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Punjab: काला पीलिया से मरीज बदहाल, दवाई खत्म, डॉक्टरों ने भी खड़े किए हाथ

Punjab: बात अगर प्रदेश में स्वास्थ्य व्यवस्थाओं की करें तो जनता बदहाल है। आलम यह है कि अस्पतालों में दवाइयां तक नहीं है। डॉक्टर तक हाथ खड़े कर दे रहे हैं। मरीजों के उपचार में उनका चिकत्सकीय तालीम भी दम तोड़ दे रहा है। जिसका खामियाजा सीधा मरीजों को भुगतना पड़ रहा है।

नई दिल्ली। जरा उन दिनों को याद कीजिए, जब पंजाब में चुनाव प्रचार जारी थे। बीजेपी, कांग्रेस से लेकर आम आदमी पार्टी तक सूबे की जनता को रिझाने में मशगूल थे। कोई अपनी उपलब्धियां गिना रहा था, तो कोई दूसरों की खामियां बता रहा था। इस बीच आम आदमी पार्टी के संजोयक अरविंद केजरीवाल ने पंजाब की जनता को रिझाने के लिए अपने दिल्ली मॉडल का सहारा लिया। उन्होंने पंजाब की जनता को अपने पाले में करने के लिए राजधानी दिल्ली में स्वास्थ्य, शिक्षा और परिवहन के क्षेत्र में किए गए कार्यों का बखान किया। उनका यह बखान करना सूबे की जनता को भा गया, क्योंकि आम आदमी पार्टी पंजाब में सभी दलों को पछाड़कर विजयी बनी। जिसके बाद भगवंत मान को सूबे की बागडोर सौंपी गई। अब आम आदमी पार्टी को पंजाब की सत्ता मिले बहुत दिन हो चुके हैं, तो ऐसी स्थिति में एक बार आइए नजर डालते हैं कि आखिर अब तक प्रदेश में स्वास्थ्य के मोर्चे पर मौजूदा सरकार द्वारा कुछ किया गया है।

बात अगर प्रदेश में स्वास्थ्य व्यवस्थाओं की करें तो जनता बदहाल है। आलम यह है कि अस्पतालों में दवाइयां तक नहीं है। डॉक्टर तक हाथ खड़े कर दे रहे हैं। मरीजों के उपचार में उनका चिकत्सकीय तालीम भी दम तोड़ दे रहा है। जिसका खामियाजा सीधा मरीजों को भुगतना पड़ रहा है। ऐसी विकराल परिस्थिति में पंजाब में काला पीलिया की बीमारी अपने चरम पर पहुंच रही है। काला पीलिया के मरीजों की संख्या में तेजी से इजाफा दर्ज किया जा रहा है।

bhagwant mann

प्रदेश में काला पीलिया की दवाई खत्म हो चुकी है और मरीजों की संख्या में भी तेजी से इजाफा दर्ज किया जा रहा है, लेकिन डॉक्टर उपचार के दौरान अपने हाथ खड़े कर दे रहे हैं। आलम यह है कि मरीजों को अपने निजी खर्च पर दवा लेनी पड़ रही है। ऐसी स्थिति में आर्थिक तौर पर सशक्त मरीज अपनी दवा का खर्चा तो वहन कर लेते हैं, लेकिन आर्थिक तौर पर दुर्बल मरीज अपना खर्च उठाने की स्थिति में नहीं हैं।

वे दवाई से लेकर उपचार तक के लिए सरकारी अस्पतालों पर ही आश्रित हैं, लेकिन अफसोस मान सरकार के कार्यकाल में सूबे के अस्पताल भी अपनी आखिरी सांसें गिनने में मसरूफ हो चुके हैं, लेकिन मान साहब की ईमानदारी देख आपको शर्म आ जाएगी कि अभी तक साहब ने एक अल्फाज तक अपनी जुबां से अवतरित करने की जहमत नहीं उठाई है। अब ऐसी स्थिति में यह पूरा माजरा आगामी दिनों में क्या रुख अख्तियार करता है। इस पर सभी की निगाहें टिकी रहेंगी।