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Battle For Symbol: शिवसेना पर कब्जे की जंग पहुंची चुनाव आयोग के दरबार में, ‘असली शिवसेना कौन’ साबित करने के लिए आयोग ने दिया इतने दिनों का वक्त

एकनाथ शिंदे समेत 38 शिवसेना विधायकों ने उद्धव का साथ छोड़कर बीजेपी के सहयोग से महाराष्ट्र में सरकार बना ली है। वहीं, 12 से 14 सांसद भी शिंदे कैंप के साथ बताए जा रहे हैं। संसद परिसर में शिवसेना के दफ्तर को सील कर दिया गया है। वहीं, स्पीकर ओम लब बिरला ने लोकसभा में शिंदे गुट के नेताओं को शिवसेना संसदीय दल के प्रमुख और चीफ व्हिप के तौर पर मान्यता भी दे दी है।

नई दिल्ली। शिवसेना में उद्धव ठाकरे बनाम एकनाथ शिंदे की जंग आखिरकार चुनाव आयोग (ईसी) तक जा पहुंची है। ईसी में शिंदे की तरफ से शिवसेना पर दावा किया गया है। वहीं, उद्धव ठाकरे ने कहा है कि असली शिवसेना उनके ही पास है। ऐसे में चुनाव आयोग ने दोनों ही धड़ों से अपने-अपने पक्ष में दस्तावेजी सबूत देने के लिए कहा है। आयोग ने कहा है कि उद्धव और शिंदे गुट अपने दावों के समर्थन में आगामी 8 अगस्त दोपहर 1 बजे तक सारे दस्तावेज जमा करा दे। इसके बाद आयोग इन दस्तावेजों की जांच करेगा। जिसके बाद उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे के वकीलों को बुलाकर सुनवाई की जाएगी। कागजात जमा होने के बाद सुनवाई की तारीख तय होगी।

बता दें कि एकनाथ शिंदे समेत 38 शिवसेना विधायकों ने उद्धव का साथ छोड़कर बीजेपी के सहयोग से महाराष्ट्र में सरकार बना ली है। वहीं, 12 से 14 सांसद भी शिंदे कैंप के साथ बताए जा रहे हैं। संसद परिसर में शिवसेना के दफ्तर को सील कर दिया गया है। वहीं, स्पीकर ओम लब बिरला ने लोकसभा में शिंदे गुट के नेताओं को शिवसेना संसदीय दल के प्रमुख और चीफ व्हिप के तौर पर मान्यता भी दे दी है। ऐसे में उद्धव ठाकरे के लिए संकट लगातार गहराता जा रहा है। अगर शिंदे गुट ने साबित कर दिया कि शिवसेना के अधिकतर सांसद, विधायक और अन्य पदाधिकारी उसके पक्ष में हैं, तो शिवसेना का चुनाव चिन्ह ‘तीर और कमान’ उद्धव के हाथ से छिन सकता है।

uddhav thakre

उद्धव ने हालांकि दावा किया है कि किसी भी सूरत में उनके हाथ से शिवसेना का चुनाव निशान कोई छीन नहीं सकता, लेकिन ये चुनाव आयोग पर निर्भर करता है कि दस्तावेजी सबूत देखकर वो किसके पास ये चिन्ह रहने देता है। दोनों ही पक्षों को दस्तावेजी सबूतों के तहत अपने पक्ष के सांसदों, विधायकों और पार्टी पदाधिकारियों के हाथ से लिखे और साइन किए पत्र चुनाव आयोग को देने होंगे। जिनमें वे लिखेंगे कि किसके साथ हैं। फिर जरूरत पड़ने पर ऐसे विधायकों, सांसदों और पदाधिकारियों को तलब कर आयोग खुद भी जांच सकता है कि उनकी चिट्ठी सही है या किसी और ने तो नहीं लिखी।