नई दिल्ली। तीन कृषि कानूनों पर एक साल से ज्यादा वक्त तक चले किसान आंदोलन की हकीकत की कई परतें पहले खुल चुकी हैं। ताजा परत ये खुली है कि देश के 83 फीसदी किसान संगठन इन कानूनों के पक्ष में थे। जबकि, किसान आंदोलन करने वाले संयुक्त किसान मोर्चा SKM का दावा था कि देश का हर किसान इन कानूनों को वापस लेने के पक्ष में है। कृषि कानूनों के बारे में पड़ताल करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने एक कमेटी बनाई थी। उसकी रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि 73 में से 61 किसान संगठन तीनों कृषि कानूनों के पक्ष में थे। ये 61 किसान संगठन देश के 3.5 लाख किसानों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
रिपोर्ट को विशेषज्ञों की कमेटी ने 19 मार्च 2021 को सुप्रीम कोर्ट को सौंपा था, लेकिन कोर्ट ने इसे सार्वजनिक नहीं किया था। अब इस कमेटी के सदस्य और शेतकारी संगठन से जुड़े अनिल घनवट ने इसे जारी किया है। घनवट ने कहा कि कोर्ट से हमने कई बार रिपोर्ट को सार्वजनिक करने के लिए कहा था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि अब कृषि कानून रद्द हो गए हैं, ऐसे में रिपोर्ट की अब कोई प्रासंगिकता नहीं है। बता दें कि कृषि कानूनों पर लगातार आंदोलन के बाद पीएम नरेंद्र मोदी ने पिछले साल 19 नवंबर को इन्हें वापस लेने का एलान किया था। मोदी ने कहा था कि वो किसानों के हित में कानून लाए थे, लेकिन किसानों को इनके फायदे नहीं बता सके। अब देशहित में वो कानूनों को वापस ले रहे हैं।
घनवट ने मीडिया से बातचीत में ये जानकारी भी दी कि 73 किसान संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट की कमेटी से बात की, लेकिन संयुक्त किसान मोर्चा ने इस बारे में कोई बात नहीं की। उन्होंने कहा कि हमने किसान मोर्चा के नेताओं को कई बार बुलाया, लेकिन वे आए ही नहीं। खास बात ये भी है कि कमेटी ने न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी MSP पर कानून बनाने की मांग को भी अपनी रिपोर्ट में गलत बताया है और इसका समर्थन नहीं किया है।