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अमिताभ ने यूपी के प्रवासी मजदूरों के लिए किया 10 बसों का इंतजाम

माहिम दरगाह के आई-टी निदेशक सबीर सैयद ने आईएएनएस को बताया, “ऐसा करने का विचार बच्चन साहब का रहा, जो लॉकडाउन के बाद से प्रवासी मजूदरों को हो रही परेशानियों से खासा चिंतित थे। उन्होंने अपनी तरफ से एक प्रस्ताव रखा और माहिम दरगाह ने इस पर सारी व्यवस्थाओं को करने की पेशकश की।”

मुंबई। बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता अमिताभ बच्चन अब उन लोगों में शुमार हो चुके हैं, जो फंसे हुए प्रवासी मजदूरों की परेशानियों को देखते हुए आगे आए हैं। शुक्रवार की दोपहर को नमाज के बाद लगभग 225 प्रवासी मजदूरों सहित दस बसों के एक काफिले को उत्तर प्रदेश के विभिन्न गंतव्यों के लिए रवाना किया गया। इनमें महिलाओं संग 43 बच्चे भी थे।

अमिताभ बच्चन के इस पहल को जैसे ही हरी झंडी दिखाई गई, वैसे ही खुशी से झूमते हुए मजदूर अपने-अपने घरों के लिए रवाना हो गए। इनमें से पांच बसें प्रयागराज के रास्ते पर हैं, दो-दो बसें गोरखपुर और भदोही के सफर पर हैं, जबकि एक बस को लखनऊ के लिए रवाना किया गया है। यहां पहुंचकर प्रवासी मजदूरों को अपने गांव व कस्बे का रास्ता खुद तय करना होगा।

बसों को हरी झंडी दिखाए जाने के समारोह में एबीसीएल के प्रबंध निदेशक राजेश यादव, सुहैल खांडवानी, माहिम दरगाह ट्रस्ट के प्रबंध ट्रस्टी, हाजी अली दरगाह के ट्रस्टी, मोहम्मद अहमद सहित दोनों ही ट्रस्ट के अधिकारी व प्रतिनिधि भी शामिल रहे।

माहिम दरगाह के आई-टी निदेशक सबीर सैयद ने आईएएनएस को बताया, “ऐसा करने का विचार बच्चन साहब का रहा, जो लॉकडाउन के बाद से प्रवासी मजूदरों को हो रही परेशानियों से खासा चिंतित थे। उन्होंने अपनी तरफ से एक प्रस्ताव रखा और माहिम दरगाह ने इस पर सारी व्यवस्थाओं को करने की पेशकश की।”

संयोगवश हाजी अली दरगाह का बच्चन और उनके प्रशंसकों संग एक भावात्मक जुड़ाव रहा है। इस मशहूर पवित्र स्थल पर उनकी साल 1983 में आई सुपरहिट फिल्म ‘कुली’ का क्लाइमेक्स फिल्माया गया था। मनमोहन देसाई द्वारा निर्देशित इस फिल्म की शूटिंग के दौरान अमिताभ बच्चन के पेट में गहरी चोट लगी थी, जिसके चलते उन्हें महीनों अस्पताल में रहना पड़ा था।

इस नेक पहल के साथ ही साथ बच्चन ने हजारों प्रवासी मजूदरों के लिए भोजन की भी व्यवस्था की। इन्हें विभिन्न जगहों पर भोजन के साथ दवाइयां भी उपलब्ध कराई गईं। ऐसा दो हफ्ते से अधिक समय तक के लिए बिना किसी शोर-शराबे के किया गया।

चिलचिलाती धूप में लंबा सफर तय करने वाले इन मजूदरों के पैरों में छालों को देखते हुए इन्हें चप्पल वगैरह भी दिए गए।