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लिबरल और सेक्युलर राजनीति की बात करने वाले वामपंथी ही असल में प्रोपेगेंडा और हिंसा की राजनीति करते हैं

उदारवाद, धर्मनिरपेक्षता और फ्री स्पीच की वकालत करने वाले वामपंथी दरअसल दूसरे पक्ष को बिलकुल भी सहन नहीं कर पाते और हिंसा की राजनीति का सहारा लेते हैं।

उदारवाद की बात करने वाले कथित लिबरल दरअसल हिंसा और प्रोपेगेंडा के सबसे बड़े समर्थक हैं। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पर हुआ जानलेवा हमला भी इसी विचारधारा के समर्थकों की ही देन है। पूरे विश्व में जिस भी देश में दंगे होते हैं उसके पीछे इसी वामपंथी विचारधारा के लोग होते हैं। पिछले दिनों पेरिस की सड़कों पर हुए दंगे भी इन्हीं की देन थे। दरअसल इस खेमे के लोग स्वयं पर प्रगतिशील होने का ठप्पा लगाते हैं परन्तु वास्तविकता यह है कि वे अपरिवर्तित होने की हद तक नितांत रूढ़िवादी होते हैं। उनके यहां किसी नए विचार की कोई जगह नहीं होती है।

भारत में चुनावों के दौरान जो हुआ वह अब अमेरिका में भी हो रहा है। दरअसल कट्टरपंथी और वामपंथी मानसिकता के लोग राष्ट्रवाद की बात करने वाले डोनाल्ड ट्रंप को वापस सत्ता में लौटते हुए नहीं देखना चाहते हैं, बिल्कुल वैसे ही जैसे कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दल भारत में नरेंद्र मोदी सरकार की वापसी नहीं चाहते थे। इसके लिए पुरजोर प्रयास किए गए, प्रोपेगेंडा फैलाया गया, दुष्प्रचार किया गया। जनता से झूठ बोला गया। अमेरिकी अरबपति वामपंथी जॉर्ज सोरोस ने तो स्पष्ट कहा था कि मोदी को हराने के लिए वह 100 मिलियन डॉलर खर्च करेंगे। गनीमत रही कि वह अपने इस अभियान में सफल नहीं हो पाए।

अमेरिका में पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप बच गए लेकिन उन पर हुआ जानलेवा हमला कई सवाल खड़े करता है। आखिर वो कौन सी ताकते हैं जो राष्ट्रवाद का समर्थन करने वाले किसी नेता को वैश्विक मंच पर नहीं उभरने देना चाहतीं। भारत में भी इसी तरह के कुत्सित प्रयास होते रहते हैं। कुछ महीने पहले जिस तरह पंजाब में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सुरक्षा को लेकर कोताही बरती गई थी उसे कैसे भूला जा सकता है। एक घंटे तक उनका काफिला फ्लाईओवर पर फंसा रहा था। खालिस्तानी उनको निशाना बनाना चाहते थे, दरअसल इस तरह की जहरीली मानसिकता का पोषण वामपंथी हमेशा से करते आए हैं।

वर्तमान में कांग्रेस के मूल में भी यही विचारधारा नजर आती है। पिछले दिनों राहुल गांधी पर भड़काने वाला भाषण देने का आरोप लगाते हुए बरेली में एक वकील ने कोर्ट में प्रार्थना पत्र भी दिया था। जिसमें चुनाव के दौरान राहुल गांधी द्वारा भड़काऊ भाषण देने की बात कही गई थी। इस प्रार्थना पत्र में कहा गया था कि राहुल गांधी ने खुले मंच से आम नागरिकों की भावनाओं को भड़काने, संघर्ष का वातावरण तैयार करने व सामाजिक ताने-बाने को खंड-खंड करने का प्रयास किया है। उनका भाषण जनमानस के बीच साम्प्रदायिक तनाव पैदा करने के साथ ही साथ धर्म, जाति और जनसंख्या के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देगा।

2020 में दिल्ली विधानसभा चुनावों में एक चुनावी रैली के दौरान राहुल गांधी ने बेरोजगारी का मुद्दा उठाते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर अपमानजनक और भड़काऊ बयान दिया था। राहुल गांधी ने तब कहा था कि ”ये जो नरेंद्र मोदी भाषण दे रहा है, छह महीने बाद यह घर से बाहर नहीं निकल पाएगा। हिंदुस्तान के युवा इसको ऐसा डंडा मारेंगे, इसको समझा देंगे कि हिंदुस्तान के युवा को रोजगार दिए बिना ये देश आगे नहीं बढ़ सकता।” तब उनके इस बयान की बहुत भर्त्सना की गई थी, बावजूद इसके राहुल गांधी इस तरह के बयान देने से बाज नहीं आए। हाल ही में जब काशी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के काफिले पर किसी ने चप्पल फेंकी थी तो राहुल ने इसकी भर्त्सना करने की बजाए बयान दिया था कि मोदी से अब कोई नहीं डरता है।

बहरहाल यह तो बस एक उदाहरण है, 2020 में दिल्ली में हुए दंगे, किसान आंदोलन के नाम पर उन्मादी भीड़ द्वारा लाल किले में घुसकर की गई तोड़फोड़ भी इसी मानसिकता की देन है। पहले बिना किसी के वजह के मुद्दों पर बहस खड़ी करना, फिर उन मुद्दों को वैमनस्य के स्तर तक पहुंचाकर लोगों का इस कदर तक ब्रेनवॉश कर दिया जाता है कि भीड़ उन्मादी होकर सड़कों पर उतर आती है।

जिस तरह राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘तानाशाह’ बताकर बयानबाजी करते हैं, उस तरह अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन भी ट्रंप के खिलाफ ऐसी ही बयानबाजी करते हैं। दरअसल जब नेता आम जनता को हिंसा के लिए उकसाते हैं तो उसकी परिणति इस प्रकार के हमलों के रूप में होती है। अमेरिका में भी आज यही सब सामने आ रहा है कि ट्रंप की हत्या के प्रयास के बाद अब उनके समर्थक यही बोल रहे हैं कि ट्रंप के प्रतिद्वंद्वियों ने उनके खिलाफ बयान दे दे कर नफरती माहौल बना दिया है। जिसके चलते उनकी हत्या की साजिश की गई। दरअसल ट्रंप के विरोधी वहां तर्क दे रहे हैं कि ट्रंप के चलते अमेरिका में लोकतंत्र खतरे में है। ठीक वैसे ही जैसे राहुल गांधी की अगुवाई में विपक्ष भारत में ‘संविधान खतरे में है’ का नारा देकर झूठा नैरेटिव गढ़ने में लगा हुआ है।

donald trump and kim jong un

जिस तरह अमेरिका में गोरों और कालों के बीच नस्लीय राजनीति कथित वामपंथी विचारधारा के लोग करते हैं उसी तरह की राजनीति जाति के नाम पर हाल में संपन्न हुए लोकसभा चुनावों में कांग्रेस द्वारा की गई। हालांकि विपक्ष के अथक प्रयासों के बाद भी भारतीय जनमानस ने विकास की राजनीति करने वाली और राष्ट्रवाद की समर्थक सरकार को ही चुना, लेकिन जिस तरह से देश की जनता को झूठ बोलकर गुमराह किया जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ देशभर में नफरत का माहौल बनाने की कोशिश की जा रही है इसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए।

डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।