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भारत-नेपाल रिश्ते को दुरुस्त करने में तुरुप का पत्ता साबित होंगे सीएम योगी!

नेपाल के प्रति ऐसी ही सद्भावना उनके गुरु ब्रह्मलीन महंत दिग्विजय नाथ की भी थी। वह नेपाल के आंतरिक विषयों में हस्तक्षेप किए बिना भारत से हमेशा सद्भावना मंडल भेजे जाने पर बल देते थे।

गोरखपुर। चीन से तनातनी के बीच मौजूदा समय में नेपाल-भारत रिश्तों की अनदेखी नहीं कि जा सकती है। लेकिन चिंता का विषय यह है कि चीन के दबाव में आकर नेपाल ने सदियों पुराने रोटी-बेटी के रिश्तों को दरकिनार कर दिया है। बावजूद इसके गोरखनाथ मंदिर और आम जनमानस के मधुर रिश्तों से दोनों देशों के पुराने रिश्तों में रवानगी लाई जा सकती है। इसे दुरुस्त करने को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और गोरक्षपीठाधीश्वर महंत योगी आदित्यनाथ तुरुप का पत्ता साबित हो सकते हैं।

KP Sharma oli and Narendra Modi

बता दें कि योगी ने हाल ही में नेपाल को आगाह किया था कि उसे अपने देश की राजनैतिक सीमाएं तय करने से पहले तिब्बत के हश्र को याद रखना चाहिए। इस बात पर नेपाली प्रधानमंत्री ओली काफी नाराज थे और इसे राजनैतिक तूल देकर एक ऐतिहासिक भूल करते हुए योगी को ही नसीहत दी थी।

नेपाल शोध अध्ययन केन्द्र के निदेशक डॉ. प्रदीप राव ने आईएएनएस को बताया, “नाथपंथ और नेपाल का संबंध सांस्कृतिक-धार्मिक स्तर पर काफी महत्वपूर्ण है। महायोगी गोरखनाथ नेपाल के राजगुरू रहे। नेपाल की मुद्राओं पर गोरखनाथ के नाम का अंकन है। पहले उस पर उनकी चरण पदुकाएं अंकित रहती थी, अब पृथ्वीनाथ की कटार अंकित है। यह नेपाली मुद्रा पर आज भी है। किसी भी राष्ट्र की मुद्रा उसकी प्रतीक होती है। जैसे भारत में आशोक चक्र और महात्मा गांधी हैं, ठीक वैसे ही नेपाल की मुद्रा पर गोरखनाथ और नाथपंथ से जुड़े प्रतीक आज भी अंकित हैं। यह जनमानस में रचा बसा है। वहां की कम्युनिस्ट सरकार भी उनका प्रतीक नहीं हटा पाई। हम आज तक इसका उपयोग भारत नेपाल के संबंध में नहीं कर पाएं, नहीं तो आज यह स्थिति न होती है। गोरखनाथ को केन्द्र में रखकर यदि भारत नेपाल सांस्कृतिक विरासत की बात करेंगे तो बिना गोरखनाथ मंदिर के यह कैसे संभव है। नेपाल की जनता गोरखनाथ के पीठाधीश्वर को आज भी गोरखनाथ का प्रतिनिधि मानती है।”

Yogi Adityanath

गौरतलब है कि नाथपंथ और नेपाल के रिश्ते हजारों वर्ष पुराने हैं। महायोगी गोरखनाथ जी द्वारा प्रवर्तित नाथपंथ के प्रभाव से पूर्व नेपाल में योगी मत्स्येन्द्रनाथ की योग परम्परा का प्रभाव दिखायी देता है, जिन्हें नेपाल के सामाजिक जनजीवन में अत्यंत सम्मान प्राप्त है। इसकी झलक नेपाली समाज में प्रसिद्घ मत्स्येन्द्र-यात्रा-उत्सव के रूप में मिलती है। गुरु गोरक्षनाथ के प्रताप से गोरखा राष्ट्र, जाति, भाषा, सभ्यता एवं संस्कृति की प्रतिष्ठा हुई। शाह राजवंश के सभी नरेशों ने गुरु गोरखनाथ को अपना इष्टदेव स्वीकारा। नेपाल के शाहवंशी शासकों ने अपने सिक्कों पर गुरु गोरखनाथ की चरणपादुकाओं का चिह्न् अंकित कराया।

नेपाल की जनता एवं शाह राजवंश परम्परागत रूप से महायोगी गोरक्षनाथ को प्रतिवर्ष भारत के गोरखपुर स्थित गोरखनाथ मन्दिर में मकर संक्रान्ति को खिचड़ी चढ़ाते हैं। आज भी नेपाली जनता के बीच गोरखनाथ राष्ट्रगुरु के रूप में पूज्य हैं। यह नाथपंथ का नेपाल में प्रभाव और तत्कालीन गोरक्षपीठाधीश्वर महंत दिग्विजयनाथ के प्रति आदर ही था कि 1950 के दशक में शाह राजवंश और राणा शासकों में जारी सत्ता संघर्ष के दौर में तत्कालीन सरकार को उनकी मदद लेनी पड़ी। बावजूद इसके भारत के प्रति नेपाल का यह रवैया दुखद है। वह भी तब जब योगी जी के गुरु ब्रह्मलीन अवेद्यनाथ अक्सर यह कहा करते थे कि नेपाल सिर्फ हमारा पड़ोसी मित्र राष्ट्र ही नहीं समान और साझा सांस्कृतिक विरासत के कारण सहोदर भाई जैसा एकात्म राष्ट्र है।

India nepal

नेपाल के प्रति ऐसी ही सद्भावना उनके गुरु ब्रह्मलीन महंत दिग्विजय नाथ की भी थी। वह नेपाल के आंतरिक विषयों में हस्तक्षेप किए बिना भारत से हमेशा सद्भावना मंडल भेजे जाने पर बल देते थे।

ब्रह्मलीन महंत अवैद्यनाथ ने भी आजीवन नेपाल के प्रति इन्हीं विचारों और नीतियों का समर्थन और अनुकरण किया। वह बार-बार भारत सरकार को नेपाल में हो रहे सामाजिक और राजनीतिक बदलाव के बारे में सचेत करते रहे। माओवादी गतिविधियां, आईएसआई की पैठ और धमार्ंतरण को भारत विरोधी गतिविधियां बताते रहे।

CM Yogi Adityanath

अपने गुरु की इस सोच को योगी आदित्यनाथ भी अक्सर उल्लेख किया करते हैं। ऐसे वक्त में भारत की वर्तमान सरकार को नेपाल के साथ अपने संबंधों को सुदृढ करने के लिए नाथ सम्प्रदाय की आध्यात्मिक उपस्थिति और प्रभाव का सहयोग लेना चाहिए। एक स्थिर नेपाल ही भारत के लिये हितकारी है, ऐसी स्थिति में योगी आदित्यनाथ, भारत सरकार के लिए तुरुप का इक्का साबित हो सकते हैं।