नई दिल्ली। कोरोनावायरस के कहर के बीच एम्स से उम्मीद बढ़ाने वाली खबर आई है। इंडियन काउंसिल आफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) व अमेरिका के फूड और ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन की अनुमति से देश की सबसे बड़ी रिसर्च एजेंसी काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (सीएसआईआर) की देखरेख में चल रहे क्लिनिक ट्रायल के शुरुआती परिणाम आशाजनक मिले हैं।
जिन दो गंभीर मरीजों वेंटिलेटर की जरूरत थी उन पर इम्युनिटी मॉड्यूलेटर दवा माइक्रोबैक्टीरियम-डब्ल्यू (एम-डब्ल्यू) का प्रयोग किया गया। उन्हें एक सप्ताह में दवाई के तीन डोज दिए गए। दोनों मरीज आईसीयू से बाहर आ गए है। पूरी तरह खतरे से बाहर हैं। अन्य मरीजों पर अर्ली ऑक्सीजन थैरेपी असर दिखा रही है। इससे भोपाल का रिकवरी रेट 57 फीसदी हो गया है। एम्स के डायरेक्टर डॉ. सरमन सिंह ने बताया कि दवा ने दोनों मरीजों के ठीक होने में कितना योगदान दिया है, इसका मूल्यांकन 58 दिन बाद ही हो सकेगा।
देश की सबसे बड़ी रिसर्च एजेंसी काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (सीएसआईआर) की देखरेख में एक सप्ताह पहले ही क्लिनिक ट्रायल शुरू किया गया था। दो गंभीर मरीज जिन्हें वेंटिलेटर पर रखने की आवश्यकता महसूस हो रही थी, उन्हें दवाई के तीन डोज दिए गए। खुशी की बात ये है कि दोनों ही मरीजों की तबीयत में तेजी से सुधार के बाद उन्हें आईसीयू से बाहर निकालकर वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया है। जहां दोनों मरीजों की हालत क्लीनिकली स्थिर हो गई है। किसी भी मरीज पर दवा का कोई भी साइड इफैक्ट भी सामने नहीं आया है।
कोरोना के गंभीर मरीजों पर क्लिनिकल ट्रायल के बाद अब एम्स के डॉक्टरों ने असिम्टैमिक युवा मरीजों और कोरोना के इलाज में जुटे हेल्थ वर्कर्स पर भी ट्रॉयल की तैयारी शुरू कर दी है। एक-दो दिन में इन दोनों कैटेगरी के मरीजों को भी एम-डब्ल्यू का पहला डोज दिया जाएगा। गौरतलब है कि इंजेक्शन के रूप में एक निश्चित समय अंतराल पर तीन डोज मरीज को दिए जाते हैं। सीएसआईआर ने ही अहमदाबाद की कैडिला फॉर्मास्युटिकल के साथ मिलकर दवा बनाई है।