newsroompost
  • youtube
  • facebook
  • twitter

Good News: विदेश में हुई रिसर्च का नतीजा, बूस्टर डोज लेने पर अस्पताल में दाखिल होने के आसार कम

कोरोना की वैक्सीन का तीसरा यानी बूस्टर डोज ओमिक्रॉन वैरिएंट के मरीजों को अस्पताल में भर्ती होने से बचा सकता है। ऐसे मरीजों को अस्पताल में भर्ती होने से 88 फीसदी तक बचाया जा सकता है। ये दावा दो रिसर्च टीम्स ने किया है। ब्रिटेन की स्वास्थ्य सुरक्षा एजेंसी ने रिसर्च पब्लिश की है।

लंदन। कोरोना की वैक्सीन का तीसरा यानी बूस्टर डोज ओमिक्रॉन वैरिएंट के मरीजों को अस्पताल में भर्ती होने से बचा सकता है। ऐसे मरीजों को अस्पताल में भर्ती होने से 88 फीसदी तक बचाया जा सकता है। ये दावा दो रिसर्च टीम्स ने किया है। ब्रिटेन की स्वास्थ्य सुरक्षा एजेंसी ने रिसर्च पब्लिश की है। पहला दावा अमेरिका से है। यहां के स्क्रिप्स रिसर्च ट्रांसलेशनल इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर और मॉलिक्यूलर मेडिसिन के प्रोफेसर एरिक टोपोल ने सोशल मीडिया पर दावा किया कि दो डोज ले चुके लोगों में दूसरी डोज के छह महीने बाद टीके का असर घट कर 52 प्रतिशत रह जाता है। वहीं, बूस्टर डोज लेने वाले लोगों में प्रतिरोधक क्षमता 52 फीसदी से बढ़कर 88 फीसदी हो जाती है। इसी वजह से अस्पताल में भर्ती होने की आशंका कम हो जाती है।

रिसर्च में वैक्सीन ले चुके लोगों और ओमिक्रोन संक्रमितों को अस्पताल में भर्ती करवाने की जरूरत को देखा गया। पहली रिसर्च में हर उम्र के 500000 ओमिक्रॉन संक्रमित शामिल किए गए। इसने साबित किया कि डेल्टा के मुकाबले ओमिक्रॉन में संक्रमितों को अस्पताल में भर्ती करवाने की जरूरत कम है और बूस्टर डोज देने में यह और भी घट गई। दूसरा अध्ययन 18 से अधिक उम्र के लोगों पर हुआ। इस रिसर्च में देखा गया कि तीसरी डोज लेने वालों को अस्पताल में भर्ती करवाने की कम जरूरत हुई। डेल्टा वैरिएंट के मुकाबले हालांकि ओमिक्रॉन का प्रसार तेज है और इसकी वजह से मरीजों की तादाद भी बढ़ती दिख रही है।

omicron

एरिक टोपोल ने कहा कि दो साल पहले बनी वैक्सीन का मौजूदा वैरिएंट पर असर दिखाना काफी अच्छा है। ये वायरस 29 करोड़ लोगों को संक्रमित कर सैकड़ों बार रंग रूप बदल चुका है। इस बार म्यूटेशन काफी ऊंचे स्तर का भी हुआ है। बहरहाल, रिसर्च ये कहती है कि बूस्टर डोज से अस्पताल में मरीजों को दाखिल कराने के मामले कम होंगे, लेकिन रिपोर्ट के मुताबिक बूस्टर डोज का असर 10 हफ्ते बाद घटने लगेगा। ऐसे में ओमिक्रॉन वैरिएंट के लिए अलग से प्रभावी वैक्सीन की तलाश तमाम कंपनियां कर रही हैं। हालांकि, वायरस के नए नए वैरिएंट आने से लगातार अलग-अलग वैक्सीन बनाना भी काफी मुश्किल का काम है।