newsroompost
  • youtube
  • facebook
  • twitter

कोरोना के बदलते रूप की वजह से क्या बेअसर हो जाएंगे बनाए जा रहे कोविड के टीके?

भारत(India) में सबसे पहले एल स्ट्रेन का कोरोना वायरस(Corona Virus) पाया गया था जो वुहान का स्ट्रेन था। बाद में वायरस ने म्यूटेशन करके एस स्ट्रेन और फिर जी स्ट्रेन हासिल किया।

नई दिल्ली। कोरोना महामारी से परेशान दुनिया के तमाम देश इसके वैक्सीन की खोज में लगे हैं। कुछ देशों ने इसके टीके का ट्रायल भी शुरू कर दिया है। भारत में कोरोनावायरस को मात देने के लिए तीन-तीन टीके पर काम हो रहा है। जहां दुनियाभर के वैज्ञानिक कोरोना की वैक्सीन बना रहे हैं तो वहीं कोरोना भी अपना रूप बदल रहा है।

corona

अब ऐसे में सवाल उठ रहा है  कि अगर कोरोना इसी तरह से अपना रूप बदलता रहा तो क्या इसके इलाज के लिए बन रहे टीके बेकार साबित होंगे? फिलहाल आपको बता दें कि कोरोना की शुरुआत चीन के वुहान से मानी जाती है। लेकिन वुहान में पहला व्यक्ति जिस कोरोना वायरस से संक्रमित हुआ, वही वायरस पूरी दुनिया में फैला, ऐसा नहीं कहा जा सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि दूसरे वायरसों की तरह ही सार्स-कोव-2 के पास भी अलग-अलग वर्जन में बदलने की क्षमता है। वायरस ऐसा म्यूटेशन के कारण कर पाते हैं। मलेशिया में कोरोना वायरस के म्यूटेशन से पैदा हुआ एक खास तरह का स्ट्रेन चिंता का नया कारण बन गया है। लेकिन सवाल यह है कि आखिर कोरोना वायरस के ये स्ट्रेन कैसे पैदा हो रहे हैं और क्या नए-नए स्ट्रेन से कोविड-19 महामारी की रोकथाम के लिए विकसित किए जा रहे टीके पर कोई असर होगा?

मलेशिया में फैले कोरोना वायरस ज्यादातर जिस स्ट्रेन का है, वो सबसे पहले फरवरी महीने में यूरोप में पाया गया था। D614G के नाम से जाना जाने वाला यह स्ट्रेन ही अब दुनियाभर में व्यापक रूप से पाया जा रहा है। आसान शब्दों में कहा जाए तो यह स्ट्रेन डी और जी नाम के अमिनो एसिड्स के बीच अदला-बदली करता है। वायरस के स्पाइक प्रोटीन के कोड में इसका पोजिशन 614 है। चूंकि यह डी से जी के बीच अदला-बदली करता है, इसलिए इसका नाम डी614जी पड़ा है। प्रोटीन के बिल्डिंग ब्लॉक्स अमीनो एसिड्स होते हैं। वुहान में शुरुआती दिनों में कोरोना वायरस के जो नमूने इकट्ठा किए गए वो डी वरायटी के थे। रिपोर्टों के मुताबिक, मार्च महीने तक 90% से ज्यादा मरीजों को इसी वरायइटी के कोरोना वायरस ने संक्रमित किया था लेकिन उसके बाद जी वरायटी के वायरस का दबदबा बढ़ने लगा। अब जी वरायटी का कोरोना वायरस दुनियाभर के 97% संक्रमितों में पाया जा रहा है।

Corona Pic

शोध में पता चला है कि, कोरोना वायरस के अब तक कम-से-कम छह स्ट्रेन पकड़ में आ चुके हैं। अभी जी स्ट्रेन का दबदबा है और पहले सामने आए स्ट्रेन अब खत्म हो रहे हैं। दो स्ट्रेनों को अलग-अलग प्रकार का तब माना जाता है जब वो इंसानों के इम्यून सिस्टम को अलग-अलग तरह से प्रभावित करता है या उनके संक्रमण फैलाने का तरीका अलग-अलग होता है।

म्यूटेशन का मतलब है कि वायरस अपनी कॉपी पैदा करता है। लेकिन, नई कॉपी ऑरिजनल वायरस जैसा ही हो, इसकी गारंटी नहीं होती है। कई बार नई पैदा हुई कॉपी पहले के वायरस के मुकाबले कम प्रभावी होती है। ऐसे में स्ट्रेन तुरंत मर जाता है, लेकिन कुछ म्यूटेशन या वायरस की कॉपी संक्रमण की रफ्तार और तेज कर देती है। कई शोधकर्ताओं का मानना है कि सार्स-कोव-2 के स्पाइक प्रोटीन में डी614जी म्यूटेशन की मौजूदगी के कारण वायरस तेजी से संक्रमण फैलाने में सक्षम हो गया है। हालांकि, कई अन्य विशेषज्ञ कहते हैं कि इस स्ट्रेन के डॉमिनेंट होने की कई वजहें हो सकती हैं। मसलन, यह पता चला है कि अमेरिका में सार्स-कोव-2 के जो वर्जन पाए गए, वो सभी यूरोप में पैदा हुए थे। अमेरिका में इस वर्जन की व्यापकता का कारण वायरस का म्युटेशन बता सकते हैं, लेकिन यह भी सच है कि कोरोना के शुरुआती दिनों में अमेरिका में यूरोपीय देशों से भारी संख्या में लोगों का आना लगा रहा था।

Corona

भारत में सबसे पहले एल स्ट्रेन का कोरोना वायरस पाया गया था जो वुहान का स्ट्रेन था। बाद में वायरस ने म्यूटेशन करके एस स्ट्रेन और फिर जी स्ट्रेन हासिल किया। पूरे देश में यही स्ट्रेन फैला हुआ है। पुणे स्थित नैशनल सेंटर फॉर सेल साइंसेज के अध्ययन में पाया गया कि देश के अलग-अलग हिस्सों में जिला दर जिला आधार पर कोरोना वायरस के अलग-अलग वर्जन हो सकते हैं। अध्ययन में कहा गया है कि लॉकडाउन के कारण किसी एक इलाके में कोरोना वायरस का खास म्यूटेशन होना और उसका वहीं तक सीमित रह जाना कोई हैरत की बात नहीं।