैसे अहम पड़ाव पार कर चुकी मोदी सरकार का अगला कदम क्या हो सकता है यह तो भविष्य के गर्भ में है। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई मंचों से एक बात की तरफ इशारा कर चुके हैं। उसमें है जनसंख्या नियंत्रण कानून और साथ ही समान नागरिक संहिता (कॉमन सिविल कोड) यानी सीसीसी को लागू करना भी सरकार के एजेंडे का हिस्सा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर अपने हर बड़े कदम की झलक पूर्व के भाषणों में दे चुके होते हैं, जो गौर से उनके भाषण सुनता है, उसे कुछ न कुछ संकेत मिल ही जाते हैं। प्रधानमंत्री ने अपने भाषणों में सफाई, कालाधन, प्लास्टिक थैलियों का उपयोग बंद करने जैसी बातें की तो बाद में उसको लेकर बड़े कदम उठे। याद करिए, 15 अगस्त 2019 को लाल किले से दिया उनका भाषण, जिसमें उन्होंने छोटा परिवार रखने को भी देशभक्ति से जोड़ा था।’
आपको इसके बाद यह भी याद होगा जब खबरों के जरिए यह पता चला कि जनसंख्या नियंत्रण कानून के लिए दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर कर चुके बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय जनसंख्या नियंत्रण को लेकर प्रजेंटेशन देने के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय पहुंचे थे। उन्होंने पीएमओ में लंबा-चौड़ा प्रजेंटेशन भी दिया था। अश्विनी उपाध्याय ने प्रजेंटेशन में कहा था कि अटल बिहारी सरकार की ओर से 2000 में गठित वेंकटचलैया आयोग ने जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाने की सिफारिश की थी। मगर 2004 के चुनाव में हार के चलते एनडीए सरकार के बाहर होने से यह कानून नहीं बन सका।
बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय ने पीएमओ में जनसंख्या नियंत्रण कानून को लेकर जो प्रजेंटेशन दिया था उसमें उन्होंने इस कानून की जरूरत के पीछे कई तर्क दिए थे। एक ये भी सत्य है कि जिस जस्टिस वेंकटचलैया की अध्यक्षता वाली कमेटी ने जनसंख्या नियंत्रण को लेकर अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। उसी आयोग के सुझाव पर मनरेगा, राईट टू एजुकेशन, राईट टू इनफार्मेशन और राईट टू फूड जैसे महत्वपूर्ण कानून बनाये गए लेकिन जनसंख्या नियंत्रण कानून पर संसद में चर्चा भी नहीं हुई। मतलब साफ था कि कहीं न कहीं यह फैसला किसी ना किसी पार्टी के राजनीतिक हित को कमजोर करनेवाला था ऐसे में इसे ठंढे बस्ते में डाल दिया गया।
लेकिन पूरा देश इस बात को मानता है कि 50 फीसदी समस्याओं के पीछे जनसंख्या विस्फोट ही है। वहीं रिपोर्ट तो यह भी कहती है कि वर्ल्ड रैंकिंग में हमारे पिछड़े होने के पीछे भी जनसंख्या विस्फोट की अहम भूमिका है। वहीं प्रदूषण बढ़ने को भी बढ़ती जनसंख्या से जोड़कर देखा जा रहा है। इसके साथ ही सबसे बड़ी मुसीबत यह सामने आ रही है कि नरेंद्र मोदी सरकार दो करोड़ को आवास देने के बारे में काम कर रही है लेकिन जनसंख्या में हो रही बेतहाशा वृद्धि का नतीजा है कि जब तक 2 करोड़ लोगों को घर दिया जाएगा 10 करोड़ बेघर लोग पैदा हो चुके होंगो। ऐसे में स्थिति को नियंत्रण करना काफी मुश्किल है। ऐसे में यह कापी हद तो संभव है कि सरकार के अगले एजेंडे में जनसंख्या नियंत्रण कानून को प्रमुखता से जगह दी गोई हो। क्योंकि इसको लेकर सुगबुगाहट भी तेज है।
यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड ये भी है एजेंडे का हिस्सा
