नई दिल्ली। भारत सरकार की तरफ से पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) पर पिछले साल प्रतिबंध लगाया गया था। केंद्र की तरफ से इसको लेकर तर्क दिया गया था कि देश के खिलाफ कई गतिविधियों में PFI शामिल है। अब जिस मकसद से PFI को बैन किया गया, कर्नाटक में वो कमजोर होता दिख रहा है। आजतक की सीक्रेट जांच में ये पता चला है कि PFI एक दूसरे नाम से राज्य में पूरी तरह सक्रिय है। उसके कई सदस्य उस संगठन का हिस्सा बन अपने पुराने काम को ही अंजाम तक पहुंचाने में जुटे हुए हैं।
दरअसल, बात ये है कि जिस कर्नाटक में बीजेपी विधानसभा चुनाव की तैयारियां कर रही है वहीं राज्य के भीतर एक ऐसा संगठन सक्रिय है जो देश विरोधी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए कुछ भी कर सकता है। ये संगठन है-Social Democratic Party of India यानी कि SDPI कई लोग इसे पीएफआई का ही राजनीतिक संगठन तक मानते हैं। अब हो ये रहा है कि इस समय इस SDPI संगठन में ही पीएफआई के सदस्य घुस गए हैं। बड़ी तादाद में वो शामिल हुए हैं, अपने उसी पुराने एजेंडे को आगे भी बढ़ा रहे हैं। रिपोर्टर से बात करते हुए पीएफआई नेता चांद पाशा ने कहा कि वो अपने इलाके में संगठन को लगातार मजबूत कर रहा है, वीडियो जारी कर रहा है, वाट्स ऐप के जरिए मुस्लिम वोटरों के बीच अपनी विचारधारा फैला रहा है। पाशा ने इस बात पर भी जोर दिया कि हम सभी पीएफआई के ही कार्यकर्ता हैं, हम लगातार अपने समर्थकों के बीच मंथन करते हैं, जो उम्मीदवार जीत सकता है, इस पर चर्चा करते हैं। बस बीजेपी को पछाड़ना हमारा असल मकसद है।
India Today uncovers evidence on how PFI has seamlessly assimilated into the SDPI.
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SDPI कार्यकर्ता मुनीब बेंगरे से जब रिपोर्टर ने स्टिंग के दौरान पूछा कि अब क्या PFI के सभी कार्यकर्त्ता SDPI में आ गए हैं, तो उसने हां में सिर को हिलाते हुए कहा, ”हां, क्यूंकि PFI तो अब बैन हो गए है, तो सारे मेंबर्स अब SDPI को ज्वाइन कर चुके हैं। इसके बाद रिपोर्टर ने सवाल किया कि सिर्फ जो PFI के लोग जेल गए हैं, उनके आलावा सभी नीचे के छोटे कार्यकर्ता आपके साथ हैं, तो उसने कहा हां सभी नीचे के कार्यकर्ताओं ने हमारे साथ मिलकर काम करना शुरू कर दिया है। बेशक PFI बैन हो गया है, लेकिन कार्यकर्ता फिर भी हमारे साथ हैं। यहां आरएसएस काफी स्ट्रांग है, लेकिन SDPI भी उतना ही स्ट्रांग है। लेकिन SDPI के मजबूत होने से यहां का यूथ भी मजबूत हो रहा है।”
इसके बाद स्टिंगर ने नज़ीर नाम के एक SDPI की ऑफिस में काम करने वाले व्यक्ति से सवाल किया…. क्या PFI के कार्यकर्ता बैन के बाद भी उसी तरह से अड़े हुए हैं, जैसे पहले हुआ करते थे। तो नज़ीर ने हां में सिर को हिलाते हुए जवाब दिया.. हां, वो अबतक वैसे ही बने हुए हैं, हमारे साथ आ गए हैं लेकिन अबतक हिले नहीं हैं और अपने एजेंडे पर कायम हैं। जो नए युवा आ रहे हैं,बेशक उनके पास ट्रेनिंग नहीं होती लेकिन हम उन्हें शुरू से प्रशिक्षित करते हैं। लेकिन PFI में सिर्फ उन्ही लोगों को रखा जाता है जो उच्च प्रशिक्ष्ण लेते हैं और अपने लीडरशिप की बात को सही तरीके से मानते हैं।”
नज़ीर ने बताया कि PFI को अब बेहद डर लगता है, क्योंकि जब भी आरएसएस या राइट विंग के किसी कार्यकर्ता की हत्या होती है, तो इधर से 20-25 लोग धर लिए जाते हैं, लेकिन जब PFI या SDPI के किसी कार्यकर्ता की हत्या होती है तो उधर के सिर्फ 3-4 लोग ही अरेस्ट होते हैं, ये प्रॉब्लम है।
गौर करने वाली बात ये है कि जिस पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया को केंद्र सरकार की तरफ से देशविरोधी गतिविधियों के आरोप में बैन कर दिया गया है, कर्नाटक में उसकी विचारधारा का प्रसार अभी भी धड़ल्ले से कैसे चल रहा है। आखिर इसे बैन हुए संगठन के पास इतनी ताकत कहा से आ रही है, उसे कौन मदद कर रहा है। जांच में इस सवाल का जवाब निकलकर सामने आया है। पाशा ने ही बताया है कि इलाके में 30 से 50 मस्जिद हैं, उनके 10 से 15 प्रेसिडेंट हैं, उन सभी ने फिर 10 से 15 ग्रुप बना रखे हैं। अब कोई भी संदेश देना होता है तो वो क्लिक से कई लोगों तक आसानी से पहुंच जाता है। बड़ी बात ये है कि इस समय कर्नाटक के चिकमंगलुरु जिले में 70 से 80 फीसदी तक पीएफआई का संगठन अभी भी एक्टिव है, यानी कि वहां प्रतिबंध का किसी तरह का कोई प्रभाव दिखाई नहीं दिया है।