वाराणसी। कोर्ट कमिश्नर। ये दो शब्द वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे के लिए कोर्ट के आदेश के बाद चर्चा में आए हैं। आखिर कोर्ट कमिश्नर होते कौन हैं और इनकी नियुक्ति किस कानून के तहत की जाती है? इन सवालों का जवाब आप भी जानना चाहते होंगे। तो चलिए आपको बताते हैं कि आखिर कोर्ट क्यों कमिश्नर की नियुक्ति करता है और किस कानून के तहत इनकी नियुक्ति की जाती है। पहले आपको बताते हैं कि ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे में कितने कोर्ट कमिश्नर हैं और उनके नाम क्या हैं। इस मामले में कोर्ट की ओर से पहले अजय कुमार मिश्र को कमिश्नर नियुक्त किया गया था। इसके बाद मुस्लिम पक्ष की ओर से अजय पर एकपक्षीय कार्यवाही करने का आरोप लगाया गया। जिसके बाद कोर्ट ने विशाल सिंह और अजय प्रताप सिंह को भी अजय मिश्र के साथ कोर्ट कमिश्नर बनाया।
कोर्ट कमिश्नर की नियुक्ति सिर्फ सिविल वादों में होती है। इनकी नियुक्ति उस वक्त की जाती है, जब कोर्ट को लगता है कि प्राप्त दस्तावेजों के आधार पर किसी मामले में फैसला सुनाना ठीक नहीं रहेगा। तब मौके की जांच के लिए कोर्ट कमिश्नर की नियुक्ति की जाती है। सभी कोर्ट कमिश्नर को सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 75 के तहत नियुक्त किया जाता है और इनके पास व्यापक अधिकार भी रहते हैं। तो अब जान लेते हैं कि कोर्ट कमिश्नर को क्या अधिकार हासिल होते हैं।
कोर्ट कमिश्नर किसी भी व्यक्ति की कानूनी तौर पर परीक्षा या बयान दर्ज कर सकता है। इसके साथ ही वो मौके पर जांच करने जा सकता है। लेखा खातों का परीक्षण भी वो कर सकता है। वैज्ञानिक और तकनीकी विशेषज्ञ की सेवा भी वो ले सकता है। इसके अलावा कोर्ट जो भी आदेश दे, उसके तहत काम करना भी उनका अधिकार होता है। कोर्ट को वाद से संबंधित पक्षों की बात सुनकर ही कोर्ट कमिश्नर की नियुक्ति करने का अधिकार होता है। किसी राज्य सरकार से संबंधित मसले में कोर्ट कमिश्नर की नियुक्ति नहीं की जा सकती। इसके लिए जांच आयोग बनाया जा सकता है।