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Noida Flats : होम बायर्स के लिए आई ‘गुड न्यूज’, सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले के बाद 40 हजार फ्लैटों की रजिस्ट्री का रास्ता हुआ साफ

Noida Flats : बकाया भुगतान को लेकर बिल्डर्स और अथॉरिटीज के बीच चल रहा विवाद खत्म हो गया है। सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त 2020 में एमसीएलआर (MCLR) के हिसाब से ब्याज दर वसूलने का आदेश दिया था। लेकिन सोमवार को कोर्ट ने इसे वापस ले लिया।

नई दिल्ली। नोएडा जैसे सेंट्रल सिटी में रहना हर किसी की ख्वाहिश होती है। लेकिन ये शहर इतना महंगा है कि यहां पर खुद का एक मकान लेना मध्यमवर्गीय परिवारों के लिए चुनौती से कम नहीं है। लेकिन अगर आपने भी नोएडा या ग्रेटर नोएडा की क‍िसी सोसायटी में फ्लैट ल‍िया है तो यह खबर आपके काम की है। जी हां, यद‍ि अभी तक आपके फ्लैट की रज‍िस्‍ट्री नहीं हुई है तो आपके ल‍िए खुशखबरी है। आने वाले समय में आपके फ्लैट की रज‍िस्‍ट्री का रास्‍ता साफ हो गया है। नोएडा और ग्रेटर नोएडा में काम कर रही रियल एस्टेट कंपनियों को सुप्रीम कोर्ट के आए फैसले से झटका लगा है। इस फैसले में बिल्डरों को पट्टे पर दी गई जमीन की बकाया राशि पर वसूली जाने वाली ब्याज दर सीमा हटा दी गई है। इससे आने वाले वक्त में जिन लोगों ने फ्लैट के लिए पैसे जमा किए थे और उनकी रजिस्ट्री नहीं हो पाई थी उन्हें काफी राहत मिलेगी।

आपको बता दें कि बकाया भुगतान को लेकर बिल्डर्स और अथॉरिटीज के बीच चल रहा विवाद खत्म हो गया है। सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त 2020 में एमसीएलआर (MCLR) के हिसाब से ब्याज दर वसूलने का आदेश दिया था। लेकिन सोमवार को कोर्ट ने इसे वापस ले लिया। अब बिल्डर्स को अथॉरिटी द्वारा तय बढ़ी दरों पर ही बाकी रकम का भुगतान करना होगा। कोर्ट के इस फैसले के बाद नोएडा और ग्रेटर नोएडा के ग्रुप हाउसिंग प्रोजेक्ट्स में फंसे करीब 40 हजार होम बायर्स की रजिस्ट्री का रास्ता साफ हो गया है। बता दें कि इस मामले में मुख्य न्यायाधीश यू यू ललित और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की पीठ ने नोएडा और ग्रेटर नोएडा प्राधिकरणों की तरफ से दायर उस अर्जी को स्वीकार कर लिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के 10 जून, 2020 के आदेश को वापस लेने की मांग की गई थी। इस आदेश में बिल्डरों पर बकाया राशि के लिए अधिकतम 8 प्रतिशत की ब्याज दर तय की गई थी।

वहीं इस पूरे प्रकरण में प्राधिकरणों की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता रवींद्र कुमार ने साफ तौर पर कहा कि इस आदेश को वापस लेने की मांग उच्चतम न्यायालय ने मान ली है। हालांकि अभी तक इस आदेश की जानकारी उच्चतम न्यायालय की वेबसाइट पर अपलोड नहीं हुई है। कुमार ने सुनवाई के दौरान दलील दी थी कि अधिकतम ब्याज दर की सीमा तय करने का आदेश वापस नहीं लिए जाने पर दोनों विकास प्राधिकरणों को 7,500 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हो सकता है।