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Holi 2022: एक ऐसा शहर जहां 5 दिन खेली जाती है होली, क्रांतिकारियों की बगावत से जुड़ा है यहां का त्योहार

Holi 2022: रंगों के त्योहार पर भी क्रांति को लेकर एक कहानी है, जिसके चलते कानपुर ऐसा शहर बन गया कि वहां पूरे एक हफ्ते तक होली खेली जाती है। क्रांति का गढ़ माने जाने वाले कानपुर में एक ऐसी ऐतिहासिक होली हुई थी, जिसने अंग्रेजों का अहंकार पूरी तरह छलनी कर दिया।

नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश की होली विश्व प्रसिद्ध है। रंगों के त्योहार को लेकर यूपी के कई शहरों की अलग-अलग कहानियां प्रसिद्ध हैं, फिर चाहें वो मथुरा का बरसाना, वृंदावन हो या फिर काशी विश्वनाथ। सबका अपना अलग महत्व और उसे मनाने का ढ़ंग और तरीका है। ऐसे ही शहरों में एक प्रसिद्ध शहर है, ‘कानपुर’ जिसकी जड़ें क्रांतिकारी इतिहास से जुड़ी हैं। रंगों के त्योहार पर भी क्रांति को लेकर एक कहानी है, जिसके चलते कानपुर ऐसा शहर बन गया कि वहां पूरे एक हफ्ते तक होली खेली जाती है। क्रांति का गढ़ माने जाने वाले कानपुर में एक ऐसी ऐतिहासिक होली हुई थी, जिसने अंग्रेजों का अहंकार पूरी तरह छलनी कर दिया। तो आइये जानते हैं क्या है इसका इतिहास और महत्व…

साल 1942 के दौरान पूरे देश में क्रांतिकारी आंदोलन अपने चरम पर था। कानपुर का दिल कहा जाने वाला ‘हटिया बाजार’, जहां बड़े स्तर पर लोहा, कपड़ा और गल्ले का कारोबार होता था, शहर के बड़े-बड़े व्यापारी और क्रांतिकारी यहां डेरा जमाकर, स्वतंत्रता आंदोलन की रणनीति बनाते और उन्हें अंजाम देकर अंग्रेजों को नाकों चने चबवाते थे। 1942 में होली के दिन अचानक अंग्रेज अधिकारी आए और होली के आयोजन पर प्रतिबंध लगा दिया। इन आयोजकों के प्रमुख ‘गुलाबचंद सेठ’ ने इससे साफ इन्कार कर दिया तो बौखलाए अंग्रेज अधिकारियों ने उन्हें गिरफ्तार कर जेल में बंद कर दिया। इसके विरोध में उतरे कई क्रांतिकारियों और व्यापारियों समेत करीब 45 लोगों को भी जेल में डाल दिया। इस गिरफ्तारी के विरोध में लगभग पूरा शहर विरोध पर उतर आया और देश का ‘मानचेस्टर’ कहे जाने वाले कानपुर के बंद का ऐलान कर दिया। दुकानें बंद कर दीं, लोगों के घरों में चूल्हे नहीं जले। लोग धरने पर बैठ गए।

उन्होंने चेहरों पर लगा साफ नहीं किया। ये आंदोलन इतना बढ़ा कि पहले दिल्ली और उसके बाद ब्रिटेन पहुंच गया। आखिरकार 5 दिन बाद अनुराधा नक्षत्र के दिन उन्हें सभी को रिहा करना पड़ा। इसके बाद सभी ने गंगा तट पर धूम-धाम से होली खेली और गंगा स्नान किया। तब से इस दिन को ‘गंगा-मेला’ के नाम से जाना जाने लगा और इस दिन होली खेलने की प्रथा की शुरुआत हो गई। उसी बगावत की याद में आज भी यहां होली के 5 दिन बाद गंगा मेला का आयोजन होता है और हटिया मोहल्ले से ढ़ोल, नगांड़े के साथ रंगों का ठेला निकलता है। ये ठेला रंगों से सराबोर संकरी गलियों और सड़कों से होता हुआ सरसैया घाट पहुंचता है, जहां मेले का आयोजन होता है। लोग आपस में गले मिलकर एक-दूसरे को होली की शुभकामनाएं देते हैं और धूम-धाम से होली मनाते हैं।