कोलकाता। राष्ट्रपति चुनाव टीएमसी चीफ और पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी के लिए नई मुसीबत का सबब बन गया है। उन्होंने अपनी पार्टी के उपाध्यक्ष रहे यशवंत सिन्हा को इस चुनाव में विपक्ष का उम्मीदवार तो बना दिया, लेकिन उनके पक्ष में खुलकर कुछ कह नहीं पा रही हैं। इसकी वजह है आदिवासी वोट। ममता को शायद लग रहा है कि अगर एनडीए की राष्ट्रपति पद की प्रत्याशी और आदिवासी नेता द्रौपदी मुर्मू के खिलाफ कुछ भी कहा, तो अपने राज्य में उनको आदिवासियों की नाराजगी झेलनी पड़ सकती है। बंगाल में आदिवासी वोटरों की तादाद करीब 8 फीसदी है।
बंगाल के चार विधानसभा इलाकों बांकुड़ा, झाड़ग्राम, पुरुलिया और पश्चिम मिदनापुर में आदिवासी वोटर सबसे ज्यादा हैं। इन इलाकों को जंगलमहल कहा जाता है। इसके अलावा कलिमपोंग, अलीपुरदुआर, कूचबिहार, दार्जिलिंग, जलपाईगुड़ी, मालदा और उत्तरी और दक्षिणी दिनाजपुर में भी आदिवासी वोटर हैं। इन्हें मिलाकर पश्चिम बंगाल में करीब 25 फीसदी आदिवासी वोटर हो जाते हैं। इनमें भी द्रौपदी मुर्मू के संथालों की आबादी 80 फीसदी है। बीजेपी ने 2019 में जंगलमहल की सभी लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की थी। अब ममता को डर है कि अगर मुर्मू के खिलाफ कुछ बोला, तो उसे नुकसान हो सकता है।
राष्ट्रपति चुनाव पर ममता की चुप्पी से कांग्रेस, सीपीएम और बीजेपी लगातार उन्हें घेर रहे हैं। कांग्रेस के नेता और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी ने आरोप लगाया है कि ममता तो राष्ट्रपति चुनाव से पहले ही अपना मन बदल चुकी हैं। वहीं, सीपीएम की ओर से कहा गया है कि ममता ने हमेशा दोहरापन दिखाया है। जबकि, बीजेपी के नेता शुभेंदु अधिकारी ने हूल दिवस के मौके पर जंगलमहल जाकर ममता के लिए आदिवासियों के दिल में और विरोध तैयार करने की कोशिश की। उन्होंने यहां द्रौपदी मुर्मू की उम्मीदवारी का जमकर प्रचार किया।