वहीं एक और ऐतिहासिक कदम उठाने के बारे में भी सरकार सोच रही है हालांकि इस पर अभी खुलकर कुछ भी सामने नहीं आया है लेकिन संघ के एजेंडे में यह शामिल है ऐसे में सरकार इस पर भी जल्द ही कदम उठा सकती है और इसकी मांग भी तेज है। जी हां! हम बात कर रहे हैं यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड की यानि सामान नागरिक संहिता। समान नागरिक संहिता पर सरकार का जोर इसलिए है क्योंकि इसपर कानून बनने के बाद सभी धर्मों के लिए एक ही कानून होगा। शादी, तलाक, जमीन-जायदाद के बंटवारे पर एक ही नियम सभी धर्मों के लोगों पर लागू होगा।
अब समझिए ये यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड या सामान नागरिक संहिता क्या है। भारतीय संविधान के तहत कानून को मोटे तौर पर दो भागों में बांटा जा सकता है। दीवानी (सिविल) और फौजदारी (क्रिमिनल)। शादी, संपत्ति, उत्तराधिकार जैसे परिवार से संबंधित व्यक्ति से जुड़े मामलों के लिए कानून को सिविल कानून कहते हैं।
हालांकि संविधान में समान नागरिक संहिता को लागू करना अनुच्छेद 44 के तहत राज्य( (केंद्र और राज्य दोनों) की जिम्मेिदारी बताया गया है। लेकिन इसे लेकर बड़ी बहस चलती रही है यही वजह है कि इस पर कोई बड़ा कदम आज तक नहीं उठाया गया है।
अब यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड की बात करें तो उसमें दो पहलू आते हैं। पहला सभी धर्मों के बीच एक जैसा कानून। दूसरा उन धर्मों के सभी समुदायों के बीच भी एक जैसा कानून। ऐसे में यह विषय थोड़ा ज्यादा जटिल है। इसलिए शायद आजतक देश की कोई सरकार इस दिशा में कोई कदम नहीं उठा पाई। हालांकि इसका एक पक्ष ये भी है कि एक तरफ भारत में जहां इस कानून को लेकर बड़ी बहस चल रही है, वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान, बांग्लादेश, मलेशिया, तुर्की, इंडोनेशिया, सूडान और इजिप्ट जैसे कई देश इस कानून को अपने यहां लागू कर चुके हैं।
आपको बता दें कि देश में फिलहाल मुस्लिम, ईसाई और पारसी समुदाय का पर्सनल लॉ है जबकि हिन्दू सिविल लॉ के तहत हिन्दू, सिख, जैन और बौद्ध आते हैं। अब ऐसे में ये समझना जरूरी है कि इसे लागू करने की आवश्यकता क्यों हैं।
अलग-अलग धर्मों के अलग कानून से न्यायपालिका पर बोझ पड़ता है। समान नागरिक संहिता लागू होने से इस परेशानी से निजात मिलेगी और अदालतों में वर्षों से लंबित पड़े मामलों के फैसले जल्द होंगे। शादी, तलाक, गोद लेना और जायदाद के बंटवारे में सबके लिए एक जैसा कानून होगा फिर चाहे वो किसी भी धर्म का क्यों न हो। वर्तमान में हर धर्म के लोग इन मामलों का निपटारा अपने पर्सनल लॉ यानी निजी कानूनों के तहत करते हैं।
सभी के लिए कानून में एक समानता से देश में एकता बढ़ेगी और जिस देश में नागरिकों में एकता होती है, किसी प्रकार वैमनस्य नहीं होता है वह देश तेजी से विकास के पथ पर आगे बढ़ेगा। देश में हर भारतीय पर एक समान कानून लागू होने से देश की राजनीति पर भी असर पड़ेगा और राजनीतिक दल वोट बैंक वाली राजनीति नहीं कर सकेंगे और वोटों का ध्रुवीकरण नहीं होगा। इतना ही नहीं समान नागरिक संहिता लागू होने से भारत की महिलाओं की स्थिति में भी सुधार आएगा। कुछ धर्मों के पर्सनल लॉ में महिलाओं के अधिकार सीमित हैं। इतना ही नहीं, महिलाओं का अपने पिता की संपत्ति पर अधिकार और गोद लेने जैसे मामलों में भी एक समान नियम लागू होंगे।