नई दिल्ली। किसान बिल को लेकर नाराज चल रहे NDA में सहयोगी रही शिरोमणि अकाली दल(SAD) ने अब NDA से किनारा कर लिया है। शिवसेना के बाद यह दूसरा मौका है कि जब NDA को कोई पुराना साथी, अलग हुआ है। शनिवार को मीडिया से बातचीत में अकाली दल ने साफ कर दिया कि अब उनकी पार्टी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन(एनडीए) का हिस्सा नहीं है। सुखबीर सिंह बादल ने कहा कि यह पार्टी के कई सदस्यों की ओर से फैसला लिया गया है। अब यह औपचारिक हो चुका है कि गठबंधन टूट चुका है। बढ़ती तल्खी और अलग होने से पहले सुखबीर सिंह बादल ने शुक्रवार को कहा था कि ‘द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका ने जापान को एक एटॉमिक बम (परमाणु बम) से हिला दिया था। अकाली दल के एक बम ने (हरसिमरत कौर बादल का इस्तीफा) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हिला दिया है। दो महीनों से कोई भी किसानों पर एक शब्द नहीं बोल रहा था लेकिन अब 5-5 मंत्री इस पर बोल रहे हैं।’
किसान बिल को लेकर देश में प्रदर्शन जारी
आपको बता दें कि किसान बिल को लेकर देश में प्रदर्शन जारी है। इसी के तहत पंजाब के अमृतसर में किसान मजदूर संघर्ष समिति की ओर से ‘रेल रोको’ अभियान चल रहा है। यह विरोध प्रदर्शन किसान बिल के खिलाफ किया जा रहा है। बता दें कि सुखबीर सिंह बादल के इस निर्णय से पहले समिति के महासचिव एसएस पंढेर ने कहा था, ‘अकाली दल स्पष्ट रुख नहीं अपना रहा है। वे अभी भी गठबंधन में बने रहने की कोशिश कर रहे हैं और राजनीति कर रहे हैं।’
हरसिमरत कौर ने ट्वीट में लिखा
वहीं गठबंधन छोड़ने के बाद भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) पर हमला बोलते हुए हरसिमरत कौर ने एक ट्वीट में लिखा है कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा जिस एनडीए “गठबंधन” की परिकल्पना की गई थी, वह अब नहीं रहा। अपने ट्वीट में पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि, “यदि 3 करोड़ पंजाबियों का दर्द और विरोध-प्रदर्शन भारत सरकार के कठोर रुख को बदलने में विफल रहता है, तो यह वाजपेयी जी और बादल साहब द्वारा परिकल्पित #NDA नहीं है। एक गठबंधन अपने सबसे पुराने सहयोगी के लिए कान बहरे कर देता है और पूरे देश को खिलाने वालों की अपील पर आंखें मूंद लेना कहीं से भी पंजाब के हित में नहीं है।”
भाजपा की बढ़ती दिक्कतें
वैसे जिस तरह से NDA से उसके पुराने साथी अलग हो रहे हैं वो भाजपा के लिए अच्छे संकेत नहीं है। बता दें कि शिवसेना पहले ही अलग होकर महाराष्ट्र में कांग्रेस-एनसीपी के साथ सरकार बना चुकी है। अब अकाली दल ने भी किसान बिल को ढाल बनाकर पीछा छुड़ा लिया है। जदयू के साथ रिश्ते किसी से छिपे नहीं और एक बार उसका साथ छोड़ भी चुका है। वहीं रामविलास पासवान की लोजपा भी बिहार चुनाव के पहले असमंजस की स्थिति में है। और ये स्थिति उसकी हर बार चुनाव के समय बनती रहती है। पिछले दिनों मीडिया में खबरें भी आईं थी कि लोजपा के रास्ते एनडीए से अलग हो सकते हैं। इस वक्त भाजपा को भले ही सहयोगी दल महत्वपूर्ण न लगे। ऐसा इसलिए क्योंकि केंद्र में उसकी अपने दम पर सरकार है। कई राज्य में भी वह सत्ता पर काबिज है, लेकिन भविष्य में उसको भरोसेमंद मजबूत साथी ढूंढना किसी चुनौती से कम नहीं होने वाला है।