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जानिए कौन थे बिरसा मुंडा, जिनकी याद में आज से हर साल मनेगा जनजातीय गौरव दिवस

मार्च 1900 को बिरसा मुंडा और उनके कुछ करीबी साथियों को गिरफ्तार कर लिया। सभी को रांची जेल में रखा गया। जहां 9 जून 1900 को बिरसा मुंडा ने शहादत पाई। बिरसा के अलावा अंग्रेजों की कैद में उनके 5 और साथियों को भी जान गंवानी पड़ी।

रांची। आजादी के आंदोलन में नायकों की कमी नहीं। 1875 की क्रांति से लेकर 1947 तक चली अंग्रेजों की अधीनता खत्म करने की इस जंग में तमाम नाम हर रोज लिए जाते हैं। इनमें चर्चित चेहरे हैं, तो तमाम ऐसे भी जिन्हें महज साल में एक बार याद किया जाता है। इन्हीं में से एक हैं बिरसा मुंडा। अंग्रेजों और जमींदारों के उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाने वाले पहले आदिवासी थे बिरसा मुंडा। उन्होंने आदिवासियो के हक में अंग्रेजों के खिलाफ हथियार उठाए थे और नतीजे में महज 25 साल की कम उम्र में देश के लिए बलिदान दिया था। बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को मौजूदा झारखंड में हुआ था। होश संभालने पर उन्होंने देखा कि जमींदार और अंग्रेज मिलकर आदिवासियों को उनकी परंपरागत जमीन से बेदखल कर रहे हैं। इसी के खिलाफ बिरसा मुंडा ने आदिवासियों को एकजुट कर अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया।

इस आंदोलन के दौरान बिरसा मुंडा ने अंग्रेजों पर लगातार छापामार हमले किए और उन्हें परेशान कर दिया। अंग्रेजों ने इसके बाद दूसरी चाल चली और कुछ मुखबिरों की मदद से 3 मार्च 1900 को बिरसा मुंडा और उनके कुछ करीबी साथियों को गिरफ्तार कर लिया। सभी को रांची जेल में रखा गया। जहां 9 जून 1900 को बिरसा मुंडा ने शहादत पाई। बिरसा के अलावा अंग्रेजों की कैद में उनके 5 और साथियों को भी जान गंवानी पड़ी।

बिरसा मुंडा को झारखंड और बिहार में आदिवासी समाज भगवान की तरह पूजता है। देश के अन्य आदिवासी भी बिरसा मुंडा का बहुत सम्मान करते हैं। उनकी शहादत को 121 साल होने के बाद भी लोगों के जेहन से बिरसा मुंडा की याद मिटी नहीं है। बिरसा मुंडा की मुंडा जनजाति ने तो अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन किया ही, इसके अलावा तमार, संथाल, खासी, भील, मिजो और कोल जनजातियों ने भी आजादी के आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था।