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झूठ, दुष्प्रचार और भीषण अंतर्विरोध से भरी हुई है मोदी को विपक्ष की लिखी चिट्ठी, ये रहे सबूत

इस चिट्ठी को सरसरी निगाह से पढ़ते ही इसके भीतर छुपा झूठ और फरेब का घटिया लिजलिजापन सिरे से बेनकाब होने लगता है। चिट्ठी के पहले बिंदु के तहत केंद्रीय स्तर पर वैक्सीन की व्यवस्था की बात कही गई है। अब विपक्ष के इस सफेद झूठ का सच जानिए। खुद राहुल गांधी ने अप्रैल में पत्र लिखकर वैक्सीन की खरीद में राज्य सरकारों की ज्यादा भागीदारी और दखल की मांग की थी।

विपक्षी पार्टियों ने अब पीएम मोदी को टारगेट करने का नया हथकंडा अपनाया है। इसके तहत इन सभी विपक्षी पार्टियोँ ने मिलकर पीएम को एक चिट्ठी लिखी है। इस चिट्ठी में कोरोना नियंत्रण के नाम पर पीएम को 9 सुझाव दिए गए हैं और इसी बहाने उन्हें घेरने की कोशिश की गई है। इस चिट्ठी पर सोनिया गांधी, शरद पवार, एचडी देवगौड़ा, उद्धव ठाकरे, ममता बनर्जी, एमके स्टालिन, हेमेंत सोरेन, फारूख अब्दुल्ला से लेकर अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव, डी राजा और सीताराम येचुरी के हस्ताक्षर हैं। यानि कि मोदी के खिलाफ पूरा का पूरा विपक्ष झूठ की बुनियाद पर गठजोड़ कर हमलावर हो गया है।

Opposition leaders

इस चिट्ठी को सरसरी निगाह से पढ़ते ही इसके भीतर छुपा झूठ और फरेब का घटिया लिजलिजापन सिरे से बेनकाब होने लगता है। चिट्ठी के पहले बिंदु के तहत केंद्रीय स्तर पर वैक्सीन की व्यवस्था की बात कही गई है। अब विपक्ष के इस सफेद झूठ का सच जानिए। खुद राहुल गांधी ने अप्रैल में पत्र लिखकर वैक्सीन की खरीद में राज्य सरकारों की ज्यादा भागीदारी और दखल की मांग की थी। राहुल के पीछे पीछे कई कांग्रेसी नेताओं ने इसी तरह की मांग रखी। चिट्ठी का दूसरा बिंदु फ्री यूनिवर्सल मास वैक्सीनेशन यानि मुफ्त में सभी के टीकाकरण की हिमायत करता है। अब इसका भी सच समझ लीजिए। कांग्रेस के कई दिग्गज नेता जिसमें डॉ अभिषेक मनु सिंघवी से लेकर शशि थरूर तक शामिल हैं, साफ तौर पर प्राइवेट चैनल वैक्सीनेशन की हिमायत करते आए हैं। शशि थरूर ने तो एनडीटीवी से बात करते हुए यहां तक कहा था कि सरकार को खुले बाजार में वैक्सीन को ऊंचे दामों में बेचना चाहिए। इससे लोगों को ये विकल्प मिलेगा कि वे जब इसे चाहते हों, तब ले सकें। मगर कांग्रेस यहां सलेक्टिव मेमोरी लॉस का शिकार हो गई।

PM Narendra Modi

चिठ्ठी में वैक्सीन के घरेलू उत्पादन को बढ़ाने की बात कही गई है। मगर मनीष तिवारी समेत दूसरे कांग्रेसी नेता महीनों तक घरेलू कोवैक्सीन के खिलाफ लोगों को भड़काते रहे। अखिलेश यादव ने तो इसे बीजेपी की वैक्सीन तक करार दिया। चिट्ठी में वैक्सीन के लिए बजटीय आवंटन का जिक्र किया गया है। हकीकत यह है कि अब तक कुल 17.59 करोड़ लोगों को वैक्सीन लग चुकी है। इसमें से 16 करोड़ वैक्सीन केंद्र सरकार के चैनल के द्वारा निशुल्क लगाई गई हैं। अब ये सोचने वाली बात है कि अगर बजट से इस्तेमाल नही किया जाता, तो फिर ये वैक्सीन कैसे लगतीं?

Rahul Sonia Mamta

चिट्ठी में किस तरह से जमकर राजनीति की गई है, इसका पता सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के मसले से लगता है। इस चिट्ठी में जिस पर शरद पवार और उद्धव ठाकरे के भी हस्ताक्षर हैं, कोरोना की महामारी शुरू होने के पहले से ही स्वीकृत सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को रोकने की बात कही गई है। मगर कोरोनाकाल में ही छत्तीसगढ़ की नई विधानसभा और महाराष्ट्र में कई सौ करोड़ के एमएलए हॉस्टल के निर्माण पर ये नेता यूं खामोश हैं, मानो इन्हें सांप सूंघ गया हो। चिट्ठी में पीएम केयर फंड के अनअकाउंटेड होने यानि उसके हिसाब किताब की जवाबदेही न होने का सवाल उठाया गया है। जबकि हकीकत यह है कि यूपीए काल में पीएम केयर्स का कोई हिसाब किताब नहीं था। इसके भीतर छाए भाई भतीजावाद और अपारदर्शिता का ये आलम था कि सोनिया गांधी को इसका आजीवन सदस्य बना दिया गया था और कांग्रेसी नेता रामेश्वर ठाकुर को ऑडीटर। अब कांग्रेस का एक अदना नेता कांग्रेस की मालकिन सोनिया गांधी के कामकाज का क्या ऑडिट करेगा, इस पर गौर करते ही पूरा खेल समझ में आ जाता है। इसके उलट पीएम मोदी के काल में इसका उपयोग ऑक्सीजन प्लांट बनाने और ऑक्सीजन सिस्टम की खरीद में किया जा रहा है।


100 करोड़ की वसूली में घिरी शरद पवार की सरकार और किसानों की सम्मान निधि मार लेने वाली ममता बनर्जी की सरकार अपने नेताओं के ज़रिए इस चिट्ठी में गरीबों का हवाला दे रही है जिसे पढ़ते ही हंसी आती है। 12 नेताओं के हस्ताक्षर वाली ये चिट्ठी कई वजहों से खासी हास्यास्पद है। इसमें अनाज के मुफ्त वितरण की बात कही गई है। जबकि पीएम गरीब कल्याण योजना के तहत 80 करोड़ से अधिक गरीबों को पहले से ही मुफ्त राशन का लाभ दिया जा रहा है। यानि प्रचार के भूखे ये नेता मोदी सरकार की पहले से चल रही स्कीम को भी अपने हथकंडे का हिस्सा बना रहे हैं। चिठ्ठी के आखिर में कृषि कानूनों को खत्म करने का भी जिक्र किया गया है। ये तब है जबकि कांग्रेस के साल 2019 के घोषणापत्र में एपीएमसी को रद्द करने का वादा किया गया था और कृषि उत्पादों के लिए फ्री मार्केट की बात कही गयी थी। संक्षेप में कहें तो विपक्ष की ये चिट्ठी घटिया राजनीति की बुनियाद पर तैयार की गई झूठ और फरेब की घृणित तस्वीर है।