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Supreme Court : नोटबंदी का फैसला ठीक था या नहीं ? 2 जनवरी को निर्णय सुनाएगा सर्वोच्च न्यायालय

Supreme Court : कांग्रेस नेता एवं वरिष्ठ अधिवक्ता पी. चिदम्बरम ने 500 और 1000 रुपए के नोटों का संचालन बंद करने को गंभीर त्रुटिपूर्ण करार दिया। उन्होंने अपनी बात को रखते हुए तर्क दिया था कि सरकार कानूनी निविदा से संबंधित किसी भी प्रस्ताव को तब तक शुरू नहीं कर सकती जब तक आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड की सिफारिश न की गई हो।।

नई दिल्ली। 2016 में मोदी सरकार द्वारा की गई नोटबंदी पर देश भर में खूब सवाल उठे। केंद्र सरकार ने नोटबंदी के सहारे काले धन को वापस लाने का दावा किया तो वहीं विपक्ष ने इसके जरिए भ्रष्टाचार अधिक बढ़ जाने के आरोप लगाए। अब मोदी सरकार के इस फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट 2 जनवरी को अपना फैसला सुनाएगा। यह फैसला न्यायमूर्ति एस ए नजीर की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ देगी। सुप्रीम कोर्ट ने 7 दिसंबर को आरबीआई को निर्देश दिया था कि वे सरकार के 2016 के फैसले से संबंधित रिकॉर्ड अपने पास सुरक्षित रख लें। पीठ में न्यायमूर्ति बी आर गवई, एएस बोपन्ना, वी रामसुब्रमण्यन और बीवी नागरत्ना भी शामिल हैं। इसी पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता पी चिदंबरम और श्याम दीवान सहित आरबीआई के वकील और याचिकाकर्ताओं के वकीलों, अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी की दलीलों की सुनवाई की थी।

आपको बता दें कि इस दौरान कांग्रेस नेता एवं वरिष्ठ अधिवक्ता पी. चिदम्बरम ने 500 और 1000 रुपए के नोटों का संचालन बंद करने को गंभीर त्रुटिपूर्ण करार दिया। उन्होंने अपनी बात को रखते हुए तर्क दिया था कि सरकार कानूनी निविदा से संबंधित किसी भी प्रस्ताव को तब तक शुरू नहीं कर सकती जब तक आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड की सिफारिश न की गई हो। सराकर और जजों के बीच हुई थी तीखी बहस आरबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में बताया कि 2016 में केंद्र सरकार का नोटबंदी का फैसला एक विचारहीन प्रक्रिया नहीं थी। रिजर्व बैंक ने केंद्र के फैसले का समर्थन करते हुए कोर्ट में उन 58 याचिकाओं का विरोध किया, जिसमें नोटबंदी के फैसले का विरोध किया गया था और कहा गया था कि यह रातों-रात लिया गया निर्णय था।


इसके साथ ही आपको बता दें कि नोटबंदी के मुद्दे पर रिजर्व बैंक ने कहा कि अदालत को इसकी जांच करने से बचना चाहिए क्योंकि यह एक आर्थिक नीति से जुड़ा हुआ फैसला है। जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर, जस्टिस बी आर गवई, जस्टिस ए एस बोपन्ना, जस्टिस वी रामासुब्रमण्यम और जस्टिस बी वी नागरत्ना की पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ के समक्ष रिजर्व बैंक की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता जयदीप गुप्ता ने कहा कि यह “राष्ट्र निर्माण प्रक्रिया का एक अभिन्न हिस्सा” था और इस पर कुछ को छोड़कर सभी एकमत थे। अधिवक्ता गुप्ता ने कहा कि कोर्ट को सरकार द्वारा अपनाई गई आर्थिक नीति में दखल देने से बचना चाहिए और 2016 में 500 रुपये और 1,000 रुपये के करेंसी नोटों के नोटबंदी के फैसले की वैधता की अदालत द्वारा जांच नहीं की जानी चाहिए। इस पर बेंच ने कहा कि अदालत नोटबंदी के फैसले के गुण-दोष पर विचार नहीं करेगी, बल्कि वह निर्णय लेने के लिए अपनाई गई प्रक्रिया की गहनता पूर्वक पड़ताल करेगी।