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Prabuddh Sammelan: मायावती ने सतीश मिश्रा को बिठाया दूर, क्या ऐसे मिलेंगे ब्राह्मणों के वोट!

Prabuddh Sammelan: बता दें कि साल 1989 में बीएसपी ने नारा दिया था “तिलक, तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार”। अब बीएसपी ब्राह्मणों को रिझा रही है। यहां तक कि प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन में जय श्रीराम और हर-हर महादेव का नारा लगवा रही है।

नई दिल्ली। अगले साल उत्तर प्रदेश में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। लेकिन इससे पहले सभी राजनीतिक दल सत्ता में काबिज होने के लिए सभी तबकों को खुश करने में लग गए है। इसी क्रम में अब उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और बीएसपी सुप्रीमो मायावती यूपी के ब्राह्मण को लुभाने में लगी है। मंगलवार को बीएसपी अध्यक्ष मायावती ने अपने चुनावी अभियान का आगाज कर दिया। बीएसपी के प्रबुद्ध सम्मेलन का आज आखिरी दिन है। इस मौके पर बड़ा कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस दौरान मायावती मंच पर शंख, मंत्र, त्रिशूल और गणेश के साथ दिखी और इतना ही नहीं इस कार्यक्रम में जय श्री राम के नारे भी लगे।

BSP Chief Mayawati

यूपी में सत्ता का अपना वनवास खत्म करने के लिए मायावती ब्राह्मण समुदाय को जोड़ने की कवायद में जुट गई है। लेकिन वह उन्हीं ब्राह्मण के साथ खिलवाड़ करते दिख रही है। दरअसल मायावती ने महासचिव और सांसद सतीश चंद्र मिश्रा को ब्राह्मणों को लुभाने के लिए मैदान में उतारा। सतीश चंद्र मिश्रा ने 74 जिलों में प्रबुद्ध सम्मेलन कर ब्राह्मणों पर योगी सरकार के खिलाफ जोरशोर से प्रचार किया। मगर मायावती अब उन्हें ही तरजीह नहीं दे रही है। सामने आई तस्वीरों में देखा जा सका है कि जिस सतीश चंद्र मिश्रा को मायावती ने ब्राह्मण चेहरा बनाकर पेश किया था अब उन्हें पार्टी में खास जगह नहीं दी जा रही है। साथ ही अपनी बगल वाली सीट पर नहीं बैठा रही है।

मायावती की पार्टी में ब्राह्मण समुदाय को कितनी तवज्जो दी जाती है इसका अंदाज यूपी में इसका बात से लगाया जा सकता है कि बसपा ने साल 2007 के विधानसभा चुनाव में 86 टिकट ब्राह्मण उम्मीदवार को दिया था। जबकि साल 2012 के यूपी चुनाव में 68 ब्राह्मण उम्मीदवार को टिकट दिया गया था। इससे साफ हो जाता है कि मायावती यूपी में सत्ता वापिस के लिए सिर्फ दिखावा कर रही है।

बता दें कि साल 1989 में बीएसपी ने नारा दिया था “तिलक, तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार”। अब बीएसपी ब्राह्मणों को रिझा रही है। यहां तक कि प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन में जय श्रीराम और हर-हर महादेव का नारा लगवा रही है। मायावती की बीएसपी खुद का चरित्र बदलने की कोशिश में जुटी है, लेकिन 2007 में ब्राह्मण वोटों को अपने पक्ष में जुटाने वाली बीएसपी के लिए इस बार खेल इतना आसान नहीं है। 2007 के चुनावों से काफी पहले बीएसपी ने ब्राह्मणों को साधने की तैयारी शुरू कर दी थी। इस बार उसने महज 6-7 महीने पहले ब्राह्मण कार्ड खेला है।

सतीश चंद्र मिश्रा ने कहा है कि 13 फीसदी ब्राह्मण और 23 फीसदी दलित मिल जाएं, तो बीएसपी सरकार बना सकती है, लेकिन हकीकत ये है कि सारी दलित जातियां बीएसपी के साथ नहीं हैं। सिर्फ मायावती की जाति यानी जाटव वोटर ही बीएसपी के साथ रह गए हैं। बाकी दलितों ने बीजेपी का दामन काफी पहले ही थाम लिया है। इससे भी बीएसपी का सुनहरा ख्वाब इस बार पूरा होता नहीं दिख रहा। बीजेपी ने 2014 के बाद से जिस तरह दलितों के लिए योजनाएं चलाई हैं, उसका नतीजा 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनाव में बीएसपी देख ही चुकी है।