नई दिल्ली। 2014 के बाद से लगातार आले दर्जे के सियासी पंडित कांग्रेस की दुर्गति को लेकर चिंतन-मंथन कर रहे थे कि आखिर ऐसी क्या वजह है कि देश की सबसे पुरानी पार्टी आज इतनी बेबस, लाचार और बदहाल हो चुकी है। सभी इसकी वजह तलाशने में जुटे हुए थे। लेकिन किसी को कामयाबी नहीं मिल पाई, लेकिन बीते दिनों कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने खुद अपनी ही जबां से इसकी वजह एक कार्यक्रम के दौरान जाहिर कर दी। उन्होंने कहा कि, मैं बेशक एक राजनीतिक घराने में पैदा हुआ हूं, लेकिन सत्ता के प्रति मेरी लालसा बिल्कुल शून्य है। सत्ता के प्रति मेरी दिलचस्पी बिल्कुल भी नहीं है। उनके बयान से यह सहज जाहिर होता है कि नेहरू गांधी परिवार में जन्म लेने की बाध्यता ही उनके द्वारा कांग्रेस का नेतृत्व करने की वजह है। शायद वह अपने बयान से यही कहना चाह रहे हैं कि राजनीति के प्रति उनकी तनिक भी दिलचस्पी नहीं है, बल्कि राजनीति घराने में पैदा लेने की वजह से उन्हें कांग्रेस का नेतृत्व करना पड़ रहा और शायद यही कारण है कि आज कांग्रेस अपनी दुर्गति के सारे पैमानों को ध्वस्त कर चुकी है।
शायद अब यह कहना गलत नहीं रह गया है कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी राजनीति के प्रति उदासीन हो चुके हैं। वे राजनीति गतिविधियों को लेकर अब आतुर नहीं रहे। शायद इसलिए पार्टी को जब उनकी सख्त दरकार रहती है, तो वे फुर्र से विदेश फुर्र हो जाते हैं। अब जैसा कि अब खबर आई है कि राहुल गांधी विदेश रवाना हो चुके हैं। अब मसला यहां उनके विदेश जाने का नहीं है। विदेश जाना तो उनका अपना मौलिक अधिकार है। वे कहीं भी आ जा सकते हैं। इससे किसी को भी आपत्ति नहीं है। अब भईया टिकट वो बुक करवा रहे हैं। पैसा उनका है। मेहनत उनकी है। तो भला दूसरों को आपत्ति क्यों होगी। लेकिन आपत्ति तब होती है, जब वे एक ऐसे वक्त में पार्टी को अनाथ छोड़कर चले जाते हैं, जब पार्टी को उनकी सख्त जरूरत होती है।
अब आप खुद ही देख लीजिए। राजनीतिक सलाहकार प्रशांत को लेकर पिछले काफी दिनों से यह अटकलें लगाई जा रही थीं कि वे कांग्रेस का दामन थाम सकते हैं। पीके में पार्टी में शामिल होने को लेकर कांग्रेसी बड़े खुश हो रहे थे कि अब तो भईया दुख भरे दिन बीते रे अब सुख आओ रे। लेकिन अफसोस पीके ने इन सभी की उम्मीदों यह कहकर पार्टी फेर दिया कि वे पार्टी में शामिल नहीं हो रहे हैं। दरअसल, आगामी 2024 के लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए पीके को कांग्रेस में शामिल कराने की चर्चा चल रही थी। प्लान था कि पीके को पार्टी में शामिल कराकर आगे की सियासी राह प्रशस्त की जा सकें। लेकिन अफसोस पीके ने सारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया है और एक बार फिर से कांग्रेसी अवसादग्रस्त है। खैर, कोई दो मत नहीं यह कहने में की ऐसे वक्त पार्टी को राहुल गांधी की सख्त जरूरत है, लेकिन राहुल की बेमानी देखिए की अपनी पार्टी को सपोर्ट करने की जगह वे विलायत फुर्र हो गए हैं।
हालांकि, यह कोई पहली मर्तबा नहीं है कि जब वे मुश्किल की घड़ी में पार्टी को अकेला छोड़कर चले गए हों, बल्कि इससे पहले भी वे पार्टी को अकेला छोड़कर कई बार जा चुके हैं। मसलन, 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली करारी शिकस्त के बाद भी राहुल गांधी विलायत रवाना हो गए थे। 2015 के बिहार चुनाव से पहले उन्हें फ्रांस की याद आ गई थी। इसके बाद नोटबंदी के दौरान जब देश का पूरा विपक्षी कुनबा मोदी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने पर जुटा था, तब भी राहुल गांधी विदेश जा चुके थे और न जाने कितने ही ऐसे मौके रहे जब वेव विदेश रूखसत हो गए जिससे यह साफ जाहिर होता है कि उनकी राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं है।