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राजा राममोहन राय जयंती : जानें कैसे उन्होंने आधुनिक भारत की नींव रखी

राजा राम मोहन राय की आज उनकी जयंती है। उन्होंने देश को आधुनिक बनाने के साथ-साथ महिलाओं के अधिकारों की भी बात की। इसी वजह से उनको आधुनिक भारत की नींव रखने वाले समाज सुधारक के लिए भी जाना जाता है।

नई दिल्ली। राजा राम मोहन राय की आज उनकी जयंती है। उन्होंने देश को आधुनिक बनाने के साथ-साथ महिलाओं के अधिकारों की भी बात की। इसी वजह से उनको आधुनिक भारत की नींव रखने वाले समाज सुधारक के लिए भी जाना जाता है।

Raja Ram Mohan Roy

लगभग 200 साल पहले उन्होंने जिस आधुनिक भारत की नींव रखने की कोशिश की थी, उस दिशा में देश कुछ ही कदम आगे बढ़ पाया है। आधुनिक भारत के निर्माता और भारतीय पुनर्जागरण के पिता कहलाने वाले राजा राम मोहन राय को उनकी जयंती के मौके पर गूगल भी याद करता रहता है।

राजा राम मोहन राय का परिचय

राजा राम मोहन राय का जन्म 22 मई 1772 को पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले के राधानगर गांव में हुआ था। राजा राममोहन ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने गांव में हासिल की थी। इनके पिता का नाम रामकांत राय वैष्णव था, उनके पिता ने राजा राममोहन को बेहतर शिक्षा देने के लिए पटना भेजा।

15 वर्ष की आयु में उन्होंने बंगला, पारसी, अरबी और संस्कृत सीख ली थी, इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि वह कितने बुद्धिमान थे। एकेश्वरवाद के एक सशक्त समर्थक, राज राम मोहन रॉय ने रूढ़िवादी हिंदू अनुष्ठानों और मूर्ति पूजा को बचपन से ही त्याग दिया था। जबकि उनके पिता रामकंटो रॉय एक कट्टर हिंदू ब्राह्मण थे।

भारत को आधुनिक बनाने के लिए किया काम

राजा राममोहन राय भारत को आधुनिक भारत बनाना चाहते थे, आज राजा राम मोहन राय को आधुनिक भारत के रचयिता के नाम से भी जाना और पहचाना जाता है। राजा राममोहन एक महान विद्वान और स्वतंत्र विचारक थे, वो समाज का कल्याण करना चाहते थे। आधुनिक भारत के निर्माता कहे जाने वाले महान समाज सुधारक राजा राममोहन राय ने न केवल सती प्रथा को समाप्त किया बल्कि उन्होंने लोगों के सोचने के तरीके को भी बदला। आखिरकार उन्होंने ब्रिस्टल के समीप स्टाप्लेटन में 27 सितंबर 1833 को दुनिया को अलविदा कह दिया।

पुरानी प्रथाओं का किया विरोध

लगभग 200 साल पहले, जब “सती प्रथा” जैसी बुराइयों ने समाज को जकड़ रखा था, राजा राम मोहन रॉय जैसे सामाजिक सुधारकों ने समाज में बदलाव लाने के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने “सती प्रथा” का विरोध किया, जिसमें एक विधवा को अपने पति की चिता के साथ जल जाने के लिए मजबूर करता था।

उन्होंने महिलाओं के लिए पुरूषों के समान अधिकारों के लिए प्रचार किया। जिसमें उन्होंने पुनर्विवाह का अधिकार और संपत्ति रखने का अधिकार की भी वकालत की। 1828 में, राजा राम मोहन रॉय ने “ब्रह्म समाज” की स्थापना की, जिसे भारतीय सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलनों में से एक माना जाता है।