वॉशिंगटन। पेगासस स्पाईवेयर के जरिए नेताओं, नौकरशाहों और पत्रकारों के फोन की नजरदारी के आरोपों वाला पटाखा फुस्स निकल गया है। फुस्स ही नहीं निकला, बल्कि ये भी अब सामने आ गया है कि पूरे मामले को मोदी सरकार को बदनाम करने के लिए उछाला गया। इस पूरे मामले में किस तरह 16 मीडिया संस्थानों ने फर्जीवाड़ा किया, उसका खुलासा हो गया है। मीडिया संस्थानों ने अपनी खबरों में बढ़ा-चढ़ाकर छापा कि इजरायली कंपनी NSO के पेगासस स्पाईवेयर के जरिए फोन कॉल्स की नजरदारी 43 देशों की सरकारों ने कराई। इसके लिए मीडिया संस्थानों ने बताया कि कई फोन की जांच AMNESTY नाम की संस्था से कराई गई, जिसमें फोन में पेगासस होने का पता चला।
लेकिन अब एमनेस्टी ने ही इससे इनकार कर दिया है। इस बीच, पेगासस बनाने वाली इजरायली कंपनी NSO ने कहा है कि वह इस बारे में सबूत मिलने पर जांच करेगी, लेकिन मीडिया को कोई जानकारी नहीं देगी।
अब एमनेस्टी ने कह दिया है कि उसने न तो NSO का ही नाम लिया और न ही पेगासस का। संस्था अब ये दावा कर रही है कि मीडिया संस्थानों ने खुद मान लिया कि पेगासस के जरिए नजरदारी की गई और अपनी खबरों में इस स्पाईवेयर का नाम लिख दिया।
एमनेस्टी के मुताबिक उसने मीडिया संस्थानों से साफ तौर पर कहा था कि ये ऐसे फोन नंबर हैं, जिनकी नजरदारी इजरायली स्पाईवेयर पेगासस का इस्तेमाल करने वाले देश कर सकते हैं। इसका मतलब ये नहीं है कि इनकी नजरदारी की ही गई। इसका साफ मतलब ये है कि नजरदारी किए जाने का कोई सबूत नहीं मिल सका है, लेकिन भारत में मोदी सरकार को बदनाम करने के लिए मीडिया संस्थानों ने कोई कसर नहीं छोड़ी।
बता दें कि केंद्रीय आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने संसद में साफ कहा था कि सरकार ने कोई नजरदारी नहीं कराई। अमेरिकी अखबार वॉशिंगटन पोस्ट को सरकार की ओर से भेजे गए जवाब में भी कहा गया था कि अखबार इस मामले में खुद ही अभियोजन और जूरी की भूमिका निभा रहा है। बावजूद इसके पेगासस से नजरदारी के मामले को विपक्षी दलों ने हथियार बनाकर संसद में हंगामा मचा रखा है।