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क्या सत्ता पाने के लिए कांग्रेस नक्सलवाद का भी समर्थन करती है ?

बटला हाउस एनकांटर को भी कांग्रेस नेता फर्जी बता चुके हैं। लोकतंत्र में रहकर लोकतंत्र को तोड़ने जैसा बयान भी कांग्रेसी नेता दे चुके हैं। ऐसे बयानों पर पार्टी उन पर कार्रवाई करने की बजाए उन्हें पुरस्कृत करती है।

सत्ता पाने के लिए क्या इतना नीचे गिर जाना जरूरी होता है कि आतंकियों को सम्मान दिया जाए और नक्सलियों को शहीद बताकर यह कहा जाए कि इस मामले की जांच होनी चाहिए। कांग्रेस लगातार ऐसा ही करती आ रही है। कभी उसके नेता देश को तोड़ने का बयान देते हैं तो कभी आतंकियों के लिए सम्मान सूचक शब्दों का प्रयोग करते हैं।

बहरहाल, कांग्रेसी नेताओं की सोच तो जगजाहिर है, लेकिन हाल ही में कांग्रेस की प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत्र ने छत्तीसगढ़ में मुठभेड़ में मारे गए नक्सलियों को शहीद बताते हुए इस मामले की जांच किए जाने की बात बोलकर इस मुद्दे को गर्मा दिया है। भाजपा ने इस मुद्दे पर लगातार कांग्रेस को घेर रही है। वहीं सुप्रिया दावा कर रही हैं कि उनके बयान को तोड—मरोड़कर पेश किया जा रहा है।
गत् 16 अप्रैल को छत्तीसगढ़ नक्सल प्रभावित कांकेर में सुरक्षाबलों के साथ हुई मुठभेड़ में 29 नक्सली मारे गए थे। छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के बाद यह पहली बार है जब इतने बड़ी संख्या में किसी मुठभेड़ में नक्सली मारे गए हैं। इस आपरेशन में 25 लाख का इनामी नक्सली कमांडर शंकर राव भी मारा गया था। इस विषय पर जब कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत्र से पत्रकारों ने प्रश्न पूछे तो उन्होंने नक्सलियों को शहीद बताते हुए कहा कि इस मामले की जांच कराए जाने की जरूरत है।

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नक्सलियों को शहीद बताने से पहले संभवत: सुप्रिया श्रीनेत्र यह भूल गईं कि 2013 में 27 मई को जब कांग्रेस की छत्तीसगढ़ के सुकमा में कांग्रेस की परिवर्तन रैली थी तो नक्सलियों ने दो घंटे तक खूनी तांडव खेलते हुए दो दर्जन से ज्यादा लोगों को मार डाला था। कांग्रेस के नेताओं को चुन—चुनकर मौत के घाट उतारा गया था। क्षेत्र में नक्सलवाद को समाप्त करने के लिए सलवा जुडूम जैसा आंदोलन खड़े करने वाले कांग्रेस नेता महेंद्र कर्मा को 65 गोलियां मारी गईं थीं। उनके शरीऱ पर नक्सलियों ने संगीनों से 78 वार किए थे। उनका पोस्टमार्टम करने के बाद डॉक्टरों ने यह बताया था।
यही नहीं नक्ससलियों ने उनके शव पर चढ़कर नृत्य करके जश्न मनाया था। पिछले साल पिछले साल मार्च में लोकसभा में एक सवाल के जवाब में गृह मंत्रालय ने छत्तीसगढ़ में नक्सली हमलों के आंकड़े पेश किए थे। इसमें बताया गया था कि 2013 से 2022 के बीच 10 साल में छत्तीसगढ़ में 3 हजार 447 नक्सली हमले हुए. इन हमलों में 418 जवान शहीद हो चुके हैं। जेएनयू में नक्सलियों द्वारा जवानों के मारे जाने पर मिठाइयां बांटने वाले वामपंथी गैंग में रहे कन्हैया कुमार अब कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं। कांग्रेस ने उन्हें उत्तरपूर्वी दिल्ली में लोकसभा का टिकट भी दिया है।

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बहरहाल यहां बात सिर्फ सुप्रिया श्रीनेत्र के इस बयान की नहीं है कांग्रेस नेता सदैव से ऐसे बयान देते रहे हैं। 2017 में, कांग्रेस नेता संदीप दीक्षित ने दिवंगत चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल बिपिन रावत को “सड़क का गुंडा” कहा था, हालांकि बाद में उन्होंने माफी मांग ली थी लेकिन माफी मांगने से क्या जो अपमान हुआ उसकी भरपाई होना संभव है। इससे पहले आतंकवाद के मुद्दे पर पत्रकारों के सवाल का जवाब देते हुए दिग्विजय सिंह ने मुंबई हमलों के मास्टर माइंड पाकिस्तानी आतंकी हाफिज सईद के नाम के साथ सम्मानसूचक शब्द ‘साहब’ का इस्तेमाल किया था। दिग्विजय सिंह ने अपने संबोधन में हाफिज सईद के लिए ‘उनको’ और ‘उन पर’ जैसे शब्द भी बोले थे। अमेरिका ने जब अलकायदा के आतंकी ओसामा बिन लादेन को मार गिराया था, तब दिग्विजय सिंह ने विवादित बयान दिया था। जब दिग्जिवय ने कहा था कि ओसामा जी कई साल से पाकिस्तान में रह रहे थे। ऐसा कैसे संभव है कि पाकिस्तान के अधिकारियों को पता नहीं चला। उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका को ओसामा बिन लादेन को सम्मानपूर्वक दफन करना चाहिए था। वोटों के लिए बटला हाउस एनकांटर को भी कांग्रेस नेता फर्जी बता चुके हैं। लोकतंत्र में रहकर लोकतंत्र को तोड़ने जैसा बयान भी कांग्रेसी नेता दे चुके हैं। ऐसे बयानों पर पार्टी उन पर कार्रवाई करने की बजाए उन्हें पुरस्कृत करती है। कांग्रेसी नेताओं की मानसिकता को पूरा देश देख रहा है, जिसका जवाब जनता वोट के माध्यम से देगी।

डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।