नई दिल्ली। अमेरिका और पश्चिमी देशों में लोगों को ज्यादातर कोरोना की mRNA वैक्सीन लगाई जा रही है। यह वैक्सीन फाइजर बनाती है। इस वैक्सीन को लगवाने के बाद भी कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं और लोगों की मौत हो रही है। फाइजर की वैक्सीन पूरी आबादी को लगवाने के बाद इजरायल ने अपने देश को मास्क फ्री घोषित कर दिया था, लेकिन अब वहां भी केस बढ़ने के बाद दोबारा मास्क लगाने को जरूरी कर दिया गया है। इसकी वजह है यही वैक्सीन। कोरोना के डेल्टा वैरिएंट के खिलाफ यह वैक्सीन ज्यादा कारगर नहीं है।
एक अमेरिकी डॉक्टर और रिसर्चर एरिक टोपोल ने एमआरएनए वैक्सीन के बारे में यह दावा किया है। टोपोल के मुताबिक एमआरएनए की वैक्सीन कोरोना के डेल्टा वैरिएंट से पहले के वैरिएंट पर तो 95 फीसदी कारगर थी, लेकिन अब नए वैरिएंट पर यह महज 50 से 60 फीसदी कामयाब रहती है। उन्होंने लिखा है कि अमेरिका की मेयो क्लिनिक ने शोध किया और पाया कि डेल्टा वैरिएंट के खिलाफ फाइजर की वैक्सीन सिर्फ 42 फीसदी ही कारगर रहती है। टोपोल ने कई ट्वीट्स में कहा कि फिर भी वैक्सीन लगवाना चाहिए, ताकि हम बचाव कर सकें। उन्होंने लिखा है कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को वैक्सीन लगवाने के बावजूद हकीकत को झुठलाया नहीं जा सकता कि एमआरएनए वैक्सीन ज्यादा कारगर नहीं रही।
There needs to be truth-telling about the reduced protection of mRNA vaccines vs symptomatic Delta infections.
It was 95% pre-Delta.
Many are claiming it’s still ~80%.
It isn’t.
50-60% is best estimate from all sources (not US, since we don’t have the data) pic.twitter.com/ep608YW0J7— Eric Topol (@EricTopol) August 11, 2021
टोपोल ने इजरायल में डेल्टा वैरिएंट से बढ़ रहे कोरोना केस का उदाहरण दिया है। उन्होंने लिखा है कि इजरायल ने अमेरिका के मुकाबले 15 अंक ज्यादा वैक्सीनेशन किया है। फिर भी वहां डेल्टा वैरिएंट का कोरोना हाहाकार मचा रहा है। इससे पता चलता है कि एमआरएनए वैक्सीन का कितना असर पड़ता है। एरिक टोपोल का दावा है कि वह जो कह रहे हैं, वह बात एकदम सही है। उनका कहना है कि जल्दी ही अमेरिका का डेटा आने वाला है और इससे उनकी बात सही साबित होगी। अमेरिकी रिसर्चर के मुताबिक कोरोना की वैक्सीन निश्चित तौर पर हॉस्पिटल में भर्ती होने और मौत को काफी हद तक रोकती है। इसलिए भले ही ये कम कारगर हो, लेकिन हर एक को वैक्सीन लेनी जरूर चाहिए।