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शिक्षा मंत्रालय की परफॉर्मेंस और विश्वसनीयता मोदी सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती

2014 से अभी तक केंद्र में भाजपा की सरकार है। पिछले दस सालों में भारत में चार शिक्षा मंत्री रह चुके हैं, लेकिन यदि शिक्षा मंत्रालय की बात करें तो सबसे ज्यादा नॉन परर्फोमिंग यही मंत्रालय रहा है।

2014 में जब केंद्र में पहली बार भाजपा की सरकार बनी तो एक बड़ी चुनौती थी कथित वामपंथियों द्वारा खड़े किए झूठे नैरेटिव और कथित सेकुलरवाद के तिलिस्म को तोड़ने की। इसके लिए सबसे ज्यादा जो जरूरी था वह था शैक्षणिक पद्धति में बदलाव। नई शिक्षा नीति के माध्यम से देश के युवाओं को विचार के साथ जोड़ना, लेकिन केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू होने के बाद भी अभी तक इसे पूरी तरह लागू करने में फेल ही साबित हुआ है। वामपंथी इतिहासकारों ने भारत के इतिहास को हमेशा गलत तरीके से प्रस्तुत किया। अंग्रेजों के शासनकाल में भारतीय इतिहास को विकृत करने का काम शुरू हुआ। वामपंथियों ने यह थ्योरी गढ़ी कि आर्य भारत के मूल निवासी नहीं थे। वे बाहर से आए थे। यह थ्योरी आज तक भी चल रही है, आज भी विश्वविद्यालयों, एनसीआरटी के पाठ्यक्रम और विभिन्न राज्यों के पाठ्यक्रमों में अपेक्षित बदलाव नहीं हो पाया है। इसके अलावा उच्च शिक्षा में बढ़ती फीस, विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की कमी को लेकर भी मंत्रालय चुप्पी साधे हुए है। शिक्षा में अपेक्षित बदलाव, उच्च शिक्षा में प्रोफेसरों की रिक्तियां भरने का काम, बढ़ती फीस का हल निकालने का उपाय,यह सब करने की जिम्मेदारी बनती है केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय की। लेकिन अभी भी वह अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतर पा रहा है।

2014 से केंद्र में भाजपा की सरकार है लेकिन यदि शिक्षा मंत्रालय की बात करें तो सबसे ज्यादा नॉन परफार्मिंग यही मंत्रालय रहा है। सबसे पहले स्मृति ईरानी को शिक्षा मंत्री बनाया गया तो उनकी शैक्षिणिक योग्ताओं को लेकर सवाल उठे। उनके कार्यकाल में लिए गए कई फैसले ऐसे रहे जिसके चलते उनसे शिक्षा मंत्रालय ले लिया गया। स्मृति ईरानी के कार्यकाल में ही इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के कुलपति ने ऑनलाइन दाखिले के मामले में मंत्रालय पर नकल का आरोप लगाया। हालांकि बाद में कुलपति अपने बयान से पलट गए थे। हालांकि ऑनलाइन दाखिले को लेकर देशभर में कई जगह विरोध प्रदर्शन होते रहे।

2016 में स्मृति ईरानी के समय ही आईआईटी की फीस बढ़ाई गई। 2016 तक यह फीस 90 हजार रुपए सलाना ही थी, जिसे बढ़ाकर दो लाख कर दिया गया। दिल्ली विश्वविद्यालय में तब से लेकर अभी तक लगातार फीस बढ़ाई जा रही है। दिल्ली विश्वविद्यालय ने 2023 में वार्षिक फीस में 46 फीसदी की बढ़ोतरी की थी। इससे पहले जुलाई 2022 में फीस वृद्धि की गई थी। बैंक बाजार की रिपोर्ट के अनुसार, देश में आम मंहगाई दर औसतन 6 फीसदी रही है, जबकि एजुकेशन के क्षेत्र में होने वाले खर्च हर साल 11 प्रतिशत की दर से बढ़ोतरी हो रही है।

स्मृति ईरानी के बाद प्रकाश जावड़ेकर को शिक्षा मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी गई। उनके समय में ही नई शिक्षा नीति आई लेकिन अभी तक पूरी तक लागू नहीं हो पाई। जावड़ेकर के बाद रमेश पोखरियाल को शिक्षा मंत्री बनाया गया लेकिन शिक्षा की स्थिति जस की तस रही। 7 जुलाई 2021 से अभी तक धर्मेंद्र प्रधान शिक्षा मंत्री हैं। हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों के बाद उन्होंने फिर से शिक्षामंत्री की शपथ ली, इस समय नीट परीक्षा में हुई धांधली को लेकर शिक्षा मंत्रालय और भाजपा सरकार पर सवाल उठ रहे हैं। शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान इस मुद्दे पर छात्रों के समूह से भी मिल चुके हैं, लेकिन अभी तक कोई स्पष्टता उनके किसी फैसले में नहीं दिखाई दी है।

अखिल भारतीय उच्च शिक्षा सर्वेक्षण यानी ऑल इंडिया हायर एजुकेशन सर्वे (एआईएसएचई) 2019-20 के अनुसार भारत में निजी विश्वविद्यालयों की संख्या 2015-16 में 276 हुआ करती थी जो 2019-20 में बढ़कर 407 हो गई थी। इसके बाद और भी निजी विश्वविद्यालय खुले हैं जिनका अधिकारिक आंकड़ा अभी तक जारी नहीं हो हुआ है, लेकिन इन विश्वविद्यालयों में दी जा रही शिक्षा की गुणवत्ता कैसी है इसका कोई आंकलन अभी तक नहीं हो पाया है।

इसके अलावा उच्च शिक्षा संस्थानों में शिक्षकों की कमी एक महत्वपूर्ण मुद्दा है जिसे प्राथमिकता के आधार पर भरने की जरूरत है। हालांकि उच्च शिक्षा संस्थानों में कितने पद खाली हैं इसका कोई स्पष्ट आंकड़ा अधिकारिक तौर पर उपलब्ध नहीं है लेकिन अनुमानित उच्च शिक्षा संस्थानों में 25-40% शिक्षक पद रिक्त हैं। इसका अर्थ है कि संतुलित शिक्षक-छात्र अनुपात सुनिश्चित करने के लिए हजारों प्रोफेसरों की भर्ती किए जाने की आवश्यकता है, इसके लिए शिक्षा मंत्रालय को जिस तेजी से काम करना चाहिए वह नहीं किया जा रहा है। केंद्रीय मानव संसाधन एवं विकास मंत्रालय का नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय तो कर दिया गया लेकिन नाम बदलने से कोई बदलाव यहां पर आया हो ऐसा तो नहीं दिखाई देता। देश में शिक्षा को लेकर मंत्रालय की नीतियां सार्थक साबित होंगी या नहीं इसका उत्तर आना अभी तक शेष है।

डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।