नई दिल्ली। राजस्थान में एक तरह अपराध बढ़ रहे हैं तो वहीं अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के कानून के तहत दर्ज मामलों में भी तेज से बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। यह जानकारी लोकसभा में एक सवाल के उत्तर सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री रामदास अठावले ने दी है। 14 दिसंबर को लोकसभा में एससी और एसटी के खिलाफ होने वाले अत्याचार में दर्ज हुए मामले को लेकर उन्होंने ये उत्तर दिया था। जिसके हिसाब से 2020 में 8,744 मामले अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के कानून के तहत दर्ज किये गये हैं। इसका मतलब साफ़ है कि राजस्थान में अपराध का ग्राफ तेजी से बढ़ा है। सिर्फ अपराध ही नहीं बढ़ा बल्कि दोषियों को सजा देने के मामले भी कम हुए हैं।
दरअसल लोकसभा में दी गई जानकारी के अनुसार, राजस्थान में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (निवारण की रोकथाम) के तहत 2016 में जो मामले 6,329 थे, वो 2020 में बढ़कर 8,744 हो गए हैं, 2017 में 5222 मामले, 2018 में 5563 मामले, 2019 में 8418 मामले और 2020 में, 8,744 मामले दर्ज किए गए। आंकड़ों के देखने पर पता चलता है कि 2019 में 1,121 दोषियों को इस तरह के मामलों में सजा हुई लेकिन 2020 में यह संख्या घटकर 686 हो गई। मतलब सजा की दर घटकर 7.84 प्रतिशत पहुँच गई, जो पांच वर्षों में सबसे कम है।
2016 में, एससी और एसटी के खिलाफ अपराध में 6,329 मामले दर्ज हुई थे जिसमें से 680 मामलों में दोष सिद्ध हुए जो एक वर्ष में दर्ज मामलों का 10.74% है। जबकि 2017 में दर्ज 5222 मामले में से 1,845 दोष सिद्ध हुए है। 2018 में 5563 मामले में 712 , 2019 में 8418 मामले से 1,121 और 2020 में 8,744 मामले से केवल 686 मामलों में दोष सिद्ध हुए है। मतलब अशोक गहलोत की सरकार आने के बाद इस तरह के मामलों में दोष सिद्ध होने देरी हुई है।
राजस्थान में एक तरफ जहां अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के कानून के तहत दर्ज होने वाले मामलों में तेजी से बढ़ोत्तरी दर्ज हो रही है वो वहीं दूसरी तरफ दोष सिद्ध होने में देरी हो रही है। दूसरी तरफ राजस्थान में लगातार एक के बाद एक बड़े अपराध हो रहे हैं जो पूरे देश के चिंता का विषय बनाए हुए हैं। वहीं अब इस विषय पर पूरे देश में अपराध को लेकर चिंता करने वाले कांग्रेस के सभी नेता (जिनमें राहुल गांधी, प्रियंका और सोनिया गांधी शामिल है) कुछ भी बोलने से बचते दिखाई दे रहे हैं।